लगातार भागती दुनियाँ के पीछे,
लोग भाग रहे हैं लगातार।
इस आपाधापी में भाग रहा हूँ मैं भी,
सार्थक परिवर्तन के लिए।
बदल रही है लगातार ये दुनियाँ,
बदल रहे हैं लोग भी।
मैं भी मजबूर हूँ,
खुद को बदलने के लिए।
लेकिन पता नहीं,
परिवर्तन की दिशा-दशा?
इसी प्रश्न के मूल में छुपी है,
हमारी जिजीविषा।
परिवर्तन तो होते रहेंगे,
लोग भी बदलते रहेंगे,
और बदलेंगी उनकी चाहत भी।
लेकिन चाहत कैसी होगी?
परिवर्तन की दिशा-दशा के,
अनुरूप ही तो होगी।
फिर वही यक्ष-प्रश्न खड़ा है,
मेरे सामने,
कहीं यह दिशाहीन परिवर्तन,
विनाश का कारण तो नहीं?
मानवता के।
यदि हाँ तो क्या मायने हैं,
इस परिवर्तन के?
क्यों भाग रहे हैं लोग बेतहाशा?
इस अंधी दौड़ में,
क्यों मैं भी भाग रहा हूँ,
इस अनसुलझे प्रश्न के उत्तर की तलाश में,
अबतक जाग रहा हूँ।
क्या सिर्फ पिछलग्गू बनना ही,
समाधान है?
व्यवस्था परिवर्तन में यही,
सबसे बड़ा व्यवधान है।।
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15 comments:
यही सवाल है जो शायद् कभी आने वाले समय में परेशान करेगा।आज तो बस चल रहे हैं कहां? सायद अभी किसी को यह जानने की जरूरत नही हो रही।अच्छी रचना है।
बहुत से प्रश्न ऐसे हैं जो दोहराये नहीं जाते
बहुत उत्तर भी ऐसे हैं जो बतलाये नहीं जाते
umda rachna.
parivartan sansar ka niyam hai. dishaheen kuchh nahin , sab kuchh badalta rahta hai aur duniya chalti rahti hai.har yug men achcha aur bura donon hote hain.
राकेश भाई से पूर्णतः सहमत:
बहुत से प्रश्न ऐसे हैं जो दोहराये नहीं जाते
बहुत उत्तर भी ऐसे हैं जो बतलाये नहीं जाते
-सुन्दर रचना!!
इस अनसुलझे प्रश्न के जवाब की तलाश में आपकी तरह हम भी जाग रहे हैं।
अच्छी प्रस्तुति।
मिला समर्थन आपका हृदय से है आभार।
ताकत और चाहत मेरी मिले आपका प्यार।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
यह यक्ष प्रश्न तो सबके सामने मुंह बाए खडा है. बड़ी दुविधा है लेकिन हम सभ घसीटे जा रहे हैं. विरोध तो तब करें जब सही दिशा का ज्ञान हो.
बहुत से प्रश्न ऐसे हैं जो दोहराये नहीं जाते
बहुत उत्तर भी ऐसे हैं जो बतलाये नहीं जाते
राकेश भाई, समीर भाई, प्रेम भाई,
दोहराते जब प्रश्न को राह बने आसान।
समय पे उत्तर दे सकें इसका उचित निदान।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
श्यामल जी
सुन्दर रचना............परिवर्तन की विवशता को बयान करती...........
पर मुझे लगता है परिवारं तो संसार का नियम है और वो तो होना है
दौड़ते बेशक रहो तुम ज़िन्दगी की रेस में
पर चले मत दूर जाना अपनी ही पहचान से
बहुत सारगर्भित लेख लिखा है आपने....बधाई
नीरज
परिवर्तन ही जीवन है ..सुन्दर अभिव्यक्ति ..अच्छी लगी आपकी यह कविता
परिवर्तन तो नियम है प्रकृति का. लेकिन आपने जो प्रश्न उठाये हैं वह यक्ष प्रश्न हैं.
अत्यंत गंम्भीर विषय चुना है आपने .
अच्छी अभिव्यक्ति . फिर वही यक्ष-प्रश्न खड़ा है,
मेरे सामने,
कहीं यह दिशाहीन परिवर्तन,
विनाश का कारण तो नहीं?
मानवता के।- विजय
परिवर्तन तो संसार का नियम है.....बिना परिवर्तन के जीवन नहीं...जीवन के बिना परिवर्तन नहीं....बस यह परिवर्तन हमें कहा ले जायेगा.....???
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