जिन्दगी में इश्क का इक सिलसिला चलता रहा
लोग कहते रोग है फिर दिल में क्यों पलता रहा
आँधियाँ थीं तेज उस पर तेल भी था कम यहाँ
बन के दीपक इस जहाँ में अनवरत जलता रहा
इस तरह पानी हुआ कम दुनियाँ में, इन्सान में
दोपहर के बाद सूरज जिस तरह ढलता रहा
जिन्दगी घुट घुट के जीना मौत से बेहतर नहीं
जिन्दगी से मौत डरती वक्त यूँ टलता रहा
बेवफाई जिसकी फितरत वो वफा सिखलाते हैं
आजतक ऐसे जमाने को वही छलता रहा
बन गया लगभग बसूला कहते हैं अपना जिसे
दर्द अपनापन का दिल में अबतलक खलता रहा
जिन्दगी तो बस मुहब्बत और मुहब्बत जिन्दगी
तब सुमन दहशत में जीकर हाथ क्यों मलता रहा
बसूला - बढ़ई द्वारा प्रयुक्त वह औजार जो कुदाल की तरह सिर्फ अपनी ओर खींचता है।
लोग कहते रोग है फिर दिल में क्यों पलता रहा
आँधियाँ थीं तेज उस पर तेल भी था कम यहाँ
बन के दीपक इस जहाँ में अनवरत जलता रहा
इस तरह पानी हुआ कम दुनियाँ में, इन्सान में
दोपहर के बाद सूरज जिस तरह ढलता रहा
जिन्दगी घुट घुट के जीना मौत से बेहतर नहीं
जिन्दगी से मौत डरती वक्त यूँ टलता रहा
बेवफाई जिसकी फितरत वो वफा सिखलाते हैं
आजतक ऐसे जमाने को वही छलता रहा
बन गया लगभग बसूला कहते हैं अपना जिसे
दर्द अपनापन का दिल में अबतलक खलता रहा
जिन्दगी तो बस मुहब्बत और मुहब्बत जिन्दगी
तब सुमन दहशत में जीकर हाथ क्यों मलता रहा
बसूला - बढ़ई द्वारा प्रयुक्त वह औजार जो कुदाल की तरह सिर्फ अपनी ओर खींचता है।
32 comments:
रचना बहुत पसंद आयी।
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चाँद, बादल और शाम
इस तरह पानी हुआ कम दुनियाँ में, इन्सान में।
दोपहर के बाद सूरज जिस तरह ढ़लता रहा।।
wah suman ji , khubsurat khayalaat ke saath
ek umda rachna ke liye badhai.
आँधियाँ थीं तेज उस पर तेल भी था कम यहाँ।
बन के दीपक इस जहाँ में अनवरत जलता रहा।।
-बहुत खूब!! मजा आ गया.
ek achchhi rachana ......shubhkamnaye
बहुत सुंदर रचना है ये .. अच्छा लिखा .. बधाई।
आपकी कविता बहुत अच्छी लगि.
इश्क का यह भूत, हर दिल में मचलता है।
गन्ध से अपनी सुमन, दुनिया को छलता है।
आँधियाँ हरगिज बुझा सकती नही नन्हा दिया,
प्यार का दीपक, हवा में तेज जलता है।
सुन्दर कविता प्रस्तुति की बधाई.
निम्न पंक्तियाँ विशेष पसंद आयी................
आँधियाँ थीं तेज उस पर तेल भी था कम यहाँ।
बन के दीपक इस जहाँ में अनवरत जलता रहा।।
मेरे ब्लॉग www.cmgupta.blogspot.com पर भी दस्तक दें . आपका स्वागत है.
चन्द्र मोहन गुप्ता
आँधियाँ थीं तेज उस पर तेल भी था कम यहाँ।
बन के दीपक इस जहाँ में अनवरत जलता रहा।।
इस तरह पानी हुआ कम दुनियाँ में, इन्सान में।
दोपहर के बाद सूरज जिस तरह ढ़लता रहा।।
gazal ke behatriin sher rahe ye ..
yun to aapki har rachna sargarbhit hoti hai lekin ye sher purkashish rahe..bandhaii
"आँधियाँ थीं तेज उस पर तेल भी था कम यहाँ।
बन के दीपक इस जहाँ में अनवरत जलता रहा।।"
यह पंक्तियाँ अति सुन्दर हैं...
बहुत अच्छी बात...
~जयंत
आप सबकी टिप्पणियाँ मेरे कलम की ताकत। हार्दिक आभार। स्नेह बनाये रखें।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
जिन्दगी में इश्क का इक सिलसिला चलता रहा।
लोग कहते रोग है फिर दिल में क्यों पलता रहा...
bahut hi sundar bhaaw....
आँधियाँ थीं तेज उस पर तेल भी था कम यहाँ।
बन के दीपक इस जहाँ में अनवरत जलता रहा....
dipak ka kaam hi yahi hai ham samjhne me galti kar dete hai ...
ishk par ek vichaar meri bhi ijaajat ho to de dun..
मेरी कामना है । सूरज की तपती धुप तुझ पर कभी न पड़े ।
तुम कही भी रहो । तुम्हारी जिंदगी चलती ही रहे ।
मै तो कुछ भी नही । मेरा साया भी तुझ पर न पड़े ।
Ati uttam
पुखराज पर आने का शुक्रिया ...
आपका ब्लॉग भी पढ़ा ,..ग़ज़लों का
सॅंग्रह अच्छा है ....आगे भी कमेंट करते रहिए ...
bahut achhi
ban ke deepak anwarat jalta raha....bahut hi yatharth ke kareeb hai aapki kavita..prbhavit karti hai..
बहुत खूब!! सुंदर रचना. बधाई.
aapki har ghazal apni rawani aur bhawon ki gehtayi ki wazah se prabhawit karti hai. yoon hi likhte rahein
जिन्दगी तो बस मुहब्बत और मुहब्बत जिन्दगी।
तब सुमन दहशत में जीकर हाथ क्यों मलता रहा।।
This one is best!
bahut hi sundar prastuti.........badhayi sweekarein.
bahut hi sundar prastuti.........badhayi sweekarein.
जिन्दगी में इश्क का इक सिलसिला चलता रहा।
लोग कहते रोग है फिर दिल में क्यों पलता रहा।।
bahut sundar.
वाह सुमन जी वाह अच्छी रचना के लिये बधाई...
suman sahab behatareen rachna hai.......
जिन्दगी तो बस मुहब्बत और मुहब्बत जिन्दगी।
तब सुमन दहशत में जीकर हाथ क्यों मलता रहा
गहरी सोच है, नया दर्शन है इस कविता में..........
dobara ....aai hoon aapki post par phir se padha pura....sab samajh mein aa gaya...
Really good one!
बहुत सुँदर पंक्तियाँ रचना पसंद आयी.
आदरणीय श्यामल सुमन जी,
मेरे ब्लॉग "हमसफ़र यादों का......." पर पधारने तथा मेरा उत्साहवर्धन करने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद, चलिए इसी बहाने आपके ब्लॉग से परिचय हो गया। आपकी कवितायें पसंद आयीं. स्वयं भी कवितायें लिखता हूँ, इसलिए आपकी कवितायें प्रेरणा स्रोत रहेंगी. पधारते रहिएगा। पुनःश्च धन्यवाद!!!
जिन्दगी में इश्क का इक सिलसिला चलता रहा।
लोग कहते रोग है फिर दिल में क्यों पलता रहा।।
बहुत खूब......!!
hum aapki rachna padhte rahe,zubaan se waah waah nikalta raha :)
बेवफाई जिसकी फितरत वो वफा सिखलाते हैं।
आजतक ऐसे जमाने को वही छलता रहा।।
bhut khub
dosto jmane ko ye kya hua
jise chaha vo bevfi ho gya
इश्क इक हादसा
है कहते हैं लोग
फिर भी इसके पीछे
पागल रहते हैं लोग
श्याम सखा
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