Thursday, April 30, 2009

दीपक

जिन्दगी में इश्क का इक सिलसिला चलता रहा
लोग कहते रोग है फिर दिल में क्यों पलता रहा

आँधियाँ थीं तेज उस पर तेल भी था कम यहाँ
बन के दीपक इस जहाँ में अनवरत जलता रहा

इस तरह पानी हुआ कम दुनियाँ में, इन्सान में
दोपहर के बाद सूरज जिस तरह ढलता रहा

जिन्दगी घुट घुट के जीना मौत से बेहतर नहीं
जिन्दगी से मौत डरती वक्त यूँ टलता रहा

बेवफाई जिसकी फितरत वो वफा सिखलाते हैं
आजतक ऐसे जमाने को वही छलता रहा

बन गया लगभग बसूला कहते हैं अपना जिसे
दर्द अपनापन का दिल में अबतलक खलता रहा

जिन्दगी तो बस मुहब्बत और मुहब्बत जिन्दगी
तब सुमन दहशत में जीकर हाथ क्यों मलता रहा

बसूला - बढ़ई द्वारा प्रयुक्त वह औजार जो कुदाल की तरह सिर्फ अपनी ओर खींचता है।

32 comments:

Vinay said...

रचना बहुत पसंद आयी।

---
चाँद, बादल और शाम

Yogesh Verma Swapn said...

इस तरह पानी हुआ कम दुनियाँ में, इन्सान में।
दोपहर के बाद सूरज जिस तरह ढ़लता रहा।।

wah suman ji , khubsurat khayalaat ke saath
ek umda rachna ke liye badhai.

Udan Tashtari said...

आँधियाँ थीं तेज उस पर तेल भी था कम यहाँ।
बन के दीपक इस जहाँ में अनवरत जलता रहा।।


-बहुत खूब!! मजा आ गया.

संध्या आर्य said...

ek achchhi rachana ......shubhkamnaye

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर रचना है ये .. अच्‍छा लिखा .. बधाई।

Chandan Kumar Jha said...

आपकी कविता बहुत अच्छी लगि.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

इश्क का यह भूत, हर दिल में मचलता है।
गन्ध से अपनी सुमन, दुनिया को छलता है।
आँधियाँ हरगिज बुझा सकती नही नन्हा दिया,
प्यार का दीपक, हवा में तेज जलता है।

Mumukshh Ki Rachanain said...

सुन्दर कविता प्रस्तुति की बधाई.
निम्न पंक्तियाँ विशेष पसंद आयी................

आँधियाँ थीं तेज उस पर तेल भी था कम यहाँ।
बन के दीपक इस जहाँ में अनवरत जलता रहा।।

मेरे ब्लॉग www.cmgupta.blogspot.com पर भी दस्तक दें . आपका स्वागत है.

चन्द्र मोहन गुप्ता

निर्झर'नीर said...

आँधियाँ थीं तेज उस पर तेल भी था कम यहाँ।
बन के दीपक इस जहाँ में अनवरत जलता रहा।।

इस तरह पानी हुआ कम दुनियाँ में, इन्सान में।
दोपहर के बाद सूरज जिस तरह ढ़लता रहा।।

gazal ke behatriin sher rahe ye ..
yun to aapki har rachna sargarbhit hoti hai lekin ye sher purkashish rahe..bandhaii

जयंत - समर शेष said...

"आँधियाँ थीं तेज उस पर तेल भी था कम यहाँ।
बन के दीपक इस जहाँ में अनवरत जलता रहा।।"

यह पंक्तियाँ अति सुन्दर हैं...
बहुत अच्छी बात...

~जयंत

श्यामल सुमन said...

आप सबकी टिप्पणियाँ मेरे कलम की ताकत। हार्दिक आभार। स्नेह बनाये रखें।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

mark rai said...

जिन्दगी में इश्क का इक सिलसिला चलता रहा।
लोग कहते रोग है फिर दिल में क्यों पलता रहा...
bahut hi sundar bhaaw....
आँधियाँ थीं तेज उस पर तेल भी था कम यहाँ।
बन के दीपक इस जहाँ में अनवरत जलता रहा....
dipak ka kaam hi yahi hai ham samjhne me galti kar dete hai ...
ishk par ek vichaar meri bhi ijaajat ho to de dun..
मेरी कामना है । सूरज की तपती धुप तुझ पर कभी न पड़े ।
तुम कही भी रहो । तुम्हारी जिंदगी चलती ही रहे ।
मै तो कुछ भी नही । मेरा साया भी तुझ पर न पड़े ।

बाल भवन जबलपुर said...

Ati uttam

renu said...

पुखराज पर आने का शुक्रिया ...
आपका ब्लॉग भी पढ़ा ,..ग़ज़लों का
सॅंग्रह अच्छा है ....आगे भी कमेंट करते रहिए ...

रश्मि प्रभा... said...

bahut achhi

RAJNISH PARIHAR said...

ban ke deepak anwarat jalta raha....bahut hi yatharth ke kareeb hai aapki kavita..prbhavit karti hai..

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

बहुत खूब!! सुंदर रचना. बधाई.

Manish Kumar said...

aapki har ghazal apni rawani aur bhawon ki gehtayi ki wazah se prabhawit karti hai. yoon hi likhte rahein

प्रिया said...

जिन्दगी तो बस मुहब्बत और मुहब्बत जिन्दगी।
तब सुमन दहशत में जीकर हाथ क्यों मलता रहा।।

This one is best!

vandana gupta said...

bahut hi sundar prastuti.........badhayi sweekarein.

vandana gupta said...

bahut hi sundar prastuti.........badhayi sweekarein.

Prem Farukhabadi said...

जिन्दगी में इश्क का इक सिलसिला चलता रहा।
लोग कहते रोग है फिर दिल में क्यों पलता रहा।।
bahut sundar.

योगेन्द्र मौदगिल said...

वाह सुमन जी वाह अच्छी रचना के लिये बधाई...

Harshvardhan said...

suman sahab behatareen rachna hai.......

दिगम्बर नासवा said...

जिन्दगी तो बस मुहब्बत और मुहब्बत जिन्दगी।
तब सुमन दहशत में जीकर हाथ क्यों मलता रहा

गहरी सोच है, नया दर्शन है इस कविता में..........

प्रिया said...

dobara ....aai hoon aapki post par phir se padha pura....sab samajh mein aa gaya...

Really good one!

समयचक्र said...

बहुत सुँदर पंक्तियाँ रचना पसंद आयी.

Anonymous said...

आदरणीय श्यामल सुमन जी,
मेरे ब्लॉग "हमसफ़र यादों का......." पर पधारने तथा मेरा उत्साहवर्धन करने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद, चलिए इसी बहाने आपके ब्लॉग से परिचय हो गया। आपकी कवितायें पसंद आयीं. स्वयं भी कवितायें लिखता हूँ, इसलिए आपकी कवितायें प्रेरणा स्रोत रहेंगी. पधारते रहिएगा। पुनःश्च धन्यवाद!!!

हरकीरत ' हीर' said...

जिन्दगी में इश्क का इक सिलसिला चलता रहा।
लोग कहते रोग है फिर दिल में क्यों पलता रहा।।


बहुत खूब......!!

Sajal Ehsaas said...

hum aapki rachna padhte rahe,zubaan se waah waah nikalta raha :)

शोभना चौरे said...

बेवफाई जिसकी फितरत वो वफा सिखलाते हैं।
आजतक ऐसे जमाने को वही छलता रहा।।
bhut khub
dosto jmane ko ye kya hua
jise chaha vo bevfi ho gya

gazalkbahane said...

इश्क इक हादसा
है कहते हैं लोग
फिर भी इसके पीछे
पागल रहते हैं लोग
श्याम सखा

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विश्व की महान कलाकृतियाँ- पुन: पधारें। नमस्कार!!!