मैंने पूछा साँप से, दोस्त बनेंगे आप।
नहीं महाशय ज़हर में, आप हमारे बाप।।
कुत्ता रोया फूटकर, यह कैसा जंजाल।
सेवा नमकहराम की, करता नमकहलाल।।
जीव मारना पाप है, कहते हैं सब लोग।
मच्छड़ का फिर क्या करें, फैलाता जो रोग।।
दुखित गधे ने एक दिन, छोड़ दिया सब काम।
गलती करता आदमी, लेता मेरा नाम।।
बीन बजाये नेवला, साँप भला क्यों आय।
जगी न अब तक चेतना, भैंस लगी पगुराय।।
नहीं मिलेगी चाकरी, नहीं मिलेगा काम।
न पंछी बन पाओगे, होगा अजगर नाम।।
गया रेल में बैठकर, शौचालय के पास।
जनसाधारण के लिये, यही व्यवस्था खास।।
रचना छपने के लिये, भेजे पत्र अनेक।
सम्पादक ने फाड़कर, दिखला दिया विवेक।।
नहीं महाशय ज़हर में, आप हमारे बाप।।
कुत्ता रोया फूटकर, यह कैसा जंजाल।
सेवा नमकहराम की, करता नमकहलाल।।
जीव मारना पाप है, कहते हैं सब लोग।
मच्छड़ का फिर क्या करें, फैलाता जो रोग।।
दुखित गधे ने एक दिन, छोड़ दिया सब काम।
गलती करता आदमी, लेता मेरा नाम।।
बीन बजाये नेवला, साँप भला क्यों आय।
जगी न अब तक चेतना, भैंस लगी पगुराय।।
नहीं मिलेगी चाकरी, नहीं मिलेगा काम।
न पंछी बन पाओगे, होगा अजगर नाम।।
गया रेल में बैठकर, शौचालय के पास।
जनसाधारण के लिये, यही व्यवस्था खास।।
रचना छपने के लिये, भेजे पत्र अनेक।
सम्पादक ने फाड़कर, दिखला दिया विवेक।।
26 comments:
मैंने पूछा साँप से दोस्त बनेंगे आप।
नहीं महाशय ज़हर में आप हमारे बाप।।
बाप रे बाप !
भई वाह्! कितना सच लिखा है आपने....बहुत ही बढिया.
वाह शमामल सुमन जी.....
क्या व्यंग छेड़े हैं आपने.........
सांप ज़हर आजकल इंसान से मांगता है.
ठीक कहा आपने काजल कुमार जी। आपकी बात पर एक शायर की पंक्तियाँ याद आ गयी-
साँपों के मुकद्दर में वो जहर नहीं होता।
इन्सान अदावत पे जो जहर उगलता है।।
आप सबको समर्थन के लिए शुक्रिया।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
good one! well mannered and polished saanp
सटीक- यथार्थ पर आधारित दोहे!
व्यंग के सटीक प्रयोग द्वारा आपने आज के मानव पर लाजबाब कटाक्ष किया है ,जो काबिले तारीफ है |
HA HA HA HA
gazab bhayo rama gazab bhayo re...
dohe baanch kar anand aagya saheb
LAKH LAKH BADHAI
harek line jabardast padte -padte hansti rahi .majedar vyang .hansya kavi sammelan ki yaad aa gayi .wah-wah karne ka maan hota raha .
यथार्थ पर व्यंग्य बहुत अच्छा लगा. सार्थक व्यंग्य.....शुभकामनाएं...
साभार
हमसफ़र यादों का.......
मैंने पूछा साँप से दोस्त बनेंगे आप।
नहीं महाशय ज़हर में आप हमारे बाप।।
क्या बात है !!
बिलकुल सटीक दोहे लिखे हैं आपने
बधाई ही बधाई
श्यामल जी
खूब लिखे हैं दोहे, बड़ी दोहरी मार मारी है।
गया रेल में बैठकर शौचालय के पास।
जनसाधारण के लिये यही व्यवस्था खास।।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
बहुत बडिया ब्लोग है आभार्
मैंने पूछा साँप से दोस्त बनेंगे आप।
नहीं महाशय ज़हर में आप हमारे बाप
वाह सुमन जी
क्या लाजवाब दोहे..........आज के सन्दर्भ में बिलकुल सही उतारते हैं .......... हर दोहे में अलग ही मिजाज़ नज़र आता है...मुंह से वाह...वाह...निकलता है
श्यामल जी, पहली बार देखा. बहुत दिलचस्प है व्यंग्यात्मक कविताओं की दुनिया. अब नियमित देखते रहना पड़ेगा कि कहीं कुछ छूट ना जाए.वैसे सच भी है.सांप इनसान से सामना करने से हमेशा भागता है.
वाह भाई सुमन जी इस व्यग्याभिव्यक्ति के लिये विशिष्ट बधाई... वाह
वाह वाह वाह !!!
हर दोहा मन मन भर का.....बहुत बहुत आनंद आया पढ़कर...क्या खूब लिखा है आपने..
Sahee kehete hain...Marathi bhashaki behad prasiddh kaviyatri,(Bahina bai Chaudhary) jo nirakshar theen..keh gayeen,"are aadamee, tujhse bichhu, saanp behtar, ki uske kaateko utaare mantar"!
Maine ye swair anuwad kiya hai..!
Inkee rachnaon pe kayiyon ne Phd.prapt kar lee hai..insaan ke bhatakte "man" ko leke rachee kavitayen to aisee gazab hain! Shayadhee kisee any ne nisargse itna seeekha ho..ek aurat jisne ta-umr khetonme kaam kiya..Khandesh ke bahar kaheen gayee nahee...par kya kamal kar dikhaya..
Aapke dohe padhe to unki barbas yaad aa gayee.."sansaar" is wishayko lekebhee unhon ne anmol rachnayen racheen..
Ve likh nahee sakti theen....isliye,jo unke poteko yaad rahaa, usne prakashit kiya.
Lataji ne unke kuchh geet gayen hain.
Waise, aap wyang ke roopme is qadar saty likh gaye hain...! Kya kehne..!Ye zaroor kahungi,ki, aajke maanav pe nahee..sadiyon se manav jaatee aiseehee rahee hai..!
Aapki tippaneeke liye shukrguzaar hun..maine kayi tareeqon se "maatru" likhneki koshish kee..lekin jaisa aap chahte hain, safal nahee huee..mujhe bata sakenge, ki, apne iske "hijje" kaise kiye?Aabharee rahungi!
बहुत बढ़िया , आज पहली बार इस गली आया और पहली बार मे ही "दिल" दे दिया .
Pata nahee, kyon, baar,baar comment post karneme "error" dikhaya ja raha hai!
Ye hai meree e-mail ID:
shamakavya@gmail.com
Aapki tahe dilse shukrguzar hun!
Open ID pebhi comment post karnekee koshish kee, nahee hua!
Snehadar sahit
Shama
बहुत सुंदर दोहे। खासकर पहला तो दिल के भीतर उतर गया। बधाई।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
kya vyang kiya hai dohe k madhyam se,bahut hi sarahaniy doha hai. badhayi aap ko.
गया रेल में बैठकर शौचालय के पास।
जनसाधारण के लिये यही व्यवस्था खास।।
ghazab ghazab ke udaaharn uthaaye hai...mazaa aa gayaa padhke...aapki baato ko zehan me utaar bhi liyaa :)
www.pyasasajal.blogspot.com
vah sir bahut hi badiya dohe hai ..padhkar bahut achha laga
great satire
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