मन-दर्पण को जब-जब देखा, उलझ गई खुद की तस्वीरें
चेहरे पे चेहरों का अंतर, याद दिलाती ये तस्वीरें
पात्रों सा निज- रूप सजाता, रंगमंच जाने से पहले
प्रति पल रूप बदलता मेरा, और बदलती है तक़रीरें
निज-स्वरूप की नित तलाश में, हाथ लिए दीपक मैं फिरता
सच आँखों का छुप नहीं पाता, लाख करी मैंने तदबीरें
जान लिया खुद को जिसने भी, प्रेम-शांति के गीत वो गाया
फिर भी नहीं बदल पाया है, मानवता की भाग्य-लकीरें
सुमन के होने का मतलब क्या, खुशबू ही जब सिमट रही हो
अर्थ मनुज का व्यर्थ हो रहा, तोड़ो शेष बची ज़ंजीरें
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मगर बेचना मत खुद्दारी
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लेकिन बात कहाँ कम करते
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विश्व की महान कलाकृतियाँ-
19 comments:
सच ही
तस्वीरे बहुत कुछ याद दिला देती है.
सही तस्वीर दिखाती आपकी यह रचना मन को भा गई.
बहुत सुन्दर रचना के लिये बधाई
हर कोई अपने आप को ढूंढ रहा है, परन्तु नकली चेहरों वाली इस दुनिया में इंसान का स्वयं को पहचानना मुश्किल हो रहा है.....
अच्छी कविता के लिए एक बार फ़िर से बधाई स्वीकारें.
साभार
हमसफ़र यादों का.......
महक नही तो सुमन का, खिलना है बेकार।
चहक नही तो व्यर्थ है, प्रेम-प्रीत-व्यवहार।।
बहुत सही कहा. शुभकामनाएं.
waah shyamalji waah!
uttam
anupam
abhinav kavita....................badhai_________
lajawaab rachna.khud ke aaine mein khud ko dhoondhti rachna.
हम अपने आप को पहचान कर भी अन्जान बन जाते है, डर से या फ़िर हीन भावना से, फ़िर हम भी एक नकली मोखोटा लगा कर दिल को तस्ल्ली देते है, बहुत ही सुंदर लगी आप की यह रचना.
धन्यवाद
अपने आप ही अपनी सच्चाई को देखना और फिर उस तस्वीर में जीना........... फिर उस अंतर को पहचान करना............बहुत ही खूब रचना है सुमन जी.......... लाजवाब लिखा है
bahut sundar post hai akhir me ye tasveeren hi to reh jaati hain shubhkaamanayen
khud ki sachchi aur achchi tasveer prastut ki aapne
पात्रों सा निज- रूप सजाता, रंगमंच जाने से पहले।
प्रति पल रूप बदलता मेरा, और बदलती है तक़रीरें।।
badhiya post
बहुत गहरा भावार्थ
सुमन के होने का मतलब क्या, खुशबू ही जब सिमट रही हो।
अर्थ मनुज का व्यर्थ हो रहा, तोड़ जो शेष बची ज़ंजीरें।।
bahut achchee lagee
मन-दर्पण को जब-जब देखा, उलझ गई खुद की तस्वीरें।
चेहरे पे चेहरों का अंतर, याद दिलाती ये तस्वीरें।।
bahut hi sunder lagi ye rachna ...jo bhav apne batore hai bahut hi lajavab hai ..
अड़तालीस घण्टे तलक रहा नेट से दूर।
सब को है आभार जो दिया स्नेह सा नूर।।
आप सबको टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
kya chintan hai aapki rachna mein.
har pankti apne aap mai poorn ..
bahot sundar or bhavuk rachna..
daad kubool karen..suman ji
बहुत सुन्दर रचना
Sir...aapke lekhan pe kya tippani doon...ek sampoornta ka anubhav hota hai aapki kavitaao me...har tarah se itni achhi aur kamaal ki...vichaar kamaal ke aur shabdo ka chayan bhi behatareen... :)
www.pyasasajal.blogspot.com
आपकी हर एक रचना एक से बढकर एक है!
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