कमी बहुत श्रोताओं की है वक्ताओं की नहीं कमी।
लिखने वाले भरे पड़े हैं फिर भी मैं क्यों लिखता हूँ?
प्यास है लेखक बन जाने की, लिप्सा है कवि कहलाने की।
किंचित् स्थापित कवियों संग, अवसर मिल जाये गाने की।
धीरे धीरे नाम बढ़ेगा, कवियों सा सम्मान मिलेगा।
पाठ्य पुस्तकों में रचना को, निश्चित ही स्थान मिलेगा।
हँसने वाले हँसा करें, पर बात यही दुहराऊँगा।
दिवा-स्वप्न साकार हुआ तो, राष्ट्रकवि बन जाऊँगा।
सार्थक इसी भाव को करने, रोज नया मैं सिखता हूँ।
इसीलिये मैं लिखता हूँ।।
क्षणभंगुर प्रकाश जुगनू का, अंधियारे में बहुत सहारा।
स्वयं प्रदीप्त हो अन्तर्मन में, फैलेगा एक दिन उजियारा।
काश अगर यह हो पाये तो, वह प्रकाश निज का होगा।
बासी चिन्तन उल्टी धारा, से मुक्ति संभव होगा।
सत्य कलम से निकलेगा तो, क्रांतिदूत कहलाऊँगा।
बेजुबान लोगों की भाषा, का वाहक बन जाऊँगा।।
रहता सदा भीड़ में फिर भी, अलग भीड़ से दिखता हूँ।
इसीलिये मैं लिखता हूँ।।
शांत झील में कंकड गिरता, लहरें तट तक जाती हैं।
साथी एक भी मिल जाये तो, मंजिल खुद आ जाती है।
एक और एक से ग्यारह बनकर, क्रांतिबीज बन सकता है।
फिर से इस भारतभूमि में, सत्य सुमन खिल सकता है।
नयी धारणा नये सोच से, नव जीवन सज जायेगा।
क्यों न हो अंधों की बस्ती, दर्पण सब बिक जायेगा।।
बौद्धिकता की अलख जगाने, एक जगह नहीं टिकता हूँ।
इसीलिये मैं लिखता हूँ।।
Wednesday, June 17, 2009
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23 comments:
wah sir! ultimate, superb! hamhe aapki rachna ki koi ek line nahi balki har line bahut bahut bahut pasad aai hain..Aur ussey bhi jyada pasand hain sachchai........sachchi kaun nahi chahta.. aage badna ....... but itni bebaki se koi nahi kahta......kuch hesitate hote hain aur kuch Hippocratic
बहुत सुंदर औत उत्साह का संचार करती रचना.
रामराम.
waah
waah
irshya ho rahi hai bhai,
jalan ho rahi hai ki aisaa geet maine kyon nahin likha.............
fir bhi lok laj k karan badhaai bhejta hoon
BADHAAI !
झरने जी प्यारी प्यारी लय लिये है आप की यह कविता, बहुत ही सुंदर.
wah suman ji, is kavita ko padh kar humne to aapko rashtra kavi maan liya. badhai.
बहुत ख़ूबसूरत और उम्दा रचना लिखा है आपने! इतनी गहराई के साथ आपने लिखा है की दिल को छू गई! मुझे बेहद पसंद आया!आपकी लेखनी को मेरा सलाम!
बहुत अच्छी रचना है सुमन जी. बधाई !
सुमन जी, रचनाओँ में सत्य कहा है आप ने।
बिल्कुल सही आकलन।
बहतु सुन्दर अभिव्यक्ति.
सत्य वचन महाराज्।लिखने वालों की कमी है तो नही।
इस आत्म प्रवाह मे तो मै भी बह गया...........बिल्कुल सत्य वचन है भाई .......बहुत ही सहजता से कह गये सब कुछ .........अच्छे शब्द और भाव.......
वाकई आप सदैव भीड़ से अलग दिखते हैं.....और आपकी कवितायें भी....
साभार
हमसफ़र यादों का.......
अच्छी कविता..
रहता सदा भीड़ में फिर भी, अलग भीड़ से दिखता हूँ।
इसीलिये मैं लिखता हूँ।।
-सही पहचान है एक लेखक की!
कमी बहुत श्रोताओं की है वक्ताओं की नहीं कमी।
लिखने वाले भरे पड़े हैं फिर भी मैं क्यों लिखता हूँ?
शुरुआत ही इतनी सुन्दर.....
आप सबके प्यार और समर्थन के प्रति हार्दिक आभार। यूँ ही स्नेह बनाये रखें।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
आप का ब्लाग अच्छा लगा...बहुत बहुत बधाई....
एक नई शुरुआत की है-समकालीन ग़ज़ल पत्रिका और बनारस के कवि/शायर के रूप में...जरूर देखें..आप के विचारों का इन्तज़ार रहेगा....
waah waah waah ..........aur sirf waah waah...........shabd kam pad rahe hain aur khojne honge tarif ke liye.
Ekdam sateek...wah..wa
श्यामल जी,
"आत्मप्रवाह" आत्म-साक्षात्कार सा आत्म चिंतन प्रतीत होता है जो किसी भी रचनाकार के जीवन में आता है। उन क्षणों में मोहभंग की स्थिती से उबरने में यह आत्म चिंतन ही सहाय होता है।
एक साधक के अभी पहलुओं को समेटे कविता रोचक बन पड़ी है।
बधाईयाँ!!
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
सत्य कलम से निकलेगा तो क्रांतिदूत कहलाऊँगा .......
क्या बात है !
सत्य है तो सब है .
ऐसा ही तेज़ बनाये रखिये .
बहतु सुन्दर अभिव्यक्ति...
"सत्य कलम से निकलेगा तो, क्रांतिदूत कहलाऊँगा।
बेजुबान लोगों की भाषा, का वाहक बन जाऊँगा।।"
बहुत ही ओजपूर्ण और कोमल भावों का सुंदर सामंजस्य ! बधाई !
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