रोग समझकर अपना जिसको अपनों ने धिक्कार दिया
रीति अजब कि दिन बहुरे तो अपना कह स्वीकार किया
हवा के रूख संग भाव बदलना क्या इन्सानी फितरत है
स्वागत गान सुनाया जिसको जाने पर प्रतिकार किया
कलम बेचने को आतुर हैं दौलत, शोहरत के आगे
लिखना दर्द गरीबों का नित बस बौद्धिक व्यभिचार किया
बातें करना परिवर्तन की, समता की, नैतिकता की
जहाँ मिला नायक को जो कुछ उसपर ही अधिकार किया
सुमन भी उपवन से बेहतर अब दिखते हैं बाजारों में
कागज के फूलों में खुशबू क्या अच्छा व्यापार किया
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
हाल की कुछ रचनाओं को नीचे बॉक्स के लिंक को क्लिक कर पढ़ सकते हैं -
विश्व की महान कलाकृतियाँ-
23 comments:
कलम बेचने को आतुर हैं दौलत, शोहरत के आगे।
====
स्वागत!
तीखी और उम्दा रचना के लिये सादर साधुवाद
अत्यंत सुन्दर अभिव्यक्ति
बातें करना परिवर्तन की, समता की, नैतिकता की।
जहाँ मिला नायक को जो कुछ उसपर ही अधिकार किया।।
बहुत खूब
खुदाया ये तल्खियाँ कायम रहें
ज़माने के अंजाम तक ,
खुदाया तल्खिया और बढ़ें
बिखर न जाये महफ़िल के आगाज तक ||
TheNetPress.com और " स्वाइन - फ्लू और समलैंगिकता [पुरूष] के बहाने से " हार्दिक आमंत्रण है
जिसकी उंगली थाम , चलना सीखा,
उससे अपंगों सा, व्यवहार किया...
सहता रहा ,अपनी मौत तक सबकुछ,
कहाँ कभी...प्रतिकार किया...
आपनी लेखनी में धार है अद्भुत..
हमने तो कब का स्वीकार किया...
सुमन जी......आभार ..बहुत उम्दा रचना..
बहुत लाजवाब रचना.
आभार.
वाह....
"कागज के फूलों में खुशबू,
क्या अच्छा व्यापार किया।।"
बनावट का दौर है भइया,
अच्छा लिखा है।
बातें करना परिवर्तन की, समता की, नैतिकता की।
जहाँ मिला नायक को जो कुछ उसपर ही अधिकार किया।।
वाह क्या बात है, बहुत सुंदर
मन को भेदती हुई सुन्दर गजल के लिए बधाई.
बहुत ही प्रहारक भाव हैं श्यामल सुमन जी
- विजय
बातें करना परिवर्तन की, समता की, नैतिकता की।
जहाँ मिला नायक को जो कुछ उसपर ही अधिकार किया
गहरी बात लिखी है सुमन जी.................. लाजवाब रचना
sundar bhaw ke sath sundar rachana.......
कलम बेचने को आतुर हैं दौलत, शोहरत के आगे।
लिखना दर्द गरीबों का नित बस बौद्धिक व्यभिचार किया।।
बहुत खूब. अच्छी रचना. बधाई.
क्या बात है बेहतरीन लगी आपकी ये रचना...
दुनियाँ के कोने कोने से मिला बहुत ही प्यार।
शीश नवाता सुमन यहाँ पर प्रेषित है आभार।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
सुन्दर अभिव्यक्ति व रचना
सुमनजी
एक अच्छी रचना के लिये साधुवाद.
रोग समझकर अपना जिसको अपनों ने धिक्कार दिया।
रीति अजब कि दिन बहुरे तो अपना कह स्वीकार किया।
बहुत सही अभिव्यक्ति है बधाई
जीवन के रंगों से सराबोर गजल कही है आपने। बधाई।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
हवा के रूख संग भाव बदलना क्या इन्सानी फितरत है।
स्वागत गान सुनाया जिसको जाने पर प्रतिकार किया।।
too good
बहुत लाजवाब रचना..
आपकी संवेदना को सलाम सुमन साहब
रोग समझकर अपना जिसको अपनों ने धिक्कार दिया।
रीति अजब कि दिन बहुरे तो अपना कह स्वीकार किया।
बहुत ही सुंदर मेरा प्रणाम स्वीकार करे
सादर प्रवीण पथिक
9971969084
कलम बेचने को आतुर हैं दौलत, शोहरत के आगे
लिखना दर्द गरीबों का नित बस बौद्धिक व्यभिचार किया
TEEKHA KATAKSH
LIKHNE KEE KLM THANDI NA HO
VINTI HAI
कागज के फूलों में खुशबू,
क्या अच्छा व्यापार किया।।
सोना नहीं चमक वाली चीजों के जैसे लोग खरीदार हें वैसे ही अंतर के भावों से नहीं ऊपरी दिखावे के लोग कद्रदान हैं. आलोचना सुनने की शक्ति अब रही नहीं, प्रशस्ति गान के दावेदार हैं.
Post a Comment