Saturday, July 4, 2009

रोग

रोग समझकर अपना जिसको अपनों ने धिक्कार दिया
रीति अजब कि दिन बहुरे तो अपना कह स्वीकार किया

हवा के रूख संग भाव बदलना क्या इन्सानी फितरत है
स्वागत गान सुनाया जिसको जाने पर प्रतिकार किया

कलम बेचने को आतुर हैं दौलत, शोहरत के आगे
लिखना दर्द गरीबों का नित बस बौद्धिक व्यभिचार किया

बातें करना परिवर्तन की, समता की, नैतिकता की
जहाँ मिला नायक को जो कुछ उसपर ही अधिकार किया

सुमन भी उपवन से बेहतर अब दिखते हैं बाजारों में
कागज के फूलों में खुशबू क्या अच्छा व्यापार किया

23 comments:

M VERMA said...

कलम बेचने को आतुर हैं दौलत, शोहरत के आगे।
====
स्वागत!
तीखी और उम्दा रचना के लिये सादर साधुवाद
अत्यंत सुन्दर अभिव्यक्ति

'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा :: said...

बातें करना परिवर्तन की, समता की, नैतिकता की।
जहाँ मिला नायक को जो कुछ उसपर ही अधिकार किया।।

बहुत खूब
खुदाया ये तल्खियाँ कायम रहें
ज़माने के अंजाम तक ,
खुदाया तल्खिया और बढ़ें
बिखर न जाये महफ़िल के आगाज तक ||

TheNetPress.com और " स्वाइन - फ्लू और समलैंगिकता [पुरूष] के बहाने से " हार्दिक आमंत्रण है

अजय कुमार झा said...

जिसकी उंगली थाम , चलना सीखा,
उससे अपंगों सा, व्यवहार किया...

सहता रहा ,अपनी मौत तक सबकुछ,
कहाँ कभी...प्रतिकार किया...

आपनी लेखनी में धार है अद्भुत..
हमने तो कब का स्वीकार किया...

सुमन जी......आभार ..बहुत उम्दा रचना..

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत लाजवाब रचना.

आभार.

योगेन्द्र मौदगिल said...

वाह....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

"कागज के फूलों में खुशबू,
क्या अच्छा व्यापार किया।।"

बनावट का दौर है भइया,
अच्छा लिखा है।

राज भाटिय़ा said...

बातें करना परिवर्तन की, समता की, नैतिकता की।
जहाँ मिला नायक को जो कुछ उसपर ही अधिकार किया।।
वाह क्या बात है, बहुत सुंदर

विजय तिवारी " किसलय " said...

मन को भेदती हुई सुन्दर गजल के लिए बधाई.
बहुत ही प्रहारक भाव हैं श्यामल सुमन जी
- विजय

दिगम्बर नासवा said...

बातें करना परिवर्तन की, समता की, नैतिकता की।
जहाँ मिला नायक को जो कुछ उसपर ही अधिकार किया

गहरी बात लिखी है सुमन जी.................. लाजवाब रचना

ओम आर्य said...

sundar bhaw ke sath sundar rachana.......

अमिताभ मीत said...

कलम बेचने को आतुर हैं दौलत, शोहरत के आगे।
लिखना दर्द गरीबों का नित बस बौद्धिक व्यभिचार किया।।

बहुत खूब. अच्छी रचना. बधाई.

Manish Kumar said...

क्या बात है बेहतरीन लगी आपकी ये रचना...

श्यामल सुमन said...

दुनियाँ के कोने कोने से मिला बहुत ही प्यार।
शीश नवाता सुमन यहाँ पर प्रेषित है आभार।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

IMAGE PHOTOGRAPHY said...

सुन्दर अभिव्यक्ति व रचना

राकेश खंडेलवाल said...

सुमनजी

एक अच्छी रचना के लिये साधुवाद.

निर्मला कपिला said...

रोग समझकर अपना जिसको अपनों ने धिक्कार दिया।
रीति अजब कि दिन बहुरे तो अपना कह स्वीकार किया।
बहुत सही अभिव्यक्ति है बधाई

admin said...

जीवन के रंगों से सराबोर गजल कही है आपने। बधाई।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

प्रिया said...

हवा के रूख संग भाव बदलना क्या इन्सानी फितरत है।
स्वागत गान सुनाया जिसको जाने पर प्रतिकार किया।।

too good

स्वप्न मञ्जूषा said...

बहुत लाजवाब रचना..

Satish Saxena said...

आपकी संवेदना को सलाम सुमन साहब

प्रवीण शुक्ल (प्रार्थी) said...

रोग समझकर अपना जिसको अपनों ने धिक्कार दिया।
रीति अजब कि दिन बहुरे तो अपना कह स्वीकार किया।
बहुत ही सुंदर मेरा प्रणाम स्वीकार करे
सादर प्रवीण पथिक
9971969084

गुड्डोदादी said...

कलम बेचने को आतुर हैं दौलत, शोहरत के आगे
लिखना दर्द गरीबों का नित बस बौद्धिक व्यभिचार किया
TEEKHA KATAKSH
LIKHNE KEE KLM THANDI NA HO
VINTI HAI

रेखा श्रीवास्तव said...

कागज के फूलों में खुशबू,
क्या अच्छा व्यापार किया।।

सोना नहीं चमक वाली चीजों के जैसे लोग खरीदार हें वैसे ही अंतर के भावों से नहीं ऊपरी दिखावे के लोग कद्रदान हैं. आलोचना सुनने की शक्ति अब रही नहीं, प्रशस्ति गान के दावेदार हैं.

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विश्व की महान कलाकृतियाँ- पुन: पधारें। नमस्कार!!!