Monday, July 6, 2009

बहुरंग

रोज मैं गीत नया गाता हूँ
सोने वाले को ही जगाता हूँ
आँधियाँ आती जाती रहती है,
दीप को दीप से जलाता हूँ

नहीं लगाते नये पेड़ और बाग जलाना सीख लिया
दीप जलाना भूल गए और आग लगाना सीख लिया
कम ही लोग बचे हैं सच्चे आज हमारे भारत में,
उनके श्वेत वस्त्र पे हमने दाग लगाना सीख लिया

सिर्फ सोचने से क्या होता अच्छा है कुछ कर जाना
नहीं माँगकर भीख दया की हक की खातिर लड़ जाना
क्या जाने किस नयी आस में घुट घुट कर जीते हैं लोग,
बार बार मरने से अच्छा एक बार ही मर जाना

वाद हजारों हमने देखे यह विवाद का कारण है
जो विरोध परदे पर करता अन्दर जाकर चारण है
भाषण और व्यवहार का अन्तर बढता जाता है भाई,
इस अन्तर को नित कम करना सचमुच यही निवारण है

वे कहते हम सब हैं सच्चे दूध के सारे धुले हुए हैं
जब रहस्य परदे पर खुलता हंगामे पर तुले हुए हैं
पक्ष विपक्ष के भाषण में ही असली मुद्दा खो जाता है,
एक थैली के चट्टे बट्टे आपस में सब मिले हुए हैं

कर कोशिश बेकार हाथ को रोजगारों में फँसाने की
रोज घरौंदे उजड रहे हैं कोशिश उन्हें बसाने की
इस प्रतियोगी युग ने छीनी सबके चेहरे की मुस्कान,
फिर भी अपनी कोशिश रहती हँसने और हँसाने की

26 comments:

स्वप्न मञ्जूषा said...

कर कोशिश बेकार हाथ को रोजगारों में फँसाने की।
रोज घरौंदे उजड रहे हैं कोशिश उन्हें बसाने की।
इस प्रतियोगी युग ने छीनी सबके चेहरे की मुस्कान,
फिर भी अपनी कोशिश रहती हँसने और हँसाने की।।
बहुत बढ़िया लिखा है आपने भईया....
एकदम सटीक ....

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सुंदर जी. शुभकामनाएं.

रामराम.

Satish Saxena said...

मनोरमा को अपने पसंदीदा ब्लाग में शैमिल कर रहा हूँ दुःख है की भूल कैसे गया !

विनोद कुमार पांडेय said...

सिर्फ सोचने से क्या होता अच्छा है कुछ कर जाना।
नहीं माँगकर भीख दया की हक की खातिर लड जाना।
न जाने किस नयी आस में घुट घुट कर जीते हैं लोग,
बार बार मरने से अच्छा एक बार ही मर जाना।।

bahut badhiya line..
sundar prayas aapki..badhayi..

M VERMA said...

वाद हजारों हमने देखे सब विवाद का कारण है।
जो विरोध परदे पर करता अन्दर जाकर चारण है।
इतने रंग बिखेरे है आपने अपनी इस रचना मे. बिलकुल सटीक

सदा said...

आँधियाँ आती जाती रहती है,
दीप को दीप से जलाता हूँ।।

बहुत ही सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति, आभार्

नीरज गोस्वामी said...

न जाने किस नयी आस में घुट घुट कर जीते हैं लोग,
बार बार मरने से अच्छा एक बार ही मर जाना।।

बहुत खूब रचना है श्यामल जी...हर पंक्ति अपने आपमें सन्देश है जीवन जीने का...वाह.
नीरज

दिगम्बर नासवा said...

पक्ष विपक्ष के भाषण में ही असली मुद्दा खो जाता है,
एक थैली के चट्टे बट्टे आपस में सब मिले हुए हैं

sateek लिखा है आपने इस rachna में, sachaai ........... lajawaab

निर्झर'नीर said...

न जाने किस नयी आस में घुट घुट कर जीते हैं लोग,
बार बार मरने से अच्छा एक बार ही मर जाना।।

kya marmsparshi bhaav hai...speechless

हें प्रभु यह तेरापंथ said...

बहुत सुंदर जी.
मगलकामनाओ सहीत
हे प्रभु यह तेरापन्थ
मुम्बई टाईगर

ओम आर्य said...

ढेरो शुभकामनाये.........सुन्दर

IMAGE PHOTOGRAPHY said...

umda rachana

Vinay said...

मनोरमा जी बहुत अच्छी अभिव्यक्ति

---
चाँद, बादल और शाम

Prem Farukhabadi said...

वे कहते हम सब हैं सच्चे दूध के सारे धुले हुए हैं।
जब रहस्य परदे पर खुलता हंगामे पर तुले हुए हैं।
पक्ष विपक्ष के भाषण में ही असली मुद्दा खो जाता है,
एक थैली के चट्टे बट्टे आपस में सब मिले हुए हैं।।


bahut sunadr!!!!!!

डॉ आशुतोष शुक्ल Dr Ashutosh Shukla said...

रोज घरौंदे उजड रहे हैं कोशिश उन्हें बसाने की। bahut sunder abhivyakti hai...badhai

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर रचना है जी आप की .
धन्यवाद

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

रोज मैं गीत नया गाता हूँ।
सोने वाले को ही जगाता हूँ।
आँधियाँ आती जाती रहती है,
दीप को दीप से जलाता हूँ।।

सुमन जी!
बेहतरीन गीत रचा है।
बधाई!

निर्मला कपिला said...

पक्ष विपक्ष के भाषण में ही असली मुद्दा खो जाता है,
एक थैली के चट्टे बट्टे आपस में सब मिले हुए हैं
बिलकुल सट्ीक अभिव्यक्ति है बहुत बहुत बधाई

श्यामल सुमन said...

जोड़ तोड़ कुछ शब्द जुटाये अनुभव है आधार।
बना सुमन बड़भागी है जो मिला ढ़ेर सा प्यार।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.

Unknown said...

zabardast !
kamaal !
anupam geet.............BADHAAI !

मुकेश कुमार तिवारी said...

श्यामल जी,

सद्‍भावों से भरी हुई कविता एक अच्छे और सच्चे जीवन का सार लगी :-

कर कोशिश बेकार हाथ को रोजगारों में फँसाने की।
रोज घरौंदे उजड रहे हैं कोशिश उन्हें बसाने की।
इस प्रतियोगी युग ने छीनी सबके चेहरे की मुस्कान,
फिर भी अपनी कोशिश रहती हँसने और हँसाने की।।

आपसे बातकर बहुत अच्छा लगा।

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

Gyan Dutt Pandey said...

बहुत सुन्दर। ऐसे ही भावों के गीत रोज गाते रहें!

Razi Shahab said...

bahut sundar

Dev said...

Roj mai naya geet gata hoon...
Deep se deep ko jalata hoon..

Bahut sundar rachana..really its awesome...

Regards..
DevSangeet

shama said...

Harek pankti doharaayee ja sakti hai...harek rachnakee...! Kaash is sahajta ke saath mai bhee likh patee...!

http://lalitlekh-thelightbyalonelypath.blogspot.com

http://shamasansmaran.blogspot.com

http://kavitasbyshama.blogspot.com

http://shama-kahanee.blogspot.com

http:aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com

http://shama-baagwaanee.blogspot.com

मनोज गुप्ता said...

कम ही लोग बचे हैं सच्चे आज हमारे भारत में,
उनके श्वेत वस्त्र पे हमने दाग लगाना सीख लिया

बहुत सुन्दर रचना बहुत सुन्दर ब्लॉग. आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा.

हाल की कुछ रचनाओं को नीचे बॉक्स के लिंक को क्लिक कर पढ़ सकते हैं -
विश्व की महान कलाकृतियाँ- पुन: पधारें। नमस्कार!!!