साथी सुख में बन जाते सब दुख में कौन ठहरता है
मेरे आँगन का बादल भी जाने कहाँ विचरता है
कैसे हो पहचान जगत में असली नकली चेहरे की
अगर पसीने की रोटी हो चेहरा खूब निखरता है
फर्क नहीं पड़ता शासन को जब किसान भूखे मरते
शेयर के बढ़ने घटने से सत्ता-खेल बिगड़ता है
इस हद से उस हद की बातें करता जो आसानी से
और मुसीबत के आने से पहले वही मुकरता है
बड़ी खबर बन जाती चटपट बड़े लोग की खाँसी भी
बेबस के मरने पर चुप्पी, कैसी यहाँ मुखरता है
अनजाने लोगों में अक्सर कुछ अपने मिल जाते हैं
खून के रिश्तों के चक्कर में जीवन कहाँ सँवरता है
करते हैं श्रृंगार ईश का समय से पहले तोड़ सुमन
जो बदबू फैलाये सड़कर मुझको बहुत अखरता है
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28 comments:
kya baat hai ..
कैसे हो पहचान जगत में असली नकली चेहरे की।
अगर पसीने की रोटी हो चेहरा खूब निखरता है।।
________bahut khoob !
लाजवाब. शुभकामनाएं.
रामराम.
करते हैं श्रृंगार प्रभु का समय से पहले तोड़ सुमन।
सड़कर बदबू फैलाये जो मुझको बहुत अखरता है।।
bahut khoob.
bahut sundar,
teekha prahar sarkaar aur prashasan par..kisanon ki vyatha uthakar..
badhayi..
अनजाने लोगों में अक्सर कुछ अपने मिल जाते हैं।
खून के रिश्तों के चक्कर में जीवन कहाँ सँवरता है।।
बहुत ही सही कहा आपने, बेहतरीन प्रस्तुति के लिये आभार्
एक बहुत ही अच्छी रचना....
अरे वाह, जीवन के गहन अनुभवों को आपने गजल में बखूबी उतार दिया है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
bahut hi khoobsoorat aks dikha diya hai aapne jeevan ka.
sunder rachana,ek teekha vaar hi kiya hai,bahut badhiya.
बड़ी खबर बन जाती चटपट बड़े लोग की खाँसी भी।
बेबस के मरने पर चुप्पी, कैसी यहाँ मुखरता है।।
अनजाने लोगों में अक्सर कुछ अपने मिल जाते हैं।
खून के रिश्तों के चक्कर में जीवन कहाँ सँवरता है।।
क्या बात कही आपने.......एकदम मुग्ध कर लिया.....वाह !!!
आपकी लेखनी को नमन....
ये दुनिया की रीत, सुख सब साथी और दुख मे न कोइ
साथी सुख में बन जाते सब दुख में कौन ठहरता है।
मेरे आँगन का बादल भी जाने कहाँ विचरता है......
खुबसुरत कविता
इस हद से उस हद की बातें करते जो आसानी से।
और मुसीबत के आते ही पहले वही मुकरता है.
बहुत सुन्दर..........
good
करते हैं श्रृंगार प्रभु का समय से पहले तोड़ सुमन।
जो बदबू फैलाये सड़कर मुझको बहुत अखरता है।।
बहुत ही सुन्दर ...........
देता हूँ आभार सभी को फिर भी मन में टीस बची।
मिला समर्थन प्यार हमेशा मुझको वही जकड़ता है।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
suman ji aati uttan rachana
अनजाने लोगों में अक्सर कुछ अपने मिल जाते हैं।
खून के रिश्तों के चक्कर में जीवन कहाँ सँवरता है।।
बढ़िया सुन्दर रचना
again good one!
बड़ी ही सुन्दर रचना लाजवाब .
बड़ी खबर बन जाती चटपट नेताओं की खाँसी भी।
बेबस के मरने पर चुप्पी, कैसी यहाँ मुखरता है।।
सुन्दर रचना।
श्यामल जी,
एक से बढ़कर एक शेर कहें है गज़ल में, वाह!!!
रचना की अहम पंक्तियाँ जो दिल को छू जाती हैं :-
मेरे आँगन का बादल भी जाने कहाँ विचरता है।।
अगर पसीने की रोटी हो चेहरा खूब निखरता है।।
खून के रिश्तों के चक्कर में जीवन कहाँ सँवरता है।।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
अनजाने लोगों में अक्सर कुछ अपने मिल जाते हैं।
खून के रिश्तों के चक्कर में जीवन कहाँ सँवरता है।।
अत्यन्त सवेदनशील अभिव्यक्ति...एक तीखापन जो हर शेर पर एक सुदृढ़ चोट करता हैं....साधू ।
अगर पसीने की रोटी हो चेहरा खूब निखरता है।।
bahut khoob
बहुत बढिया लिखा है !!
बड़ी खबर बन जाती चटपट बड़े लोग की खाँसी भी।
बेबस के मरने पर चुप्पी, कैसी यहाँ मुखरता है।।
बहुत ही गहरे की बात कही है.
www.bebkoof.blogspot.com
kal aapki sab rachnaye pad daali achcha likhte hai bhasha ki saadgi men dam hai shubhkamnayen --prem
अनजाने लोगों में अक्सर कुछ अपने मिल जाते हैं।
खून के रिश्तों के चक्कर में जीवन कहाँ सँवरता है।।
bahut badhiya...
aur ekdam katu satya hai...
फर्क नहीं पड़ता शासन को जब किसान भूखे मरते।
शेयर के बढ़ने घटने से सत्ता-खेल बिगड़ता है।।
इन आगो से आग लेकर मैं आग जलाना चाहता हूँ ,,,
और नहीं कुछ कर सकता भारत का दुर्भाग्य जलाना चाहता हूँ
मेरा प्रणाम स्वीकार करे
सादर प्रवीण पथिक
9971969084
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