मंजिल निश्चित पथ अनजान,चतुराई का क्या अभिमान?
जीवन मौत संग चलते हैं,आगत का किसको है भान?
व्याप्त अंधेरा कम करने को, क्षीण ज्योति भी ले आता।
रवि शशि तारे बात दूर की, जुगनू भी मैं बन पाता।।
कोई दूर न सभी पास है,कौन आम और कौन खास है?
अपने पराये का अन्तर पर,सबसे सबको लगी आस है।
इस उलझन की चिर सुलझन का, कोई राह दिखा जाता।
रवि शशि तारे बात दूर की, जुगनू भी मैं बन पाता।।
अधिक है आशा शेष निराशा,भौतिक सुख की दृढ़ जिज्ञासा।
तीन भाग से अधिक है पानी,फिर भी क्यों आधा जग प्यासा?
मृगतृष्णा की भाग दौड़ से, किसी तरह सब बच जाता।
रवि शशि तारे बात दूर की, जुगनू भी मैं बन पाता।।
ज्ञान यहाँ विज्ञान यहाँ है,अच्छाई भी जहाँ तहाँ है।
धर्म न्याय की बातें होतीं,फिर भी सबको त्राण कहाँ है?
क्या रहस्य है इसके पीछे, कोई मुझको सिखलाता।
रवि शशि तारे बात दूर की, जुगनू भी मैं बन पाता।।
सब मिल सकता जिसकी चाहत,हो कोई क्यों हमसे आहत?
भीड़ तीर्थ में यज्ञ भक्ति में,है मानवता क्यों मर्माहत?
काँटे सुमन संग पलते क्यों, कोई भेद बता जाता।
रवि शशि तारे बात दूर की, जुगनू भी मैं बन पाता।।
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26 comments:
waah shyaamal sumanji,
pahli chaar panktiyon me hi aapne abhibhoot kar diya
geet ka shreeganesh hi aapne shikhar se kiya hai
badhaai
bahut bahut badhaai is udbodhan-geet k liye......
हम भी आपके संग है मगर सुमन जी कांटे नही है।
sundar rachna ke liye badhai. gaagar men saagar bharne vali abhivyakti hai.
बहुत ख़ूबसूरत रचना! रचना की हर एक लाइन इतना सुंदर है की कहने के लिए अल्फाज़ कम पर गए! मुझे बेहद पसंद आया ! आपकी लेखनी को मेरा सलाम!
मेरे नए ब्लॉग पर आपका स्वागत है -
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com
अच्छी कविता, अच्चे सवालों के साथ !!
waah.........har line apna hi arth liye hai..........padhkar aisa laga jaise pushp ki abhilasha ek baar phir padh rahi hun......lajawaab
ज्ञान यहाँ विज्ञान यहाँ है।
अच्छाई भी जहाँ तहाँ है।
धर्म न्याय की बातें होतीं,
फिर भी सबको त्राण कहाँ है?......bahut sahi
बहुत ही सुन्दर भाव और विचार के धनी हो ......बहुत बहुत बधाई
सच को सींचती रचना
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मानव मस्तिष्क पढ़ना संभव
बहुत सुन्दर रचना.
बहुत ख़ूबसूरत रचना
जाने कितनी बार पढ़ा पर फिर भी मन यह नहीं भरा ...
क्या लिखा है आपने,बस क्या कहूँ.....अद्भुत,अद्वितीय,अप्रतिम.....मन मुग्ध कर लिया आपकी इस रचना ने.....भाव,शब्द चयन,अभिव्यक्ति, लयात्मकता ,सब बेजोड़ है.....वाह ! वाह ! वाह ! सच कहूँ तो इधर हाल में आपने जितनी भी रचनाएँ प्रकाशित की हैं,यह उन सब में से श्रेष्ठ है...
मुलाकात होने पर इसे आपके स्वर में सुनूंगी...
सारी रचना ही बहुत सुन्दर है
ज्ञान यहाँ विज्ञान यहाँ है।
अच्छाई भी जहाँ तहाँ है।
धर्म न्याय की बातें होतीं,
फिर भी सबको त्राण कहाँ है
लाजवाब बधाई
ब्लाग जगत का स्नेह समर्थन है लेखन आधार।
हुआ सुमन अभिभूत हृदय से प्रेषित है आभार।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
khubsurat kasak hai dil ki |
dhanyavad
आपकी कविता और शब्दों का चुनाव, दोनों ही ग़ज़ब का है | आप हाल की अपनी कविताओं को पुस्तक का रूप क्यों नहीं देते ?
सुन्दर भाव,
सुन्दर कविता,
बेहतरीन।
बहुत खूबसूरत रचना...
"ज्ञान यहाँ विज्ञान यहाँ है।
अच्छाई भी जहाँ तहाँ है।
धर्म न्याय की बातें होतीं,
फिर भी सबको त्राण कहाँ है?"
वाह क्या खूब पंक्तियाँ लिखी है आपने।
सुमन, जी आपको बहुत बहुत बधाई और आभार।
स्यामल सुमन जी आप से सारी बातें तो हो चुकी है अब यह क्या कमेन्ट दू ?
mail id -
pankajrago@gmail.com
तीन भाग से अधिक है पानी फिर भी जग इतना प्यासा ...पानी के माध्यम से मानव की भौतिक तृष्णा पर भी क्या खूब प्रहार किया है ..बहुत बढ़िया ..!!
ज्ञान यहाँ विज्ञान यहाँ है।
अच्छाई भी जहाँ तहाँ है।
धर्म न्याय की बातें होतीं,
फिर भी सबको त्राण कहाँ है
bahut hi saarthak kavita...
bhav paksh bahut hi sundar bana hai bhaiya..
sheetal kar de sabko, sundar kavita ya kavita hee kavita...
बहुत ही बेहतरीन रचना. आभार.
BAHUT SUNDER.
बहुत ही अच्छी कविता लिखी है
आपने काबिलेतारीफ बेहतरीन
SANJAY KUMAR
HARYANA
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
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