सभी संतों ने सिखलाया, प्रभु का नाम है जपना
सुनहरे कल भी आयेंगे, दिखाते रोज एक सपना
वतन आजाद वर्षों से बढ़ी जनता की बदहाली,
भले छत हो न हो सर पे, ये सारा देश है अपना
कोई सुनता नहीं मेरी, तो गाकर फिर सुनाऊँ क्या?
सभी मदहोश अपने में, तमाशा कर दिखाऊँ क्या?
बहुत पहले भगत ने कर दिखाया था जो संसद में,
ये सत्ता हो गयी बहरी, धमाका कर दिखाऊँ क्या?
मचलना चाहता है मन, नहीं फिर भी मचल पाता
जमाने की है जो हालत, कि मेरा दिल दहल जाता
समन्दर डर गया है देखकर आँखों के ये आँसू,
कलम की स्याह धारा बनके, शब्दों में बदल जाता
लिखूँ जन-गीत मैं प्रतिदिन, ये साँसें चल रहीं जबतक
कठिन संकल्प है देखूँ, निभा पाऊँगा मैं कबतक
उपाधि और शोहरत की ललक में फँस गयी कविता,
जिया हूँ बेचकर श्रम को, कलम बेची नहीं अबतक
खुशी आते ही बाँहों से, न जाने क्यों छिटक जाती?
मिलन की कल्पना भी क्यों, विरह बनकर सिमट जाती?
सभी सपने सदा शीशे के जैसे टूट जाते क्यों?
अजब है बेल काँटों की सुमन से क्यों लिपट जाती?
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35 comments:
desh ke halat par ek gambhir rachna.........kuch panktiyan to lajawab hain......samander dar gaya hai dekhkar aanon ke aansoo...........kya khoob likha hai.
कोई सुनता नहीं मेरी, तो गाकर फिर सुनाऊँ क्या?
सभी मदहोश अपने में, तमाशा कर दिखाऊँ क्या?
बहुत पहले भगत ने कर दिखाया था जो संसद में,
ये सत्ता हो गयी बहरी, धमाका कर दिखाऊँ क्या?
वाह क्या बात है, दिल छू लेनी वाली लाजवाब रचना।
एक गंभीर चिंतन कराती रचना....बहुत अच्छी
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
सुन्दर रचना
गणेश उत्सव पर्व की हार्दिक शुभकामना
लिखूँ जन-गीत मैं प्रतिदिन, ये साँसें चल रहीं जबतक।
कठिन संकल्प है देखूँ, निभा पाऊँगा मैं कबतक।
उपाधि और शोहरत की ललक में फँस गयी कविता,
जिया हूँ बेचकर श्रम को, कलम बेची नहीं अबतक।।
wah suman ji, aapki rachnaon men andolan hai, is andolan ko jari rakhen.
बेहद सम्वेदनशील रचना. भाव अत्यंत सघन और सार्थक है.
साधु साधु !
बहुत अच्छी कविता...........
बधाई !
बहुत पहले भगत ने कर दिखाया था जो संसद में,
ये सत्ता हो गयी बहरी, धमाका कर दिखाऊँ क्या?
सुमन जी बिलकुल ठीक सोच रहे हैं....
आज इसी की जरूरत दिख रही है....
सुन्दर रचना के लिए बधाई स्वीकारें...
गंभीर और गहन भाव!!
बधाई.
गणेश चतुर्थी की मंगलकामनाऐं.
सुमन जी..
कैसे बताउँ आप ने कितने बेहतरीन शब्दों को भाव से रचा है.देशभक्ति तो बसी ही है आपकी कविता मे साथ साथ एक संदेश भी देता है अपने देश के प्रत्येक नागरिक को..जैसे आप ने अपने विचार प्रस्तुत किए वैसे सभी को कुछ बढ़िया सोच रखनी चाहिए...
बहुत बहुत बधाई..
bhahut hi sunder karti hai
likhna jari rake suman ji
i m sanjay bhaskar
from tata indicom haryana
सुंदर भाव से सजी रचना...
गणेश चतुर्थी की मंगलकामनाऐं.
मचलना चाहता है मन, नहीं फिर भी मचल पाता।
जमाने की है जो हालत, कि मेरा दिल दहल जाता।
समन्दर डर गया है देखकर आँखों के ये आँसू,
कलम की स्याह धारा बनके, शब्दों में बदल जाता।।
bahut hi badhiyaa
कोई सुनता नहीं मेरी, तो गाकर फिर सुनाऊँ क्या?
सभी मदहोश अपने में, तमाशा कर दिखाऊँ क्या?
बहुत पहले भगत ने कर दिखाया था जो संसद में,
ये सत्ता हो गयी बहरी, धमाका कर दिखाऊँ क्या?
आप तो जी बस कर ही दो धमाका ........!!
बहुत ही गहरे भाव के साथ लिखी हुई आपकी ये शानदार रचना बहुत पसंद आया! श्री गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनायें!
लिखूँ जन-गीत मैं प्रतिदिन, ये साँसें चल रहीं जबतक।
कठिन संकल्प है देखूँ, निभा पाऊँगा मैं कबतक।
उपाधि और शोहरत की ललक में फँस गयी कविता,
जिया हूँ बेचकर श्रम को, कलम बेची नहीं अबतक।।
ati sundar kahane ke liye kuchh shabd nahi nazar aaye ,magar man khush ho gaya padhkar .
सुमनजी,ब्लॉग की दुनिया में नया दाखिला लिया है. अपने ब्लॉग deshnama.blogspot.com के ज़रिये आपका ब्लॉग हमसफ़र बनना चाहता हूँ, आपके comments के इंतजार में...
सुंदर रचना के लिये बधाई
कोई सुनता नहीं मेरी, तो गाकर फिर सुनाऊँ क्या?
सभी मदहोश अपने में, तमाशा कर दिखाऊँ क्या?
बहुत पहले भगत ने कर दिखाया था जो संसद में,
ये सत्ता हो गयी बहरी, धमाका कर दिखाऊँ क्या?
अति सुन्दर श्यामल सुमन जी
आदरणीय सुमन जी
आपका इनाम तो पक्का हो गया है तो कब आ रहे हैं इनाम लेने ?
और मैं तो बहुत ही संतोषी जीव हूँ थोड़े में ही संतोष कर लेना मेरा परम धर्म है
ब्लॉग में टिपियाने के लिए आभारी हूँ
Saarthak Chintan.
वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को प्रगति पथ पर ले जाएं।
मगर आजकल के सन्त तो प्रभू नाम की आड़ मे माल हड़प कर रहे हैं।
सुन्दर रचना
गणेश उत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ।
कोई सुनता नहीं मेरी, तो गाकर फिर सुनाऊँ क्या?
सभी मदहोश अपने में, तमाशा कर दिखाऊँ क्या?
बहुत पहले भगत ने कर दिखाया था जो संसद में,
ये सत्ता हो गयी बहरी, धमाका कर दिखाऊँक्या?
आप ने भी कम जोरदार धमाका नहीं किया है बहुत जोरदार कविता है बधाई गणेश उत्सव पर्व की हार्दिक शुभकामना
क्या बात कही है ? कलम बेची नहीं अब तक... जी हां, कुछ कलम कभी नहीं बिकती। तब भी नहीं जब बिकना जैसे सांस लेने जैसा हो गया है। शायद इसलिए कलम की सत्ता कभी खत्म नहीं होती ।
अच्छी कविता
रंजीत
sundar kavita gaharai liye huye
सभी कुछ कह दिया शब्दों में ,अब कुछ मैं बताऊँ क्या ,
कहूँ क्या टिप्पणी देकर तेरी उलझन बढाऊँ क्या |
आपकी रचना एक आन्दोलन है इसमें गंभीर चिंतन है हालत का सटीक वर्णन हैं साधुवाद
सुन्दर भाव.....
मिला समर्थन आपसे बहुत मिला है प्यार।
श्यामल का सौभाग्य है प्रेषित है आभार।।
बहुत ही सुन्दर कविता यथार्थ को व्यक्त करती हुई ,, आप की कविता की यही बात मुझे प्रेरणा देती है मेरा प्रणाम स्वीकार करे
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
KOI TO JAROOR SUN RAHA HAI DEKH TO RAHEN HAIN.
SUNDER YATHARTH RACHNA.
कोई सुनता नहीं मेरी, तो गाकर फिर सुनाऊँ क्या?
सभी मदहोश अपने में, तमाशा कर दिखाऊँ क्या?
बहुत पहले भगत ने कर दिखाया था जो संसद में,
ये सत्ता हो गयी बहरी, धमाका कर दिखाऊँ क्या?
किसी कवी ने ठीक ही कहा है :
भगत सिंह फिर कभी काया न लेना भारतवासी की
देश भक्ती की सजा आज भी तुम्हें मिलेगी फांसी की |
बहुत पहले भगत ने कर दिखाया था जो संसद में,
ये सत्ता हो गयी बहरी, धमाका कर दिखाऊँ क्या
AAPKE TEVAR DEKH KAR LAGTA HAI KI KITNA MAN DUKHI HAI ..... LAJAWAAB RACHNA HAI SUMAN JI
खुशी आते ही बाँहों से, न जाने क्यों छिटक जाती?
मिलन की कल्पना भी क्यों, विरह बनकर सिमट जाती?
सभी सपने सदा शीशे के जैसे टूट जाते क्यों?
अजब है बेल काँटों की सुमन से क्यों लिपट जाती?
बहुत खूब
विरह है जिसकी याद मन को तडपाती है
गम ही साथ निभाते हैं खुशी ही भाग जाती है
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