Friday, September 11, 2009

पत्थर

पत्थर तोड़ तोड़ वर्षों से जिनकी आँखें पथरायी।
पथरीले राहों पर चलना उनकी किस्मत क्यों भाई?
दुर्बल तन पर कोशिश कर पत्थर पे घास उगाते हैं।
नहीं पसीजे जो पत्थर वो पत्थर पूजे जाते हैं।
आपस में पत्थर रगड़ें तो ताप निकल ही जाता है।
पत्थर बनता तब जबाव जब प्रश्न ईंट-सा आता है।।

सनम भी पत्थर के होते हैं पत्थर-दिल होते इन्सान।
पत्थर पे सर जितना पटको क्या खुश होगा यह भगवान।
कर्मकाण्ड और रश्म-रिवाजें पत्थर की बन गयी लकीर।
जल-धारा संग बहते जाना छोटे पत्थर की तकदीर।
पड़े रास्ते के पत्थर को जब-तब-सब ठुकराता है।
पत्थर बनता तब जबाव जब प्रश्न ईंट-सा आता है।।

पत्थरबाजी करके अब भी होली लोग मनाते हैं।
कीचड़ में पत्थर मारो तो छींटे खुद पे आते हैं।
शिक्षक वैद्य वकील व नेता प्रायः पत्थर से दिखते।
पत्थर-सा व्यवहार है उनका वे किस्मत भी हैं लिखते।
सुमन भी पत्थर बन सकता, जब जग ये रीति निभाता है।
पत्थर बनता तब जबाव जब प्रश्न ईंट-सा आता है।।

27 comments:

स्वप्न मञ्जूषा said...

पत्थर की इतनी सारी उपयोगिता !!!
वाह भईया... कमाल का लिखा है
अद्वीतीय...

संगीता पुरी said...

आपने पत्‍थरों पर बढिया रचना लिखी हैं .. पर सबसे भावपूर्ण ये दोनो लाइनें हैं ....
दुर्बल तन पर कोशिश कर पत्थर पे घास उगाते हैं।
नहीं पसीजे जो पत्थर वो पत्थर पूजे जाते हैं।

पर यदि सबो को अपने कर्म का फल मिलता हो .. तो कैसे पसीज सकते हैं वे .. इसके बावजूद हमलोग अच्‍छे कर्म नहीं कर पा रहे हैं !!

mehek said...

दुर्बल तन पर कोशिश कर पत्थर पे घास उगाते हैं।
नहीं पसीजे जो पत्थर वो पत्थर पूजे जाते हैं।
waah bahut khub

Mithilesh dubey said...

क्या बात है बहुत खुब। गजब की अभिव्यक्ति दिखी आपकी इस रचना में। बधाई

रश्मि प्रभा... said...

पत्थरबाजी करके अब भी होली लोग मनाते हैं।
कीचड़ में पत्थर मारो तो छींटे खुद पे आते हैं।
शिक्षक वैद्य वकील व नेता प्रायः पत्थर से दिखते।
पत्थर-सा व्यवहार है उनका वे किस्मत भी हैं लिखते।
सुमन भी पत्थर बन सकता, जब जग ये रीति निभाता है।
bahut hi shaandaar abhivyakti

राज भाटिय़ा said...

वाह आप ने पत्थरो से भी इअतनी सुंदर कविता बना दी, धन्यवाद

Anil Pusadkar said...

जो नही पसीज रहे है वो पत्थर ही पूजे जा रहे है,इससे बडा सच और कुछ नही है आज की दुनिया मे।

Chandan Kumar Jha said...

बहुत सुन्दर रचना । हर पंक्ति पत्थर की पुन:आबृति अद्बुत है । आभार ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

पत्थरबाजी करके अब भी होली लोग मनाते हैं।
कीचड़ में पत्थर मारो तो छींटे खुद पे आते हैं।

बहुत बढ़िया!
पत्थर के चमत्कार को नमस्कार!

Udan Tashtari said...

बहुत जबरदस्त रचना...क्या बात है!!

हेमन्त कुमार said...

दुर्बल तन पर कोशिश कर पत्थर पे घास उगाते हैं।
नहीं पसीजे जो पत्थर वो पत्थर पूजे जाते हैं ।
बेहतरीन । आभार ।

अमिताभ मीत said...

बेहतरीन ... बेहतरीन. क्या बात है.

संजय तिवारी said...

आपकी लेखन शैली का कायल हूँ. बधाई.

vandana gupta said...

behtreen rachna rach di........pattharon ke shahr mein patthar hi baste hain.
pattharon ke jawab mein yahan,
patthar hi baraste hain.

sach kaha insaan dheere dheere patthar hi banta ja raha hai.

read my new blog--------http://ekprayas-vandana.blogspot.com

Mishra Pankaj said...

श्यामल सुमन जी नमस्कार !

काफी दिन बाद पढ़ने को मिला लेकिन जोरदार

Harshvardhan said...

prabhu ji aapki kavita ka kyaal hu... nice post........

सर्वत एम० said...

आपने तो पत्थर में जान पैदा कर दी बन्धु. पत्थरदिल इंसान और पसीने से पत्थर सींचने वाले मेहनतकशों का सफल चित्रण करने के लिए बधाई.

श्यामल सुमन said...

आप सबके प्रोत्साहन ने नयी उर्जा दी है। श्यामल सुमन का विनम्र आभार आप सभी के प्रति प्रेषित है। यूँ ही स्नेह बनाये रखने की कृपा करें।

संजय भास्‍कर said...

क्या बात है बहुत खुब\
बेहतरीन ... बेहतरीन.

http://sanjaybhaskar.blogspot.com

निर्मला कपिला said...

कौन कहता है कि पत्थर बोल नहीं सकते आपकी कविता मे तो खूब बोल रहे हैं बहुत सुन्दर पोस्ट है बधाई

SACCHAI said...

" suman saheb ,patther to bolte hai ....bahut hi sashakt lekhan kiya hai aapne ...aapki lekhani ko salam "

http://eksacchai.blogpost.com

http://hindimasti4u.blogpost.com

Urmi said...

वाह बहुत ही सुंदर और अद्भूत रचना बिल्कुल नए अंदाज़ में आपने प्रस्तुत किया है! इस बेहतरीन रचना के लिए बधाइयाँ!
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com

रंजना said...

बस और कुछ नहीं कह सकती...नमन है आपकी विद्वता और लेखनी को....

भाव अभिव्यक्ति के लिए शब्दों का अकूत भण्डार है आपके पास...

शरद कोकास said...

पत्थर के सनम पत्थर के खुदा पत्थर के भी इंसा पाये है.. किसी शायर की यह गज़ल याद आ गई .. बधाई

Kusum Thakur said...

"दुर्बल तन पर कोशिश कर पत्थर पे घास उगाते हैं।
नहीं पसीजे जो पत्थर वो पत्थर पूजे जाते हैं।"
वाह बहुत खूब कही है , अद्भुत .

अपूर्व said...

नहीं पसीजे जो पत्थर वो पत्थर पूजे जाते हैं
क्या बात है..आपने तो पत्थर का खूबसूरत शिल्प बना दिया इस रचना के द्वारा

संजय भास्‍कर said...

आपने तो पत्थर का खूबसूरत शिल्प बना दिया इस रचना के द्वारा

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विश्व की महान कलाकृतियाँ- पुन: पधारें। नमस्कार!!!