जब भी कोई नयी कविता बनाता हूँ,
खुशी से आत्म-मुग्ध हो जाता हूँ,
अगर कोई सुनने वाला नहीं मिलता,
तो अपने आप गुनगुनाता हूँ।
हजारों पत्नियाँ पतिव्रता होतीं हैं,
लेकिन मैं पत्नीव्रत पति के रूप में प्रसिद्ध हूँ,
घर, कपड़े की सफाई से लेकर,
चूल्हा-चौका के कार्यों में सिद्ध हूँ।
मेरे मित्र और परिचित अक्सर मेरा मजाक उड़ाते हैं,
समय, बेसमय तरह तरह के उपनाम से मुझे चिढ़ाते हैं,
मैं बिना प्रतिवाद के सब सुन लेता हूँ,
बदले में उन नासमझों को एक फीकी मुस्कान भर देता हूँ।
मेरी विवशता कुछ खास है,
पत्नी को काम के बोझ से मुक्त कराने का एक छोटा प्रयास है,
ताकि वो आसानी से मेरी कविता सुन सके,
क्योंकि मुझे एक अदद श्रोता की तलाश है।
लगातार कविता सुनते सुनते पत्नी हो गयी तंग,
पलक झपकते ही दिखलाया उसने अपना असली रंग,
बोली-हे कविरूपधारी पतिदेव,
मैं तो आपके चरणों की दासी हूँ,
सात जन्मों तक साथ निभाऊँ,
इसी आस की प्यासी हूँ।
वादा करती हूँ स्वामी, आप जैसा कहेंगे वैसा ही करूँगी,
पर एक विनती है प्राणनाथ,
भबिष्य में आपकी कविता नहीं सुनूँगी।
टूट गयी मेरी सब आशा,
पत्नी ने दी घोर निराशा,
कई बार सुन चुका हूँ, भगवान के घर में देर है,
पर वहाँ हमेशा के लिए नहीं अंधेर है।
रात के बारह बजे मेरी एक कविता पूरी हुई,
बेरहम समय के कारण प्रिय श्रोताओं से दूरी हुई,
हिम्मत करके खोला गेट,
बाहर मिला एक भिखारी ग्रजुएट,
मन हुआ आर्कमिडीज की तरह यूरेका यूरेका चिल्लाऊँ,
तुरन्त खयाल आया,
क्यों न आज इसी भिखारी को चाय पिलाऊँ,
भिखारी चाय पीने को हुआ तैयार,
मेरे मन में उपजा प्यार,
मैंने झटपट चाय चढ़ायी,
और तरातर उसे चार कविता सुनायी,
पाँचवीं की जब बारी आयी,
भिखारी लेने लगा जोर की जम्हाई,
यह परमानेन्ट श्रोता बन सकता है,
सोचकर मेरे मन का सुमन खिला,
पर हाय री मेरी किस्मत,
उस दिन से आज तक मुझे वह भिखारी नहीं मिला।
हारना मुझे नहीं स्वीकार,
फिर से मैंने किया विचार,
अपने जैसे बेचैन आत्माओं का बनाया लेखक संघ,
कुछ ही दिनों में सबने बदल लिया अपना ढ़ंग,
यूँ तो पढ़े लिखे लोगों ने समाज को बहुत कुछ दिया है,
पर चालाकी से उसी ने समाज का बहुत नुकसान भी किया है,
ठीक उसी प्रकार के चालाक कवि,
अपनी अपनी कविता सुनाकर सभागार से बाहर जाने लगे,
मेरे जैसे कुछ बुद्धू कविगण,
वाह वाह की तेज नाखूनों से एक दूसरे की पीठ खुजाने लगे।
वैसे भी आजादी के बाद से अबतक,
शेयर बाजार के सूचकांक की तरह,
श्रोताओं में भारी गिरावट और वक्ताओं में उछाल दर्ज है,
फिर बेरोजगारों की इस भारी भीड़ को,
श्रोता बना लेने में क्या हर्ज है,
नेता से लेकर अभिनेता तक सभी यही नुस्खा अपनाते हैं,
इसी बहाने, सीजनल ही सही,
बेरोजगारों को रोजगार तो मिल जाते हैं,
अपनी अपनी हैसियत के हिसाब से,
भाड़े में श्रोता जुगाड़ कर लिया जाता है,
यह कैसी व्यवस्था की बेबसी है कि,
आदमी को श्रोता से सामान बना दिया जाता है।
Thursday, September 17, 2009
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48 comments:
बहुत सुंदर रचना .. यूं तो हास्य व्यंग्य का पुट होने से कविता का आरंभ बहुत ही मजेदार ढंग से हुआ .. पर इसके समानांतर एक कवि का दर्द भी उभरकर आया .. जो अंत में कुछ सोंचने को मजबूर करता है .. हिन्दी साहित्य में पाठक क्यूं नहीं हैं ?
श्यामल जी
कवि की कविता सब सुने और पढे इसलिए ही ब्लाग का निर्माण हुआ है। निराश मत होइए, सुनाने का अवसर नहीं भी मिले तो क्या पढाने का अवसर तो अब मिलने ही लगा है। अच्छी कविता बधाई।
बहुत खुब लिखा है आपने। हर एक पंक्ति लाजवाब है। इस शानदार रचना के लिए बहुत-बहुत बधाई
हास्य के भाव के साथ साथ आपने संदेश देती हुई एक सुंदर भाव उकेरा है, जो तारीफे काबिल है.बधाई!!!
jabardast:)pehle habd se aakhari shabd tak haste rahe:).shrota ki kami kaise huyi,hum sabhi ko bandh ke rakha hai kavita ne,do baar padhke bhi haste hi jaa rahe hai:).
सुमन जी
आपको बहुत बहुत बधाई .
हास्य व्यंग की यह रचना बहुत ही सुन्दर है .
जो मुझे कुछ पुरानी बातें याद दिला देती हैं.
श्यामल जी लाजवाब् व्यंग् है व्यंग क्या कवियों के जीवन की सच्चाई है मत पूछीये कि कवि को अपनी कवितायें पढवाने के लिये क्या क्या करना पडता हैपत्नी को काम के बोझ से मुक्त कराने का एक छोटा प्रयास है,
ताकि वो आसानी से मेरी कविता सुन सके,
क्योंकि मुझे एक अदद श्रोता की तलाश है।
मगर है रे कवि इतना करने पर भी शोता नहीं टिकते शुभकामनायें अब तो हम सब हैं ना निराशा के दिन गये अब घर का काम छोड दें हा हा हा
सटीक और हकीकत को बयां करती
अच्छी रचना आभार.
पत्नी को काम के बोझ से मुक्त कराने का एक छोटा प्रयास है, ताकि वो आसानी से मेरी कविता सुन सके, क्योंकि मुझे एक अदद श्रोता की तलाश है...।
दर्द के तूफ़ान से व्यंग्य की कश्ती अक्सर लड़ती है...
और क्या कहूँ.. धन्यवाद आपका!!
बढिया व्यंग सुमन जी मजा आ गया
hasya vyangya mein bhi bahut hi badhiya sandesh diya hai..........vaise halat aaj aise hi hain.........bahut hi khoobsoorti se bhavon ko ukera hai.
रात के बारह बजे मेरी एक कविता पूरी हुई,
बेरहम समय के कारण प्रिय श्रोताओं से दूरी हुई,
हिम्मत करके खोला गेट,
बाहर मिला एक भिखारी ग्रजुएट,
मन हुआ आर्कमिडीज की तरह यूरेका यूरेका चिल्लाऊँ,
तुरन्त खयाल आया,
क्यों न आज इसी भिखारी को चाय पिलाऊँ,
भिखारी चाय पीने को हुआ तैयार,
मेरे मन में उपजा प्यार,
मैंने झटपट चाय चढ़ायी,
और तरातर उसे चार कविता सुनायी,
पाँचवीं की जब बारी आयी,
भिखारी लेने लगा जोर की जम्हाई,
यह परमानेन्ट श्रोता बन सकता है,
सोचकर मेरे मन का सुमन खिला,
पर हाय री मेरी किस्मत,
उस दिन से आज तक मुझे वह भिखारी नहीं मिला।
hum bhawnaaon ke bhukhe bhikhari hain n.....
wah sumanji, bahut sateek likha hai aur sachchai bhi.
behatareen. rachna.
बहुत मजेदार ....
bahut hi zabardast hasya vyang har line do inch ki muskaan ke aage sochne par vivash karti rahi rachnakaar ki stithi par .kaamal ke kalakar hai aap .maza bahut maza aaya .
has-parihas ke sath aj ke kutiltaon par gahra vyangya... badhaee
आनन्द आ गया. मनोरंजक भी है और शिक्षापद भी.
कविता का प्रकाश कुछ ऐसा ही है । आभार ।
पत्नीव्रत-धर्म का पालन करते हुए, सुमनजी की सहमति के बाद, आप सभी स्नेहीजनों के प्रति श्यामल विनम्र आभार प्रेषित करता है।
आप सब का समर्थन - मेरी कलम की उर्जा है। स्नेह बनाये रखें।
बहुत सुनंदर कविता है आपने अंकल मैने अभी अपने ब्लोग पर रमज़ान पर लिखा है देखियेगा ज़रुर ।
bhai sahab chay banwaeeye kavita sunayeeye achchha lga ,ki lohe ke kary dil wale itne komal bhi hote hain, sadhuwad,
अपनी अपनी हैसियत के हिसाब से,
भाड़े में श्रोता जुगाड़ कर लिया जाता है,
भाडे की यह मंडी कहाँ है मुझे भी कुछ श्रोताओ की तलाश है
बहुत खूब
सुमन जी!
बहुत सुन्दर है यह हास्य व्यंग्य!
अच्छी मारक क्षमता है!
बधाई।
बहुत बढ़िया व्यग्य रचना . पत्निव्रता शब्द कुछ और कहानी तो नहीं कह रहा है .... हा हा हा
बहुत सुंदर रचना
वाह सुमन जी वाह ....
हजारों पत्नियाँ पतिव्रता होतीं हैं,
लेकिन मैं पत्नीव्रत पति के रूप में प्रसिद्ध हूँ,
--------
आप धन्य हैं!
पत्नीव्रत निभाते भी कवि मूर्धन्य हैं! :)
पत्नी को काम के बोझ से मुक्त कराने का एक छोटा प्रयास है,
ताकि वो आसानी से मेरी कविता सुन सके,
क्योंकि मुझे एक अदद श्रोता की तलाश है।
बहुत से रंग बिखेरती रचना...
यह केवल हास्य व्यंग्य कहाँ है श्यामल जी,यह तो यथार्थ वर्णित कर दिया आपने....पर हाँ ,आपकी इस रोचक शैली और अद्भुत कविता ने आनंदित कर दिया....
बहुत बहुत लाजवाब !!! आभार आपका ....
आपको हास्य व्यंग्य की तरफ मुड़ते देख अच्छा लगा
हजारों पत्नियाँ पतिव्रता होतीं हैं,
लेकिन मैं पत्नीव्रत पति के रूप में प्रसिद्ध हूँ,
-हमारी कथा लिख दी.. :)
bahut badhia.
likhte rahiye.
बेहतरीन रचा है | लेकिन आपकी कविता सिर्फ हास्य व्यंग नहीं है, इसमें गहरा भाव भी है |
धन्यवाद !
आप सभी के स्नेह और समर्थन के प्रति श्यामल सुमन का विनम्र आभार प्रेषित है।
बहुत खूब!!!!!!!!!
हास्य व्यंग्य जिसमे आपने कवि की वास्तविक स्तिथि के साथ साथ अपनी खूबियों को उजागर किया काबिले तारीफ़ है
कवि तो कविता लिख देता है पर पाठक नही मिलते
फ़िर भी ये कवि है जो अपने लिखने से नही डिगते
अब तो ब्लॉग भी एक माध्यम बन गया है. लेकिन शायद सुनाने वाला शुकून कवियों को यहाँ नहीं मिल पा रहा :)
wah Bahut hi maja aaya padkar ....par sochne par bhi majboor hue ki aakhir ye paristiti kyon hai.
is majedar rachna ke liye bahut badhai
अगर इस कविता के पक्ष में बात की जाये तो......कविता अभिव्यक्ति नहीं है.......
जो श्रोताओं के तलाश में है......श्रोता के लिए लिखी गयी......है......मुझे व्यंग्य के प्रति इस कविता से कहीं अधिक अपेक्षा है..जो श्रोताओं के लिए न लिखी जाये..न श्रोताओं की तलाश की जाये.......क्या वास्तव में ये ईमानदार कविता है....मुझे इसमें संदेह है...
हजारों पत्नियाँ पतिव्रता होतीं हैं,
लेकिन मैं पत्नीव्रत पति के रूप में प्रसिद्ध हूँ,
घर, कपड़े की सफाई से लेकर,
चूल्हा-चौका के कार्यों में सिद्ध हूँ।
मैं तो आपके चरणों की दासी हूँ,
सात जन्मों तक साथ निभाऊँ,
इसी आस की प्यासी हूँ।
वादा करती हूँ स्वामी, आप जैसा कहेंगे वैसा ही करूँगी,
यह भी संदेह है की..चरणों की दासी पत्नी...पति को प्राणनाथ कैसे मानती है...क्या पति को प्रियवर मानने वाली दासी होती है......और स्वामी तथा दासी के बीच ये कैसा सम्बन्ध है...
Nishant kaushik
www.taaham.blogspot.com
पत्नी को काम के बोझ से मुक्त कराने का एक छोटा प्रयास है, ताकि वो आसानी से मेरी कविता सुन सके, क्योंकि मुझे एक अदद श्रोता की तलाश है
ha ha ha ha
aadarneey bhaiya,
kya kavita likhi hai..
hamto hanste hi rah gaye...aaj kal shrotaaon ki bahut kami ho gayi hai vastav mein..
aur bhabhi ji se acchi shrota kahan milegi bhala..
bahut hi sundar prastuti..
ek kavi ki manodasha ka bahut hi sahi chitranakan kiya hai aapne..
Badhai..aapko bhi aur bhabhi ko bhi.
Pranaam
बहुत सुंदर, हार्दिक बधाईयां।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
टूट गयी मेरी सब आशा,
पत्नी ने दी घोर निराशा,
कई बार सुन चुका हूँ, भगवान के घर में देर है,
पर वहाँ हमेशा के लिए नहीं अंधेर है।
KYA BAAT HAI SIR .....
AAJ KE SAMAY MAI YESA HOTA HE...
हारना मुझे नहीं स्वीकार,
फिर से मैंने किया विचार,
अपने जैसे बेचैन आत्माओं का बनाया लेखक संघ,
कुछ ही दिनों में सबने बदल लिया अपना ढ़ंग,
HUM BHI AAP KE SAATH HAI .......
ATI SUNDR RACHNA HAI , YE AAP KA EK NAYA RANG DEKHNE KO MILA ......
BADHI HO , AUR AASHA RAKHTE HAI KI AAGE BHI AAP SE YESI HASYA VYANG MAI DUBI HUI AUR BHI RACHNAYE PADNE MILEGI ....
इष्ट मित्रों एवम कुटुंब जनों सहित आपको दशहरे की घणी रामराम.
शुक्रिया ! दशहरा मंगलमय हो !
"श्रोताओं में भारी गिरावट और वक्ताओं में उछाल दर्ज है,"
बिलकुल ठीक कहा आपने , पत्नी को पटाने में ना कामयाबी, कोई अचम्भे वाली बात नहीं थी , हर पत्नी का यह नैसर्गिक गुण होता है ! शुभकामनायें !
अखबार वाला जोर-जोर से चीख रहा था-
४३ आदमी बेवकूफ बन गये -४३ आदमी बेवकूफ बन गये
मैने अखबार खरीद लिया।
अखबार वाला अब चीख रहा था-
४४ आदमी बेवकूफ बन गये-४४ आदमी बेवकूफ बन गये।
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मैं भी ४४ वाँ टिप्पणीकार हूँ
अन्यथा न लें आपकी कविता वाकई मजेदार है इसमें कवियों का दर्द छिपा है कि
लिख लिया तो सुनाऊँ किसे-सुन लिया तो समझा किसने- समझ लिया तो क्या हुआ ?
आज गाली का असर तो होता नहीं दिखता व्यंग कितना असरकारी है।
aapko bhi vijaya dashmi ki badhai
.aadami ko saamaan.......
bahut umdaa panktiyaan hain.
सुमन जी अपनी छोटी सी कविता को नश्तर भी बनाया आपने और और दिल का दर्द बहाने का बहाना भी
इतनी अच्छी अभिव्यक्ति के लिए साधुवाद
ek adad kavita sunane ke liye kitane papad belane pade hain ,
aapaki mehanat ke liye dhanywad.
हर व्यक्ति का यही हाल है ! शुभकामनायें
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