Sunday, November 8, 2009

बेबसी

बात गीता की आकर सुनाते रहे
आईना से वो खुद को बचाते रहे

बनते रावण के पुतले हरएक साल में
फिर जलाने को रावण बुलाते रहे

मिल्कियत रौशनी की उन्हें अब मिली
जा के घर घर जो दीपक बुझाते रहे

मैं तड़पता रहा दर्द किसने दिया
बन के अपना वही मुस्कुराते रहे

उँगलियाँ थाम कर के चलाया जिसे
आज मुझको वो चलना सिखाते रहे

गर कहूँ सच तो कीमत चुकानी पड़े
न कहूँ तो सदा कसमसाते रहे

बेबसी क्या सुमन की जरा सोचना
टूटने पर भी खुशबू लुटाते रहे

26 comments:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

उँगलियाँ थाम कर के चलाया जिसे
आज मुझको वो चलना सिखाते रहे

गर कहूँ सच तो कीमत चुकानी पड़े
न कहूँ तो सदा कसमसाते रहे

बेबसी क्या सुमन की जरा सोचना
टूटने पर भी खुशबू लुटाते रहे

बहुत सुन्दर, सुमन जी !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बेबसी क्या सुमन की जरा सोचना
टूटने पर भी खुशबू लुटाते रहे

मख़्ता बहुत बढ़िया रहा।

रश्मि प्रभा... said...

उँगलियाँ थाम कर के चलाया जिसे
आज मुझको वो चलना सिखा रहे
nanhi ungli ek din badee ho jati hai

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सुंदर रचना.

रामराम.

नीरज गोस्वामी said...

गर कहूँ सच तो कीमत चुकानी पड़े
न कहूँ तो सदा कसमसाते रहे

बेहतरीन रचना...हर शेर लाजवाब...
नीरज

M VERMA said...

उँगलियाँ थाम कर के चलाया जिसे
आज मुझको वो चलना सिखाते रहे
बिडम्बना यही है
बहुत सुन्दर

राज भाटिय़ा said...

बनते रावण के पुतले हरएक साल में
फिर जलाने को रावण बुलाते रहे
जबाब नही सुमन जी, बहुत सुंदर रचना

Yogesh Verma Swapn said...

wah suman ji , ati uttam.

Anonymous said...

जवाब नहीं आपका...

.. सोचा था जमशेदपुर में आपसे मिलूँगा.. पर उस वक़्त दुर्गापूजा की इतनी भीड़ भाड़ थी कहीं जा ही नहीं पाए...

प्रिया said...

बात गीता की आकर सुनाते रहे
आईना से वो खुद को बचाते रहे
good
बनते रावण के पुतले हरएक साल में
फिर जलाने को रावण बुलाते रहे
Ture
उँगलियाँ थाम कर के चलाया जिसे
आज मुझको वो चलना सिखाते रहे
Originality

बेबसी क्या सुमन की जरा सोचना
टूटने पर भी खुशबू लुटाते रहे
and this one is Life :-)

हरकीरत ' हीर' said...

बेबसी क्या सुमन की जरा सोचना
टूटने पर भी खुशबू लुटाते रहे ...

वाह जी वाह....यही तो आपकी खूबी है ....!!

आईना से वो खुद को बचाते रहे

यहाँ 'आईना' शब्द देखें .....आइने से वो खुद को बचाते रहे....!!
....!!

मनोज कुमार said...

इस ग़ज़ल को पढ़ कर वाह-वाह कर उठा। ग़ज़ल के कई शे’र दिल में घर कर गए।

श्यामल सुमन said...

सदा समर्थन आपका स्नेह मिला अविराम।
हृदय के सुन्दर भाव को करता सुमन प्रणाम।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

कविता रावत said...

Sumanji!
बेबसी क्या सुमन की जरा सोचना
टूटने पर भी खुशबू लुटाते रहे
Yah tutan hi avyakt bhav hai.
Badhai.

निर्मला कपिला said...

गर कहूँ सच तो कीमत चुकानी पड़े
न कहूँ तो सदा कसमसाते रहे

बेबसी क्या सुमन की जरा सोचना
टूटने पर भी खुशबू लुटाते रहे
लाजवाब बहुत सुन्दर बधाई

BrijmohanShrivastava said...

व्यंग्य, हकीकत, कसक सब कुछ७ शेरो में । मैं तड्पता रहा ""मैं जला जल कर धुंआं या राख भी आखिर हुआ, वो मजा लेते रहे गोया मै सिगरिट हो गया । टूटने पर खुशबू लुटाना यह बेबसी नही है ,यह तो "सुमन" का स्वभाव है

Unknown said...

main kya kahu . shabd hi nahi mil rahe hain , bus itana hi ki aap hamesha ke bhaanti aap ne prayass main sadeev safal rahte hain . aur aise hi prayass sadeev kare

Kusum Thakur said...

"मैं तड़पता रहा दर्द किसने दिया
बन के अपना वही मुस्कुराते रहे "

वाह सुमन जी बहुत अच्छे भाव और पंक्तियाँ ।

रंजना said...

Bahut bahut sundar !!! Har sher hi sundar sarthak behtareen !!!

Rajeysha said...

मैं तड़पता रहा दर्द किसने दिया
बन के अपना वही मुस्कुराते रहे
;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
बस जी मुस्‍कुराने वालों से ही सावधान रहना है।

Apanatva said...

aapke blog par pahalee var hee aana hua .bahut sunder rachana lagee . har panktee me gahrai hai .

महावीर said...

सुमन जी,
आपकी यह ग़ज़ल पढ़ी और दाद दिए बिना न रह सका. बहुत ही प्यारी ग़ज़ल है. हर लफ्ज़, हर शे'र दिल को छूता हुआ लगा. एक अच्छी ग़ज़ल इनायत करने के लिए दाद क़ुबूल कीजिए।
महावीर शर्मा

Raghunath Prasad रघुनाथ प्रसाद said...

प्रिय सुमन जी ,
सुन्दर टिपण्णी के लिए धन्यवाद् .
आप की नयी रचना के साथ-साथ
अनेकों प्रशंसकों की टिप्पणिया देख
कर मन प्रसन्न हुआ .बेहतरीन रचना
के लिए बहुत-बहुत बधाई .इसी तरह
लिखते रहें .
रघुनाथ प्रसाद

संजय भास्‍कर said...

लाजवाब बहुत सुन्दर बधाई

Dr. Sudha Om Dhingra said...

मैं तड़पता रहा दर्द किसने दिया
बन के अपना वही मुस्कुराते रहे
वाह ! बहुत सुन्दर..

गुड्डोदादी said...

गुड्डोदादी (:)श्यामल जी
चिरंजीव भवः
मैं तड़पता रहा दर्द किसने दिया
बन के अपना वही मुस्कुराते रहे
वाह ! बहुत सुन्दर..

आपकी गाई गजल बहुत बार सुनी आज भावुकता से भरपूर
अश्रु नहीं थम रहे
जिसके साथ ऐसे बीतती है उसका क्या हाल होगा
दर्द लिखते रहे दर्द लिखने की कलम ठंडी नहीं हो
धन्यवाद
आपकी गुड्डोदादी चिकागो

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