बात गीता की आकर सुनाते रहे
आईना से वो खुद को बचाते रहे
बनते रावण के पुतले हरएक साल में
फिर जलाने को रावण बुलाते रहे
मिल्कियत रौशनी की उन्हें अब मिली
जा के घर घर जो दीपक बुझाते रहे
मैं तड़पता रहा दर्द किसने दिया
बन के अपना वही मुस्कुराते रहे
उँगलियाँ थाम कर के चलाया जिसे
आज मुझको वो चलना सिखाते रहे
गर कहूँ सच तो कीमत चुकानी पड़े
न कहूँ तो सदा कसमसाते रहे
बेबसी क्या सुमन की जरा सोचना
टूटने पर भी खुशबू लुटाते रहे
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रचना में विस्तार
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अन्ध-भक्ति है रोग
छुआछूत से कब हुआ, देश अपन ये मुक्त? जाति - भेद पहले बहुत, अब VIP युक्त।। धर्म सदा कर्तव्य ह...
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गन्दा फिर तालाब
क्या लेखन व्यापार है, भला रहे क्यों चीख? रोग छपासी इस कदर, गिरकर माँगे भीख।। झट से झु...
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मगर बेचना मत खुद्दारी
यूँ तो सबको है दुश्वारी एक तरफ मगर बेचना मत खुद्दारी एक तरफ जाति - धरम में बाँट रहे जो लोगों को वो करते सचमुच गद्दारी एक तरफ अक्सर लो...
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लेकिन बात कहाँ कम करते
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विश्व की महान कलाकृतियाँ-
26 comments:
उँगलियाँ थाम कर के चलाया जिसे
आज मुझको वो चलना सिखाते रहे
गर कहूँ सच तो कीमत चुकानी पड़े
न कहूँ तो सदा कसमसाते रहे
बेबसी क्या सुमन की जरा सोचना
टूटने पर भी खुशबू लुटाते रहे
बहुत सुन्दर, सुमन जी !
बेबसी क्या सुमन की जरा सोचना
टूटने पर भी खुशबू लुटाते रहे
मख़्ता बहुत बढ़िया रहा।
उँगलियाँ थाम कर के चलाया जिसे
आज मुझको वो चलना सिखा रहे
nanhi ungli ek din badee ho jati hai
बहुत सुंदर रचना.
रामराम.
गर कहूँ सच तो कीमत चुकानी पड़े
न कहूँ तो सदा कसमसाते रहे
बेहतरीन रचना...हर शेर लाजवाब...
नीरज
उँगलियाँ थाम कर के चलाया जिसे
आज मुझको वो चलना सिखाते रहे
बिडम्बना यही है
बहुत सुन्दर
बनते रावण के पुतले हरएक साल में
फिर जलाने को रावण बुलाते रहे
जबाब नही सुमन जी, बहुत सुंदर रचना
wah suman ji , ati uttam.
जवाब नहीं आपका...
.. सोचा था जमशेदपुर में आपसे मिलूँगा.. पर उस वक़्त दुर्गापूजा की इतनी भीड़ भाड़ थी कहीं जा ही नहीं पाए...
बात गीता की आकर सुनाते रहे
आईना से वो खुद को बचाते रहे
good
बनते रावण के पुतले हरएक साल में
फिर जलाने को रावण बुलाते रहे
Ture
उँगलियाँ थाम कर के चलाया जिसे
आज मुझको वो चलना सिखाते रहे
Originality
बेबसी क्या सुमन की जरा सोचना
टूटने पर भी खुशबू लुटाते रहे
and this one is Life :-)
बेबसी क्या सुमन की जरा सोचना
टूटने पर भी खुशबू लुटाते रहे ...
वाह जी वाह....यही तो आपकी खूबी है ....!!
आईना से वो खुद को बचाते रहे
यहाँ 'आईना' शब्द देखें .....आइने से वो खुद को बचाते रहे....!!
....!!
इस ग़ज़ल को पढ़ कर वाह-वाह कर उठा। ग़ज़ल के कई शे’र दिल में घर कर गए।
सदा समर्थन आपका स्नेह मिला अविराम।
हृदय के सुन्दर भाव को करता सुमन प्रणाम।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
Sumanji!
बेबसी क्या सुमन की जरा सोचना
टूटने पर भी खुशबू लुटाते रहे
Yah tutan hi avyakt bhav hai.
Badhai.
गर कहूँ सच तो कीमत चुकानी पड़े
न कहूँ तो सदा कसमसाते रहे
बेबसी क्या सुमन की जरा सोचना
टूटने पर भी खुशबू लुटाते रहे
लाजवाब बहुत सुन्दर बधाई
व्यंग्य, हकीकत, कसक सब कुछ७ शेरो में । मैं तड्पता रहा ""मैं जला जल कर धुंआं या राख भी आखिर हुआ, वो मजा लेते रहे गोया मै सिगरिट हो गया । टूटने पर खुशबू लुटाना यह बेबसी नही है ,यह तो "सुमन" का स्वभाव है
main kya kahu . shabd hi nahi mil rahe hain , bus itana hi ki aap hamesha ke bhaanti aap ne prayass main sadeev safal rahte hain . aur aise hi prayass sadeev kare
"मैं तड़पता रहा दर्द किसने दिया
बन के अपना वही मुस्कुराते रहे "
वाह सुमन जी बहुत अच्छे भाव और पंक्तियाँ ।
Bahut bahut sundar !!! Har sher hi sundar sarthak behtareen !!!
मैं तड़पता रहा दर्द किसने दिया
बन के अपना वही मुस्कुराते रहे
;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
बस जी मुस्कुराने वालों से ही सावधान रहना है।
aapke blog par pahalee var hee aana hua .bahut sunder rachana lagee . har panktee me gahrai hai .
सुमन जी,
आपकी यह ग़ज़ल पढ़ी और दाद दिए बिना न रह सका. बहुत ही प्यारी ग़ज़ल है. हर लफ्ज़, हर शे'र दिल को छूता हुआ लगा. एक अच्छी ग़ज़ल इनायत करने के लिए दाद क़ुबूल कीजिए।
महावीर शर्मा
प्रिय सुमन जी ,
सुन्दर टिपण्णी के लिए धन्यवाद् .
आप की नयी रचना के साथ-साथ
अनेकों प्रशंसकों की टिप्पणिया देख
कर मन प्रसन्न हुआ .बेहतरीन रचना
के लिए बहुत-बहुत बधाई .इसी तरह
लिखते रहें .
रघुनाथ प्रसाद
लाजवाब बहुत सुन्दर बधाई
मैं तड़पता रहा दर्द किसने दिया
बन के अपना वही मुस्कुराते रहे
वाह ! बहुत सुन्दर..
गुड्डोदादी (:)श्यामल जी
चिरंजीव भवः
मैं तड़पता रहा दर्द किसने दिया
बन के अपना वही मुस्कुराते रहे
वाह ! बहुत सुन्दर..
आपकी गाई गजल बहुत बार सुनी आज भावुकता से भरपूर
अश्रु नहीं थम रहे
जिसके साथ ऐसे बीतती है उसका क्या हाल होगा
दर्द लिखते रहे दर्द लिखने की कलम ठंडी नहीं हो
धन्यवाद
आपकी गुड्डोदादी चिकागो
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