कैसे कैसे लोग से, भरा हुआ संसार।
बोध नहीं कर्तव्य का, बस माँगे अधिकार।।
कहने को आतुर सभी, पर सुनता है कौन।
जो कहने के योग्य हैं, हो जाते क्यों मौन।।
आँखों से बातें हुईं, बहुत सुखद संयोग।
मिलते कम संयोग यह, जीवन का दुर्योग।।
मैं अचरज से देखता, बातें कई नवीन।
मूरख मंत्री के लिए, अफसर बहुत प्रवीण।।
जनता बेबस देखती, जन-नायक है दूर।
हैं बिकते अब वोट भी, सुमन हुआ मजबूर।।
बोध नहीं कर्तव्य का, बस माँगे अधिकार।।
कहने को आतुर सभी, पर सुनता है कौन।
जो कहने के योग्य हैं, हो जाते क्यों मौन।।
आँखों से बातें हुईं, बहुत सुखद संयोग।
मिलते कम संयोग यह, जीवन का दुर्योग।।
मैं अचरज से देखता, बातें कई नवीन।
मूरख मंत्री के लिए, अफसर बहुत प्रवीण।।
जनता बेबस देखती, जन-नायक है दूर।
हैं बिकते अब वोट भी, सुमन हुआ मजबूर।।
19 comments:
व्यस्तता के बावजूद बढ़िया रचना और वो भी सुंदर संदेशों से लबरेज...धन्यवाद सुमन जी
मैं अचरज से देखता बाते कई नवीन।
मूरख मंत्री के लिऐ अफसर बहुत प्रवीण।।
सुंदर शब्दों के साथ.... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति....
आपके लेखन ने इसे जानदार और शानदार बना दिया है....
Ati Uttam....
कहने को आतुर सभी पर सुनता है कौन।
जो कहने के योग्य है हो जाते क्यों मौन।।
आँखों से बातें हुईं बहुत सुखद संयोग।
मिलते कम संयोग यह जीवन का दुर्योग।।
मैं अचरज से देखता बाते कई नवीन।
मूरख मंत्री के लिऐ अफसर बहुत प्रवीण।।
वाह वाह सुमन जी लाजवाब। बधाई इस रचना के लिये।
कैसे कैसे लोग से भरा हुआ संसार।
बोध नहीं कर्त्तव्य का बस माँगे अधिकार।।
यही तो बिडम्बना है
सुन्दर रचना
बहुत सुंदर भाव जी, मजे दार
धन्यवाद
वाह भई श्यामल जी बहुत सुंदर
shyamal jee
sada sukhi raho
aankhon se baatain huee
bahoot sukhad sunyog
milte kam sanyog yeh
jeevan ka duruyog
wah kya likh diya aapne
kuchh shbd meri shbdkosh me bhej deejeey
aashirvaad ke sath
aapki guddo dadi
अच्छा है सुमन जी...
अब आ गए हैं तो और कवितायें पढने को मिलेंगी ...
परिस्थितियों को बहुत हीं सुन्दर बयां किया है आपने । अच्छी रचना । आभार
बेहतरीन। लाजवाब।
सुन्दर रहे सभी दोहे!
sabhi dohe ek se badhkar ek hai.
main bhi soch rahi thi ki itne din se aap hain kahan.
agar fursat mile to hamare blog par bhi aaiyega.
http://vandana-zindagi.blogspot.com
http://redrose-vandana.blogspot.com
http://ekprayas-vandana.blogspot.com
जनाब, अधिकार मांगने से नहीं, छीनने से मिलते हैं. excellent.
धन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
मैं अचरज से देखता बाते कई नवीन।
मूरख मंत्री के लिऐ अफसर बहुत प्रवीण।।
एकदम सही कहा भैया...एकदम सही...
सदैव की भांति सीखने सोचने को खुराक देती अतिसुन्दर रचना...
bas maange adhikar ,achchi chandbadha rachna hai,
आपकी ये गज़ल बहुत ही अच्छी लगी । खास कर ये
कहने को आतुर सभी पर सुनता है कौन।
जो कहने के योग्य है हो जाते क्यों मौन।।
बहुत बढ़िया रचना सुमन जी आभार...
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