अक्सर हो पाता नहीं मन से मन का मेल।
प्रायः अपने यूँ दिखे ज्यों पानी में तेल।।
निन्दा में संलग्न हैं लोग कई दिन रात।
दूजे का बस नाम है कहते अपनी बात।।
चमके सोने की तरह अब आँगन में धूप।
मजदूरों के तन जले पानी हुआ अनूप।।
आगे पीछे गाड़ियाँ शासक की यह शान।
आमलोग की भूख से वे बिल्कुल अन्जान।।
संसद बेबस हो गया अपराधी के हाथ।
जो थोड़े अच्छे बचे होते कभी न साथ।।
कई लोग समझा गए नहीं गगन पर थूक।
हो समक्ष अन्याय तो रहा न जाता मूक।।
मिली खबर कि आजकल शेर हुआ बीमार।
इसीलिए अब चल रही गीदड़ की सरकार।।
शादी बिनु राधा किशन तब रहते थे संग।
सुमन अचानक रो पड़ा देख नजरिया तंग।।
Thursday, March 25, 2010
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रचना में विस्तार
साहित्यिक बाजार में, अलग अलग हैं संत। जिनको आता कुछ नहीं, बनते अभी महंत।। साहित्यिक मैदान म...
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अन्ध-भक्ति है रोग
छुआछूत से कब हुआ, देश अपन ये मुक्त? जाति - भेद पहले बहुत, अब VIP युक्त।। धर्म सदा कर्तव्य ह...
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गन्दा फिर तालाब
क्या लेखन व्यापार है, भला रहे क्यों चीख? रोग छपासी इस कदर, गिरकर माँगे भीख।। झट से झु...
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मगर बेचना मत खुद्दारी
यूँ तो सबको है दुश्वारी एक तरफ मगर बेचना मत खुद्दारी एक तरफ जाति - धरम में बाँट रहे जो लोगों को वो करते सचमुच गद्दारी एक तरफ अक्सर लो...
यूँ तो सबको है दुश्वारी एक तरफ मगर बेचना मत खुद्दारी एक तरफ जाति - धरम में बाँट रहे जो लोगों को वो करते सचमुच गद्दारी एक तरफ अक्सर लो...
लेकिन बात कहाँ कम करते
मैं - मैं पहले अब हम करते लेकिन बात कहाँ कम करते गंगा - गंगा पहले अब तो गंगा, यमुना, जमजम करते विफल परीक्षा या दुर्घटना किसने देखा वो...
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विश्व की महान कलाकृतियाँ-
19 comments:
मिली खबर कि आजकल शेर हुआ बीमार।
इसीलिए अब चल रही गीदड़ की सरकार।।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है
संजय जी से सहमत..........
.......
यह पोस्ट केवल सफल ब्लॉगर ही पढ़ें...नए ब्लॉगर को यह धरोहर बाद में काम आएगा...
http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_25.html
लड्डू बोलता है ....इंजीनियर के दिल से....
संसद बेबस हो गया अपराधी के हाथ।
जो थोड़े अच्छे बचे होते कभी न साथ।।
साथ ही
मिली खबर कि आजकल शेर हुआ बीमार।
इसीलिए अब चल रही गीदड़ की सरकार।।
अत्यंत सामयिक है.
बहुत सुन्दर
अक्सर हो पाता नहीं मन से मन का मेल।
प्रायः अपने यूँ दिखे ज्यों पानी में तेल।।
निन्दा में संलग्न हैं लोग कई दिन रात।
दूजे का बस नाम है कहते अपनी बात।।
वाह ………किन लफ़्ज़ों मे तारीफ़ करूँ ,बडी कटु सच्चाई कह दी।
वैसे हर शेर लजवाब है किस किस की तारीफ़ करें।
बहुत सुन्दर रचना।
सत्य पर आधारित।
बहुत सुंदर काव्य, सामाजिक यथार्थ लेकर आए हैं आप इस रचना में।
अक्सर हो पाता नहीं मन से मन का मेल।
प्रायः अपने यूँ दिखे ज्यों पानी में तेल।।
सुन्दर काव्य।
सभी दोहे सुन्दर हैं!
सीधा व तीखा कटाक्ष है स्थितियों पर ।
शादी बिनु राधा किशन तब रहते थे संग।
सुमन यकायक रो पड़ा देख नजरिया तंग।।
बहुत सुंदर कहा आप ने बाकी संजय जी से हम भी सहमत है जी
अक्सर हो पाता नहीं मन से मन का मेल।
प्रायः अपने यूँ दिखे ज्यों पानी में तेल।।
बहुत सुंदर रचना बधाई
अक्सर हो पाता नहीं मन से मन का मेल।
प्रायः अपने यूँ दिखे ज्यों पानी में तेल।।
बहुत सुन्दर रचना।
शादी बिनु राधा किशन तब रहते थे संग।
सुमन यकायक रो पड़ा देख नजरिया तंग।।
यह एकदम मेरे ही मन की बात कह दी आपने भैया...
सदैव की भांति चिंतन को विस्तार देती अतिसुन्दर रचना...
सचमुच लाजवाव.सीधा व तीखा कटाक्ष
बेहतरीन अभिव्यक्ति बहुत गहरी बातें
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति,धन्यवाद सुमन जी।
बहुत ही सुन्दर और शानदार रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
bahut sunder and sam saamyik rachna suman ji...
बहुत सुंदर.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
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