वो घड़ी, हर घड़ी, याद आती रहे
गम भुलाकर जो खुशियाँ सजाती रहे
जिन्दगी से अगरबत्तियों ने कहा
राख बन के भी खुशबू लुटाती रहे
कभी सुनता क्या बुत भी इबादत कहीं
घण्टियाँ क्यों सदा घनघनाती रहे
प्यार सागर से यूँ है कि दीवानगी
मिल के नदियाँ ही खुद को मिटाती रहे
डालियाँ सूनी है पर सुमन सोचता
काश चिड़ियाँ यहाँ चहचहाती रहे
गम भुलाकर जो खुशियाँ सजाती रहे
जिन्दगी से अगरबत्तियों ने कहा
राख बन के भी खुशबू लुटाती रहे
कभी सुनता क्या बुत भी इबादत कहीं
घण्टियाँ क्यों सदा घनघनाती रहे
प्यार सागर से यूँ है कि दीवानगी
मिल के नदियाँ ही खुद को मिटाती रहे
डालियाँ सूनी है पर सुमन सोचता
काश चिड़ियाँ यहाँ चहचहाती रहे
23 comments:
सार्थक सोच की अच्छी अभिव्यक्ति / अच्छी विवेचना के साथ प्रस्तुती के लिए धन्यवाद / मैं तो कहता हु ब्लॉग सामानांतर मिडिया के रूप में उभर कर ,इस देश में वैचारिक क्रांति का सबसे बड़ा वाहक बनकर ,इस देश में बदलाव जरूर लायेगा / बस जरूरत है एकजुट होकर सच्ची इक्षा शक्ति से प्रयास करने की /आपको मैं , जनता के द्वारा प्रश्न पूछने के लिए ,संसद में दो महीने आरक्षित होना चाहिए, इस विषय पर बहुमूल्य विचार रखने के लिए आमंत्रित करता हूँ /आशा है देश हित के इस विषय पर,आप अपना विचार कम से कम सौ शब्दों में जरूर रखेंगे / अपने विचारों को लिखने के लिए नीचे लिखे हमारे लिंक पर जाये /उम्दा विचारों को सम्मानित करने की भी व्यवस्था है /
http://honestyprojectrealdemocracy.blogspot.com/2010/04/blog-post_16.html
zindagi aur agarbatti ke ehsaas .... bahut hi achhe lage
जिन्दगी से अगरबत्तियों ने कहा
राख बन के भी खुशबू लुटाती रहे
अति सुन्दर सुमन जी,
मगर
कभी सुनता क्या बुत भी इबादत कहीं
घण्टियाँ क्यों सदा घनघनाती रहे
मुझे लगता है क़ि जब सारी रचना सकारात्मक पहलू को उजागर कर रही है तो यह प्रश्नवाचक लाइने बीच में जम नहीं रही उन्हें भी सकारात्मक बनाए !
राख बन के भी खुशबू लुटाती रहे
बहुत खूब...
बहुत सुन्दर ग़ज़ल है ! हरेक शेर अच्छा है ... ये दो शेर मुझे बहुत अच्छा लगा ....
जिन्दगी से अगरबत्तियों ने कहा
राख बन के भी खुशबू लुटाती रहे
प्यार सागर से यूँ है कि दीवानगी
मिल के खुद को ही नदियाँ मिटाती रहे
आपकी लेखनी से बस चाहेंगे इतना,
नित बहे और कविता सुनाती रहे ।
कभी सुनता क्या बुत भी इबादत कहीं
घण्टियाँ क्यों सदा घनघनाती रहे bahut sundar likha...dhanyawad
wah ji wah mazaa aa gaya.
thanks.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
बहुत ही सुंदर सुमन जी मन मै बस गई आप की यह कविता,
धन्यवाद
" bahut hi gaherai bhari aapki soch ko salaam ....aapne bahut hi bada sach badhiya tarah se pesh kiya hai "
----- eksacchai { AAWAZ}
http://eksacchai.blogspot.com
चिड़ियों का चहचहाना जीवन की अभिव्यक्ति है, काश हम सब इसे महसूस करते रहें ! ऑंखें खोलने के लिए आभार सुमन भाई !
चिड़ियों का चहचहाना जीवन की अभिव्यक्ति है, काश हम सब इसे महसूस करते रहें ! ऑंखें खोलने के लिए आभार सुमन भाई !
भविष्य में आपको पढता रहूँ अतः आपका ब्लाग फालो कर रहा हूँ !
अब किन लफ़्ज़ों मे तारीफ़ करूँ …………………………हर पंक्ति लाजवाब है।
लौ थरथरा रही है बस तेल की कमी से।
उसपर हवा के झोंके है दीप को बचाना॥
हवा कितनी भी तेज हो लौ को तो बचाना ही होगा.
बहुत खूबसूरत गज़ल के लिये साधुवाद
प्यार सागर से यूँ है कि दीवानगी
मिल के खुद को ही नदियाँ मिटाती रहे
डालियाँ सूनी है पर सुमन सोचता
काश चिड़ियाँ यहाँ चहचहाती रहे
Behad sundar panktiyan!
बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बढ़िया लगा!
श्यामल जी
चिरंजीव भवः
वो घड़ी हर घड़ी याद आती रहे
प्यार सागर से यूं है कि दीवानगी
मिल के खुद को ही नदियाँ मिटाती रहें
आपकी की यह गजल मन पर घर कर गई
इस लिखने की आग को ठंढा मत होने देना
आशीर्वाद के साथ
आपकी गुड्डो दादी
जिन्दगी से अगरबत्तियों ने कहा
राख बन के भी खुशबू लुटाती रहे
aapki bahut si sari rachnayen padhi maine aaj. sabd kam hain tareef ko .sir ji aapke lekhni ki to mai kayal ho gayi ....sadar naman aapke lekhni ko ..
कभी सुनता क्या बुत भी इबादत कहीं
घण्टियाँ क्यों सदा घनघनाती रहे
बुतपरस्ती की ऐसी आदत हो गयी कि इंसान की इंसानियत भी शहादत के कगार पर है
सुन्दर भाव की रचना
nayee mahaktee soch
nayee..mahaktee huyee soch...khoob
वाह,सुन्दर शब्दाकंन किया है,आपने सच्ची भावनाओ का!
achchi lagi.
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