Saturday, May 1, 2010

प्यार लगता उधार

कैसे कहते कि मुझको जमाने से प्यार।
भाव दिखते नहीं प्यार लगता उधार।।

प्रेम सचमुच जगत में बहुत अनमोल।
जिसमें दुनियाँ समायी है आँखें तो खोल।
फिर भी दिखता हो नफरत तो जीना बेकार।
भाव दिखते नहीं प्यार लगता उधार।।

जिन्दगी जंग ऐसा कि लड़ते सभी।
कभी बाहर से घायल तो भीतर कभी।
हो मुहब्बत की मरहम तो होगा सुधार।
भाव दिखते नहीं प्यार लगता उधार।।

खोज में क्यों है मधुकर सुमन से क्या आस?
जा के मरता पतंगा क्यों दीपक के पास?
प्यार तो है बस खोना समर्पण आधार।
भाव दिखते नहीं प्यार लगता उधार।।

26 comments:

M VERMA said...

हो मुहब्बत की मरहम तो होगा सुधार।
कैसे कहते कि मुझको जमाने से प्यार।
मुहब्बत से बड़ा मरहम तो हो ही नहीं सकता
बेहतरीन

गुड्डोदादी said...

श्यामल जी
सदा सुखी रहो
प्रेम सचमुच जगत में बहुत अनमोल
जिसमे दुनियाँ समायी है आँखें तो खोल
हो मुहब्बत की मरहम तो होगा सुधार
मुह्ब्बत के जख्म पर मरहम लगाएं रखना
आपने ने इस गीत में की सभी पंक्तियों में किसी को जीवन दे दिया हसना सिखा दिया

डॉ टी एस दराल said...

प्यार तो है बस खोना समर्पण आधार।
कैसे कहते कि मुझको जमाने से प्यार।
भाव दिखते नहीं प्यार लगता उधार।।

सही कहा -समर्पण का नाम ही प्यार है। थोडा समर्पण प्रकृति की ओर भी हो तो अच्छा।

honesty project democracy said...

मानवीय रिश्तों में गिरते नैतिक मूल्यों का प्रभाव पर प्रकाश डालती इस कविता के लिए आपका बहुत-बहुत दन्यवाद /

आशा है आप इसी तरह ब्लॉग की सार्थकता को बढ़ाने का काम आगे भी ,अपनी अच्छी सोच के साथ करते रहेंगे / ब्लॉग हम सब के सार्थक सोच और ईमानदारी भरे प्रयास से ही एक सशक्त सामानांतर मिडिया के रूप में स्थापित हो सकता है और इस देश को भ्रष्ट और लूटेरों से बचा सकता है /आशा है आप अपनी ओर से इसके लिए हर संभव प्रयास जरूर करेंगे /हम आपको अपने इस पोस्ट http://honestyprojectrealdemocracy.blogspot.com/2010/04/blog-post_16.html पर देश हित में १०० शब्दों में अपने बहुमूल्य विचार और सुझाव रखने के लिए आमंत्रित करते हैं / उम्दा विचारों को हमने सम्मानित करने की व्यवस्था भी कर रखा है / पिछले हफ्ते अजित गुप्ता जी उम्दा विचारों के लिए सम्मानित की गयी हैं /

Shekhar Kumawat said...

खोज में क्यों है मधुकर सुमन से क्या आस?
जा के मरता पतंगा क्यों दीपक के पास?
प्यार तो है बस खोना समर्पण आधार।
कैसे कहते कि मुझको जमाने से प्यार।
भाव दिखते नहीं प्यार लगता उधार।।


bahut khub line

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

वाह क्या भाव हैं, क्या रचना है ... प्रेम से बढ़कर क्या है दुनिया में !

गुड्डोदादी said...

जिन्दगी जंग ऐसा कि लड़ते सभी
कभी बाहर से घायल तो भीतर कभी
बस एक पंक्ति याद आ गई
गम राह में खड़े थे वही साथ हो लिए

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

गंभीर संदेश देती हुई रचना
आभार श्यामल जी

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

खोज में क्यों है मधुकर सुमन से क्या आस?
जा के मरता पतंगा क्यों दीपक के पास?
प्यार तो है बस खोना समर्पण आधार।
कैसे कहते कि मुझको जमाने से प्यार।

बहुत सुन्दर शब्दों में जीवन की सार्थकता को कहा है.....बधाई

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

खोज में क्यों है मधुकर सुमन से क्या आस?
जा के मरता पतंगा क्यों दीपक के पास?
प्यार तो है बस खोना समर्पण आधार।
कैसे कहते कि मुझको जमाने से प्यार।
भाव दिखते नहीं प्यार लगता उधार

बहुत खूबसूरत भावों से बुनी गयी अच्छी रचना

Anonymous said...

खोज में क्यों है मधुकर सुमन से क्या आस?
जा के मरता पतंगा क्यों दीपक के पास? !!!
प्रेम को परिभाषित करती कविता ! सुंदर !

अर्चना तिवारी said...

सुंदर भावपूर्ण गीत

Khush... said...

pyaar jo mile udhaar
to phir kis chij kee darkaar

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर रचना

चन्द्र कुमार सोनी said...

BAHUT BADHIYAA.
THANKS.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत सही रचना ।

kshama said...

जा के मरता पतंगा क्यों दीपक के पास?
प्यार तो है बस खोना समर्पण आधार।
कैसे कहते कि मुझको जमाने से प्यार।
भाव दिखते नहीं प्यार लगता उधार।।
Badi anmol baat aap kah gaye..

अनामिका की सदायें ...... said...

sunder shabd vyanjna se ek sunder kriti ka roop diya he aapne. badhayi.

Harshvardhan said...

wahh bahut khoob,,,,,,

Prem Farukhabadi said...

जिन्दगी जंग ऐसा कि लड़ते सभी।
कभी बाहर से घायल तो भीतर कभी।
हो मुहब्बत की मरहम तो होगा सुधार।
कैसे कहते कि मुझको जमाने से प्यार।
भाव दिखते नहीं प्यार लगता उधार।।

Behtareen!

Amit Sharma said...

बहुत सुन्दर शब्दों में जीवन की सार्थकता को कहा है.....बधाई

गुड्डोदादी said...

प्रेम सचमुच जगत में बहुत अनमोल
जिसमे दुनियाँ समायी है आँखे तो खोल
यह पंक्तियाँ बार बार मन में स्वतः दोहराती हैं
श्यामल जी खूब लिखा है आपने कहाँ से खोज के लाये

हरकीरत ' हीर' said...

खोज में क्यों है मधुकर सुमन से क्या आस?
जा के मरता पतंगा क्यों दीपक के पास?
प्यार तो है बस खोना समर्पण आधार।
कैसे कहते कि मुझको जमाने से प्यार।
भाव दिखते नहीं प्यार लगता उधार....

सही और खरी बात .....प्यार तो समर्पण है ....पाने की इच्छा रखने वाले ही पछताते हैं .....

बहुत खूब ......!!

Urmi said...

बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने शानदार रचना लिखा है जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) said...

खोज में क्यों है मधुकर सुमन से क्या आस?
जा के मरता पतंगा क्यों दीपक के पास?
प्यार तो है बस खोना समर्पण आधार।
कैसे कहते कि मुझको जमाने से प्यार।
भाव दिखते नहीं प्यार लगता उधार।।
bahut hi gahri bhav diye hain aapne prem se sarabore rachna achhi sikh deti hui.......badhai suman ji

Satish Saxena said...

सही चिंता जाहिर की है भाई जी ....शुभकामनायें

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