Tuesday, May 25, 2010

अस्पताल बीमार

पैरों की तकलीफ से वो चलती बेहाल।
किसी ने पीछे से कहा क्या मतवाली चाल।।

बी०पी०एल० की बात कम आई०पी०एल० का शोर।
रोटी को पैसा नहीं रन से पैसा जोड़।।

दवा नहीं कोई मिले डाक्टर हुए फरार।
अब मरीज जाए कहाँ अस्पताल बीमार।।

भूल गया मैं भूल से बहुत बड़ी है भूल।
जो विवेक पढ़कर मिला वही दुखों का मूल।।

गला काटकर प्रेम से बन जाते हैं मित्र।
मूल्य गला है बर्फ सा यही जगत का चित्र।।

बातों बातों में बने तब बनती है बात।
फँसे कलह के चक्र में दिखलाये औकात।।

सोने की चाहत जिसे वह सोने से दूर।
भ्रमर सुमन के पास तो होगा मिलन जरूर।।

21 comments:

honesty project democracy said...

आज का कटु सत्य ,लेकिन इन भ्रष्ट और बेशर्मों को शर्म कहाँ /

guddodadi said...

श्यामल जी
चिरंजीव भवः
भूल गया मै भूल से बहुत बड़ी है भूल
जो विवेक पढ़ कर मिला वही दुखों का मूल
मोगे मोती की माला से जड़ी कविता की किस पंक्ति को ना पढू
हसी भी आयी और धारा भी बह निकली

आपने सभी पर कटाक्ष किया है कोई समझे तो सही

प्रवीण पाण्डेय said...

ठोंक ठोंक के बजाया है । मजा आ गया ।

चन्द्र कुमार सोनी said...

बहुत बढ़िया, लगे रहिये.
धन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

राज भाटिय़ा said...

राज भाटिय़ा said...

गरीब की दशा आप ने सही दर्शाई, लेकिन हमारे नेता तो आज बातो मै दुनिया के विकास शील देशो मै पहुच गये है, जब कि गरीब के पास पीने को पानी नही
बहुत अच्छी लगी आप की यह कविता

डॉ टी एस दराल said...

दवा नहीं कोई मिले डाक्टर हुए फरार।
अब बीमार जाए कहाँ अस्पताल बीमार।।

गली गली में भरे पड़े , झोला छाप डॉक्टर
दो दो रूपये की पुड़ियाँ , खाएं सब बीमार ।

बढ़िया लिखा है जी । बधाई।

गुड्डोदादी said...

श्यामल जी
लगे रहो मुन्ना भाई ठोक ठोक लिखने में
तुष्टा नेता अपने में ही तुष्ट है
रूष्टा निर्धन जनता को नेता तुष्टा नहीं कर सकते

संजय भास्‍कर said...

आपकी रचनाओं में एक अलग अंदाज है,

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

बेहतरीन रचना !

कड़वा सच है जिंदगी का ...

अमिताभ मीत said...

क्या बात है भाई ... बहुत ख़ूब !

मनोज कुमार said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति। सादर अभिवादन।

मनोज कुमार said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति। सादर अभिवादन।

वन्दना अवस्थी दुबे said...

पैरों की तकलीफ से वो चलती बेहाल।
किसी ने पीछे से कहा क्या मतवाली चाल।।
वाह!!!!!!!!!!!

दीपक 'मशाल' said...

कई कमियों की तरफ बड़े अच्छे से इशारा किया आपने सर.. आजकल अम्बरीश अम्बुज भी आपके ही इन्स्टीटयूट में ही प्रशिक्षण ले रहा है.. कभी मिलिएगा उससे..

M VERMA said...

सोने की चाहत जिसे वह सोने से दूर।
वाह क्या बात कही है
शानदार

dadoo said...

मधुकर श्याम हमारे पास

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत बढ़िया कटाक्ष है....

कविता रावत said...

पैरों की तकलीफ से वो चलती बेहाल।
किसी ने पीछे से कहा क्या मतवाली चाल।।
बातों बातों में बने तब बनती है बात।
फँसे कलह के चक्र में दिखलाये औकात।।
सोने की चाहत जिसे वह सोने से दूर।
मधुकर सुमन के पास तो होगा मिलन जरूर।।
...कटु सत्य को उद्घाटित करती यथार्थवादी रचना
वर्तमान हालातों का सजीव चित्रण...
हार्दिक शुभकामनाएँ

MUKANDA said...

कोलंबिया के प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. फ्रैंक आयटे लॉटे ने एक बार आइंस्टीन के सम्मान में प्रीति-सम्मेलन आयोजित किया। उपस्थित मेहमानों के सम्मुख कुछ बोलने के लिए जब आइंस्टीन से आग्रह किया गया तो वे उठ खड़े हुए और बोले - 'सज्जनों! मुझे खेद है कि मेरे पास आप लोगों से कहने के लिए अभी कुछ भी नहीं है', इतना कहकर आइंस्टीन अपनी जगह पर बैठ गए।

मेहमानों पर प्रतिक्रिया अच्छी नहीं हुई। आइंस्टीन ने असंतोष भाँप लिया और पुन: मंच पर पहुँचे - 'मुझे क्षमा कीजिएगा, जब भी मेरे पास कहने के लिए कुछ होगा, मैं स्वयं आप लोगों के सम्मुख उपस्थित हो जाऊँगा।' छ: वर्ष बाद डॉ. आटे लॉटे को आइंस्टीन का तार मिला - 'बंधु, अब मेरे पास कहने जैसा कुछ है।'

शीघ्र ही प्रीति-सम्मेलन का आयोजन हुआ। इस बार आइंस्टीन ने अपने 'क्वांटम सिद्धांत' की व्याख्या की, जो किसी भी मेहमान के पल्ले नहीं पड़ी।

MUKANDA said...

कोलंबिया के प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. फ्रैंक आयटे लॉटे ने एक बार आइंस्टीन के सम्मान में प्रीति-सम्मेलन आयोजित किया। उपस्थित मेहमानों के सम्मुख कुछ बोलने के लिए जब आइंस्टीन से आग्रह किया गया तो वे उठ खड़े हुए और बोले - 'सज्जनों! मुझे खेद है कि मेरे पास आप लोगों से कहने के लिए अभी कुछ भी नहीं है', इतना कहकर आइंस्टीन अपनी जगह पर बैठ गए।

मेहमानों पर प्रतिक्रिया अच्छी नहीं हुई। आइंस्टीन ने असंतोष भाँप लिया और पुन: मंच पर पहुँचे - 'मुझे क्षमा कीजिएगा, जब भी मेरे पास कहने के लिए कुछ होगा, मैं स्वयं आप लोगों के सम्मुख उपस्थित हो जाऊँगा।' छ: वर्ष बाद डॉ. आटे लॉटे को आइंस्टीन का तार मिला - 'बंधु, अब मेरे पास कहने जैसा कुछ है।'

शीघ्र ही प्रीति-सम्मेलन का आयोजन हुआ। इस बार आइंस्टीन ने अपने 'क्वांटम सिद्धांत' की व्याख्या की, जो किसी भी मेहमान के पल्ले नहीं पड़ी।

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