Monday, September 6, 2010

प्रश्न

यह तेरी कैसी भगवत्ता?
मौज उड़ाते भ्रष्टाचारी, सच्चे दुख पाते अलबत्ता।
यह तेरी कैसी भगवत्ता?

धर्मवीर कैसे हो मानव, साहस नहीं जुटा पाते हैं।
कर्मवीर कैसे पैदा हों, अवसर छीन लिए जाते हैं।।
धन-संचय की ऐसी लिप्सा, प्रायः सब बेईमान।
धूर्त और चालाक जमूरे, पाते नित सम्मान।।
फिर कैसे मानूँ हे प्रिय भगवन्, तुम्हीं हिलाते एक एक पत्ता
यह तेरी कैसी भगवत्ता?

श्रद्धा और विश्वास को धोखा, वेष बनाकर सज्जन जैसा।
ज्ञान-दान व्यापार बन गया, हुए वैद्य भी दुर्जन जैसा।।
कैसे हो कल्याण जगत का, मित्र-भाव की फूटे धारा।
सुलभ न्याय मिल पाये सबको, सुमन खिले नित नूतन प्यारा।।
स्वतः अगर यह हो जाये तो, सब मानेंगे तेरी सत्ता।
क्यों न हो ऐसी भगवत्ता?

17 comments:

Sunil Kumar said...

आप की बात से शत प्रतिशत सहमत हूँ अच्छी पोस्ट की बधाई

समयचक्र said...

श्रद्धा और विश्वास को धोखा, वेष बनाकर सज्जन जैसा ।
ज्ञान-दान व्यापार बन गया, हुए वैद्य भी दुर्जन जैसा ।।

बहुत बढ़िया रचना .... आभार

संगीता पुरी said...

बहुत बढिया रचना !!

Majaal said...

दोषी ठहराए कौन किसको ?
जब शामिल हो पूरा जत्था !
थोडा थोडा सबका हत्था !
प्रजातंत्र की यही महत्ता !

सुन्दर अभिव्यक्ति ...

kshama said...

सुलभ न्याय मिल पाये सबको, सुमन खिले नित नूतन प्यारा।।
स्वतः अगर यह हो जाये तो, सब मानेंगे तेरी सत्ता।
क्यों न हो ऐसी भगवत्ता?
Bahut sundar rachana hai...par nyay kab,kis zamane me sulabhta se mila? Jahan Seeta ko nahi mila wahan,ham jaise kya ummeed rakhen?Seeta ko bachane wale Jatayu tab bhi mare jate rahe aajbhi mare jate hain..

प्रवीण पाण्डेय said...

गज़ब, दमदार और सस्वर पठनीय।

vandana gupta said...

उत्तम प्रश्न्।

राज भाटिय़ा said...

जब इंसानियत मर जाये तो यही हालात होते है देश के, बहुत सुंदर रचना, आप से सहमत है जी

चन्द्र कुमार सोनी said...

excellent.
i liked it too much.
bahut badhiyaa likhaa hain aapne.
likhte rahiye.
dhanyawaad.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

मनोज कुमार said...

बहुत सुंदर रचना।
आभार।
हरीश गुप्त की लघुकथा इज़्ज़त, “मनोज” पर, ... पढिए...ना!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

चिंतन करती हुई सुन्दर रचना ..

शिवम् मिश्रा said...

एकदम सही शिकायत की है आपने ! बेहद उम्दा और सटीक अभिव्यक्ति !

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा रचना.

कबीर कुटी - कमलेश कुमार दीवान said...

achcha likha hai

शिवम् मिश्रा said...


बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !

आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।

आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें

शेइला (USA said...

श्यामल जी
सदा सुखी रहो

यह तेरी कैसी भगवता?

मौज उड़ाते भ्रष्टाचारी,सच्चे दुःख पाते अलबत्ता|
यह तेरी कैसी भगवता?
इसी प्रश्नं का उतर बहुत ही समय से ढूंढ रही हूँ
फिर आपने लिखा
धन-संचय की ऐसी लिप्सा,प्राय:सब बेईमान|
धूर्त और चालाक जमूरे,पाते नित सम्मान||
बहुत ही कड़वे सच की प्रस्तुति
समझो नेता दश की गंभीर समस्या

अर्चना ठाकुर said...

बहुत ही सार्थक रचना..

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विश्व की महान कलाकृतियाँ- पुन: पधारें। नमस्कार!!!