Thursday, September 9, 2010

हिन्दी पखवारा

भाषा जो सम्पर्क की, हिन्दी उसमे मूल।
बनी राष्ट्रभाष नहीं, यह दिल्ली की भूल।।

राज काज के काम हित, हिन्दी है स्वीकार।
लेकिन विद्यालय सभी, हिन्दी के बीमार।।

भाषा तो सब है भली, सीख बढ़ायें ज्ञान।
हिन्दी बहुमत के लिए, नहीं करें अपमान।।

मंत्री की सन्तान सब, अक्सर पढ़े विदेश।
भारत में भाषण करे, हिन्दी में संदेश।।

देखें अंतरजाल पर, हिन्दी नित्य-प्रभाव।
लेकिन हिन्दुस्तान में, है सम्मान अभाव।।

सिसक रही हिन्दी यहाँ, हम सब जिम्मेवार।
बना राष्ट्र-भाषा इसे, ऐ दिल्ली सरकार।।

दिन पन्द्रह क्यों वर्ष में, हिन्दी आती याद?
हो प्रति पल उपयोग यह, सुमन करे फ़रियाद।।

15 comments:

kshama said...

Badi galati to ye hui ki,bhasha ke anusaar prant rachana kee gayi,naki,bhougolik suvidhase...par kisne socha tha,ki,ham aapas me isi mudde ko leke dooriyan bana lenge!

समयचक्र said...

राज काज के काम हित हिन्दी है स्वीकार ।
लेकिन विद्यालय सभी हिन्दी के बीमार ।।
मंत्री के संतान सब जा के पढ़े विदेश ।
भारत में भाषण करे हिन्दी पर संदेश ।।


बहुत सुन्दर प्रस्तुति ....

Unknown said...

सुमन जी नमस्कार !

बहुत दिनों बाद आपको बांचने का अवसर मिला,

सभी दोहे शानदार हैं ............

वाह ! क्या बात है

डॉ टी एस दराल said...

हिंदी की दशा सुधरने की ज़रुरत तो है ।
खाली पखवाडा मनाने से क्या होगा ?

सही स्मरण कराया ।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

शुक्र है कि साल में 1 दिन तो है अभी हिन्दी का. कल न जाने क्या हो.

चन्द्र कुमार सोनी said...

हिन्दी हमारी मातृभाषा हैं.
हिन्दी अपनाइए, मत शरमाइये.
हिन्दी जिन्दाबाद.
धन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

Kusum Thakur said...

"दिन पंद्रह इक बरस में हिन्दी आती याद।
यही सोच हो शेष दिन सुमन करे फरियाद।।"

बहुत खूब सुमन जी ,
जिस दिन हम औरों का सम्मान सीख जायेंगे उस दिन हिन्दी क्या हर भाषा की इज्जत खुद ब खुद होने लगेगी .हिन्दी भी राजनैतिक हथकंडा है राजनेताओं के लिए

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सार्थक बात कही है ....केवल पखवाडा मना लेने से कुछ नहीं होने वाला ..

प्रवीण पाण्डेय said...

बड़ी भावपूर्ण रचना हिन्दी के बारे में।

रंजना said...

राज काज के काम हित हिन्दी है स्वीकार।
लेकिन विद्यालय सभी हिन्दी के बीमार।।

कितना सही कहा आपने...

पन्द्रह दिन क्यों वर्ष में हिन्दी आती याद?
हो प्रति पल उपयोग यह सुमन करे फ़रियाद।।

आपकी इस फ़रियाद संग हम भी अपनी फ़रियाद मिलाते हैं...

शेइला (चिकागो से) said...

श्यामल जी
चिरंजीव भवः

राज काज के काम हित हिन्दी है स्वीकार |
लेकिन विद्यालय सभी हिन्दी के बीमार ||
बहुत ही स्टीक ,घहराई के शब्दों से भरी कविता

देश नेता भी अपने को समझते बहुत होशियार
सड़ी राजनीति है निर्धन जनता को करे परेशान

पंख said...

are is topic par main kavita likhne ki soch hi rahi thi.... aap chinta mat kijiye suman ji.... jab tak hum jaise log hai hindi ka koi kuch nhi bigad sakta....is rachna ke liye bohot bohot badhai... :)

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 14 - 9 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया

http://charchamanch.blogspot.com/

प्रकाश पंकज | Prakash Pankaj said...

कैसे गूंगा भारत महान जिसकी कोई राष्ट्रभाषा नहीं ?

मेरी दो कविताएँ हमारी मातृभाषा को समर्पित :
१. उतिष्ठ हिन्दी! उतिष्ठ भारत! उतिष्ठ भारती! पुनः उतिष्ठ विष्णुगुप्त!
http://pankaj-patra.blogspot.com/2010/09/hindi-diwas-rashtrabhasha-prakash.html

२. जो मेरी वाणी छीन रहे हैं, मार डालूं उन लुटेरों को।
http://pankaj-patra.blogspot.com/2010/09/hindi-diwas-matribhasha-rashtrabhasha.html
– प्रकाश ‘पंकज’

गुड्डोदादी said...

हिन्दी पखवारा
भाषा जो सम्पर्क की हिन्दी उसमे मूल।
बनी न भाषा राष्ट्र की यह दिल्ली की भूल।।

राज काज के काम हित हिन्दी है स्वीकार।
लेकिन विद्यालय सभी हिन्दी के बीमार।।

भाषा तो सब है भली सीख बढ़ायें ज्ञान।
हिन्दी बहुमत के लिए नहीं करें अपमान।।

मंत्री की सन्तान सब अक्सर पढ़े विदेश।
भारत में भाषण करे हिन्दी में संदेश।।

दिखती अंतरजाल पर हिन्दी नित्य प्रभाव।
लेकिन हिन्दुस्तान में है सम्मान अभाव।।

सिसक रही हिन्दी यहाँ हम सब जिम्मेवार।
करो राष्ट्र-भाषा इसे ऐ दिल्ली सरकार।।

पन्द्रह दिन क्यों वर्ष में हिन्दी आती याद?
हो प्रति पल उपयोग यह सुमन करे फ़रियाद।।

Posted byश्यामल सुमनat7:03 AM
Labels:दोहे
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PAWAN ARORA मेरा मजहब '' प्यार और वफ़ा ' कैसी विडम्ना है जो आज मात्र भाषा के लिए हमे एक दिन ख़ुशी मनाने को मिल रहा है हिंदी दिवस के रूप में और हम एक दुसरे को बधाई देने मे लगे है ...जैसी कोई त्यौहार साल में आये एक बार क्यूँ ना मनाये ख़ुशी हज़ार ..वाह वाह मेरे यार आज आया हिंदी का त्यौहार
शर्म आती है अपनी मात्र भाषा का यह हश्र देख ..
मगर हमारी मात्र भाषा में इतनी जान और ताक़त है कि यह किसी एक दिन कि मोहताज़ नहीं
यह हमारे बच्चे आज भी गर्व से बोलते है हम अपनों से जुड़ते है इस मीठी मीठी भाषा को बोल 1:43 AM
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