Wednesday, October 6, 2010

अश्क यूँ बहते नहीं

भाव चेहरे पर लिखा जो लब से वो कहते नहीं
है खुशी और गम जहां में अश्क यूँ बहते नहीं

है भले छत एक फिर भी दूरियाँ बढ़ती गयी
आज अपनों सा लगे जो साथ में रहते नहीं

जब तलक है जोर अपना होश की बातें कहाँ
होश आने पर ये समझे  दर्द यूँ सहते नहीं

पीठ को मोड़ा कभी न था हवा का रुख जिधर
अपने मतलब के पवन हर वक्त तो बहते नहीं

गर किसी को है समझना खुद को पहचानो सुमन
है तजुर्बा, सोचकर, बस यूँ ही कुछ कहते नहीं

28 comments:

Kusum Thakur said...

भाव की मैं क्या कहूँ ,लब तो अब खुलते नहीं
डर मुझे खुशियाँ न छलके और गम पीते नहीं

वाह सुमन जी ......लाजवाब !!

वीरेंद्र सिंह said...

बहुत बढ़िया है ....
आभार.

Unknown said...

वाह वाह

बहुत ख़ूब...........शानदार !

kshama said...

हो भले छत एक फिर भी दूरियाँ बढ़ती गयी
आज अपने वो बने जो साथ में रहते नहीं
Kya baat kah dee! Chhat ek hone se hamsafar bante nahee!

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर ओर शानदार ,

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

भाव चेहरे पर लिखा जो लब से वो कहते नहीं
है खुशी और गम जहां में अश्क यूँ बहते नहीं

बहुत सुन्दर ...

प्रवीण पाण्डेय said...

सचमुच बेहतरीन।

चन्द्र कुमार सोनी said...

उम्दा कविता के लिए बधाई.
"अश्क यूँ बहते नहीं" वाह क्या खूब कहा हैं आपने.
धन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

Anonymous said...

हो भले छत एक फिर भी दूरीयाँ बढ़ती गयी
आज अपने वो बने जो साथ में रहते नहीं

वाह बहुत खूबसूरत


हर जुदाई और मिलन में थीं आँखें आपकी
आपकी चाहत मेरी जिंदगी की पूजा बनगई

संजय भास्‍कर said...

शुरुआत से लेकर अंत तक आपने बाँध कर रखा... कविता बहत अच्छी लगी....

Asha Lata Saxena said...

"पीठ को मोड़ा कभी -------यूँ ही कुछ कहने लगे "
बहुत सुंदर भाव सजोए कविता |बधाई
आशा

Arshad Ali said...

umda rachna...

sach ko bayan karte hue.

thanks

vandana gupta said...

बहुत सुन्दर भाव भरे हैं।

Anonymous said...

जब तलक है जोर अपना होश की बातें कहाँ
होश आने पर ये सोचे कष्ट यूँ सहते नहीं

bahoot hee yaboourr
दीपक तो पल भर जला
शमा सारी रात जली
शाम चुपचाप जली और जलाया है
हमने तो खुद के ही जलाया है

जब तलक है जोर अपना होश की बातें कहाँ
होश आने पर ये सोचे कष्ट यूँ सहते नहीं जब तलक है जोर अपना होश की बातें कहाँ
होश आने पर ये सोचे कष्ट यूँ सहते नहीं

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

वाह बहुत सुंदर.

Manish Kumar said...

गर किसी को है समझना खुद को पहचानो सुमन
हो तजुर्बा सोचकर बस यूँ ही कुछ कहते नहीं

maqta lajwab kar gaya...

Manish Kumar said...

गर किसी को है समझना खुद को पहचानो सुमन
हो तजुर्बा सोचकर बस यूँ ही कुछ कहते नहीं

maqta lajwab kar gaya...

अनामिका की सदायें ...... said...

आप की रचना 08 अक्टूबर, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपनी टिप्पणियाँ और सुझाव देकर हमें अनुगृहीत करें.
http://charchamanch.blogspot.com/2010/10/300.html



आभार

अनामिका

अनुपमा पाठक said...

sundar rachna!
regards,

Apanatva said...

wah ! bahut bahut sunder .

utkrusht lekhan .

Unknown said...

पीठ को मोड़ा कभी न था हवा का रुख जिधर
अपने मतलब के पवन हर वक्त में बहते नहीं



ham pith nhi hwa ke rookh ko badalne mai viswas rakhte hai..

aap ke hi sabdo mai:-
HAL PUCHHA AAPNE TO PUCHHNA ACHHA LGA,,,,,,
BAH RAHI ULTI HWA SE JHUJHNA ACHHA LGA.....

MARG DARSHAN KE LIA DHANYABAAD.

Kailash Sharma said...

हो भले छत एक फिर भी दूरियाँ बढ़ती गयी
आज अपनों सा लगे जो साथ में रहते नहीं...

वाह ! क्या दिल को छूने वाली अभिव्यक्ति.....बहुत सुन्दर...आभार..

Kailash Sharma said...

हो भले छत एक फिर भी दूरियाँ बढ़ती गयी
आज अपनों सा लगे जो साथ में रहते नहीं...

वाह ! क्या दिल को छूने वाली अभिव्यक्ति.....बहुत सुन्दर...आभार..

गुड्डोदादी (चिकागो से said...

भाव चेहरे पर लिखा जो लब से वो कहते नहीं
है खुशी और गम जहां में अश्क यूँ बहते नहीं

बहुत सुंदर लिखा

गर किसी को है समझना खुद को पहचानो सुमन
हो तजुर्बा सोचकर बस यूँ ही कुछ कहते नहीं

कुछ भी कहो आईना देखना चाहिए

गुड्डोदादी said...

सच्चाई को चाहता हूँ ...सच..सच को कितना भी दबाओ मगर सच्चाई सामने आ ही जाती है . जो भी समाज में या अपने देश मे अन्याय भरी बात देखता हूँ बस लिख देता हूँ, क्योंकि सच्चाई को चाहता हूँ ... क्या आप भी मेरी तरह सच्चाई को चाहते हो ? अगर हाँ तो फिर आओ मिलकर कुछ कर दिखाएँ ...मैं तो सच्चाई अपने ब्लॉग में लिखता हूँ . आप भी लिखना चाहोगे क्या ? यकीन रखना सच्चाई देर से सामने आती है, मगर आती ज़रूर है ... सच्चाई कड़वी भी होती है दोस्त ..मगर आप सभी भी सक्चाई को ही चाहना ... सक्चाई को चने से कम से कम दिल को सुकून तो मिलेगा .

Anonymous said...

भाव चेहरे पर लिखा जो लब से वो कहते नहीं
है खुशी और गम जहां में अश्क यूँ बहते नहीं

अश्क तो हमारे बहते रहेंगे
सन्देश पे सन्देश भेजे हमने

एडी उठा उठा कर देखा
वह आज भी नहीं आया
कहाँ पत्थर मारूं उसको
शीशा टूट गया होगा
कैसे देखूं कैसे बुलाऊँ

रंजना said...

गर किसी को है समझना खुद को पहचानो सुमन......

कितना सही कहा आपने...सचमुच !!!!

सदैव की भांति, सीख देती सुन्दर मनमोहक रचना...

Anonymous said...

dil chu liya aapne...

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