Sunday, November 14, 2010

नेता और कुदाल

चली सियासत की हवा, नेताओं में जोश।
झूठे वादे में फँसे, लोग बहुत मदहोश।।

दल सारे दलदल हुए, नेता करे बबाल।
किस दल में अब कौन है, पूछे लोग सवाल।।

मुझ पे गर इल्जाम तो, पत्नी को दे चांस।
हार गए तो कुछ नहीं, जीते तो रोमांस।।

जनसेवक राजा हुए, रोया सकल समाज।
हुई कैद अब चाँदनी, कोयल की आवाज।।

नेता और कुदाल की, नीति-रीति है एक।
समता खुरपी सी नहीं, वैसा कहाँ विवेक।।

कलतक जो थी झोपड़ी, देखो महल विशाल।
जाती घर तक रेल अब, नेता करे कमाल।।

धवल वस्त्र हैं देह पर, है मुख पे मुस्कान।
नेता कहीं न बेच दे, सारा हिन्दुस्तान।।

सच मानें या जाँच लें, नेता के गुण चार।
बड़बोला, झूठा, निडर, पतितों के सरदार।।

पाँच बरस के बाद ही, नेता आये गाँव।
नहीं मिलेंगे वोट अब, लौटो उल्टे पाँव।।

जगी चेतना लोग में, है इनकी पहचान।
गले सुमन का हार था, हार गए श्रीमान।।

8 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

झन्नाटेदार व्यंग, वाह।

M VERMA said...

जमा दिया करारा ....
बहुत सुन्दर

रंजना said...

वाह....

व्यवस्था पर करारा चोट करती अति सार्थक और सुन्दर रचना...

आपकी कलम सदा सलामत रहे भैया...

Unknown said...

वाह !

चन्द्र कुमार सोनी said...

khatarnaak ji khatarnaak.
thanks.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

Anonymous said...

कृष्ण हृदय पर श्वेत-वस्त्र चेहरे पे मुस्कान।
नेता कहीं न बेच दे सारा हिन्दुस्तान।।
सावधान करता हुआ यह गीत हृदय में जोश भरता है ! श्यामल जी !भ्रष्टाचार बहुत बहुत बढ़ गया है ! कब रुकेगा ! बहुत सामयिक पोस्ट बधाई

गुड्डोदादी said...

श्यामल जी
चिरंजीव भवः

नेता और कुदाल की नीति-रीति है एक।
समता खुरपी सी नहीं वैसा कहाँ विवेक।।


पूरी कविता में भूत मिर्ची का तीखा व्यंग

मुकेश कुमार सिन्हा said...

मुझ पे गर इल्जाम तो दो पत्नी को चांस।
हार गए तो कुछ नहीं जीते तो रोमांस।।


mast vyangya hai sir
lalu jee ko bhejo.........:P

हाल की कुछ रचनाओं को नीचे बॉक्स के लिंक को क्लिक कर पढ़ सकते हैं -
रचना में विस्तार
साहित्यिक  बाजार  में, अलग  अलग  हैं संत। जिनको  आता  कुछ  नहीं, बनते अभी महंत।। साहित्यिक   मैदान   म...
अन्ध-भक्ति है रोग
छुआछूत  से  कब  हुआ, देश अपन ये मुक्त?  जाति - भेद  पहले  बहुत, अब  VIP  युक्त।। धर्म  सदा  कर्तव्य  ह...
गन्दा फिर तालाब
क्या  लेखन  व्यापार  है, भला  रहे  क्यों चीख? रोग  छपासी  इस  कदर, गिरकर  माँगे  भीख।। झट  से  झु...
मगर बेचना मत खुद्दारी
यूँ तो सबको है दुश्वारी एक तरफ  मगर बेचना मत खुद्दारी एक तरफ  जाति - धरम में बाँट रहे जो लोगों को  वो करते सचमुच गद्दारी एक तरफ  अक्सर लो...
लेकिन बात कहाँ कम करते
मैं - मैं पहले अब हम करते  लेकिन बात कहाँ कम करते  गंगा - गंगा पहले अब तो  गंगा, यमुना, जमजम करते  विफल परीक्षा या दुर्घटना किसने देखा वो...
विश्व की महान कलाकृतियाँ- पुन: पधारें। नमस्कार!!!