निकला हूँ मैं अकेला अनजान सी डगर है
कोई साथ आये, छूटे मंजिल पे बस नजर है
महफिल में मुस्कुराना मुश्किल नहीं है यारो
जो घर पे मुस्कुराये समझो उसे जिगर है
पी करके लड़खड़ाना और गिर के सम्भल जाना
इक मौत जिन्दगी की दूजा नया सफर है
जब सोचने की ताकत और हाथ भी सलामत
फिर क्यों बने हो बेबस किस बात की कसर है
हम जानवर से आदम कैसे बने ये सोचो
फिर क्यों चले उधर हम पशुता सुमन जहर है
Sunday, October 31, 2010
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रचना में विस्तार
साहित्यिक बाजार में, अलग अलग हैं संत। जिनको आता कुछ नहीं, बनते अभी महंत।। साहित्यिक मैदान म...
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अन्ध-भक्ति है रोग
छुआछूत से कब हुआ, देश अपन ये मुक्त? जाति - भेद पहले बहुत, अब VIP युक्त।। धर्म सदा कर्तव्य ह...
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गन्दा फिर तालाब
क्या लेखन व्यापार है, भला रहे क्यों चीख? रोग छपासी इस कदर, गिरकर माँगे भीख।। झट से झु...
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मगर बेचना मत खुद्दारी
यूँ तो सबको है दुश्वारी एक तरफ मगर बेचना मत खुद्दारी एक तरफ जाति - धरम में बाँट रहे जो लोगों को वो करते सचमुच गद्दारी एक तरफ अक्सर लो...
यूँ तो सबको है दुश्वारी एक तरफ मगर बेचना मत खुद्दारी एक तरफ जाति - धरम में बाँट रहे जो लोगों को वो करते सचमुच गद्दारी एक तरफ अक्सर लो...
लेकिन बात कहाँ कम करते
मैं - मैं पहले अब हम करते लेकिन बात कहाँ कम करते गंगा - गंगा पहले अब तो गंगा, यमुना, जमजम करते विफल परीक्षा या दुर्घटना किसने देखा वो...
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विश्व की महान कलाकृतियाँ-
16 comments:
बहुत खूब !
हार्दिक शुभकामनायें !
श्यामल जी
चिरंजीव भव:
निकला हूँ मैं अकेला अनजान सी डगर है
कोई साथ आये, छूटे मंजिल पे बस नजर है
आपकी कविता कुबेर धन से भर पूर
घर से चले थे खुशी की तलाश में
गम राह में खड़े थे वही साथ हो लिए
bahut suder ghazal !
बहुत खूब, नज़र मंजिल पर ही है।
ह सर...
वाकई बहुत अच्छा लगा
अच्छी रचना
जब सोचने की ताकत और हाथ भी सलामत
फिर क्यों बने हो बेबस किस बात की कसर है
हम जानवर से आदम कैसे बने ये सोचो
फिर क्यों चले उधर हम पशुता सुमन जहर है
Waise to pooree rachana kamaal kee hai!
पी करके लड़खड़ाना और गिर के सम्भल जाना
इक मौत जिन्दगी की दूजा नया सफर है
sundar satya...
sundar rachna!
महफिल में मुस्कुराना मुश्किल नहीं है यारो
जो घर पे मुस्कुराये समझो उसे जिगर है
दर्द लिख लेते हैं आप
घर में मुस्कराहट ही न थी जिगर कहाँ से लाते दिल का दिया हो रोशन भले सारे चिराग बुझ जाते
गीत गाते जायेंगे आंसूं बहते जायेगे
लोह्स्थंभ तेरी ही शिक्षा पर चलेंगे
Nice..... beautifully
महफिल में मुस्कुराना मुश्किल नहीं है यारो
जो घर पे मुस्कुराये समझो उसे जिगर है !!!
ओह भैया.... क्या कहूँ इस अद्भुद रचना पर ???
माता सरस्वती सदा आपपर अपना वरदहस्त धरे रहें...
बहुत ही बेहतरीन रचा है, वाह!
महफिल में मुस्कुराना मुश्किल नहीं है यारो
जो घर पे मुस्कुराये समझो उसे जिगर है...
बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण गज़ल..
आप को सपरिवार दीपावली मंगलमय एवं शुभ हो!
मैं आपके -शारीरिक स्वास्थ्य तथा खुशहाली की कामना करता हूँ
इस ज्योति पर्व का उजास
जगमगाता रहे आप में जीवन भर
दीपमालिका की अनगिन पांती
आलोकित करे पथ आपका पल पल
मंगलमय कल्याणकारी हो आगामी वर्ष
सुख समृद्धि शांति उल्लास की
आशीष वृष्टि करे आप पर, आपके प्रियजनों पर
आपको सपरिवार दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनाएं.
सादर
डोरोथी.
पी करके लड़खड़ाना और गिर के सम्भल जाना
इक मौत जिन्दगी की दूजा नया सफर है
मंजिल उसे ही ही मिलती है
आपकी दर्द भरी गजल को पूजा घर में सजा के रक्खेंगे
यह आपके लिए
http://blogsinmedia.com/2011/01/%E0%A4%A6%E0%A5%88%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%95-%E0%A4%9B%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%B8%E0%A4%97%E0%A5%9D-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A4%AE/
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