हर दम्पति की आस है इक न इक सन्तान।
बेटी पहले ही मिले अगर कहीं भगवान।।
प्यारी होती बेटियाँ सबका करे खयाल।
नैहर में जीवन शुरू शेष कटे ससुराल।।
घर की रौनक बेटियाँ जाती है क्यों दूर।
समझ न पाया आजतक कैसा यह दस्तूर।।
सारी खुशियाँ मिल सके चाहत मन में खास।
सब कुछ देकर न मिटे फिर देने की प्यास।
शादी बिटिया की इधर मन के भीतर टीस।
मना रहे श्यामल सुमन सालगिरह उनतीस।।
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10 comments:
घर की रौनक बेटियाँ जाती है क्यों दूर।
समझ न पाया आजतक कैसा यह दस्तूर।।
यही दस्तूर तो सालती है ..
सुन्दर रचना
सुन्दर रचना
Bahut khoob!
घर की रौनक बेटियाँ जाती है क्यों दूर।
समझ न पाया आजतक कैसा यह दस्तूर।।
बेटी भगवान का सबसे बड़ा वरदान है. लेकिन यह एक सामाजिक विडम्बना ही है कि आप की सबसे प्यारी बेटी ही आप से दूर होने को मजबूर है.बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति..
बेटियाँ घर का माहौल कोमल बनाये रखती हैं।
जरूर बेटी के पिता हो.तभी वो दर्द,वो खुशी,वो हर्ष है आपकी इस कविता में.
Beti se ghar men raunak hoti hai pyar hota hai komalta hoti hai. dastoor hee unhe humse alag kar deta hai par fir bhee we hamare bare men sochana nahee chodateen.
आदरणीय श्यामल सुमन जी
नमस्कार !
वास्तव में बेटियां परमात्मा का वरदान होती हैं ।
आपका प्रत्येक दोहा मन को भाव विभोर करने वाला है …
हर दम्पति की आस है इक न इक सन्तान।
बेटी पहले ही मिले अगर कहीं भगवान।।
भगवान ने मुझे तीन बेटे दिए , मेरा परम सौभाग्य ! लेकिन बेटी का सुख मैं अब प्रथम पुत्र की प्रथम संतान के माध्यम से अनुभव कर रहा हूं ।
तत्संबंधी पोस्ट का लिंक नीचे दे रहा हूं , अवसर मिले तो देखें ।
शस्वरं पर बेटी
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
स्वयं बेटी भी हूँ और बेटी की माँ भी....
इस व्यथा को ठीक ठीक बता पाना सचमुच असंभव है...
मार्मिक कविता/उदगार !!!
sundar rachna...
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