तनिक बतायें नेताजी, राष्ट्रवादियों के गुण खासा।
उत्तर सुनकर दंग हुआ और छायी घोर निराशा।।
नारा देकर गाँधीवाद का, सत्य-अहिंसा को झुठलाना।
एक है ईश्वर ऐसा कहकर, यथासाध्य दंगा करवाना।
जाति प्रांत भाषा की खातिर, नये नये झगड़े लगवाना।
बात बनाकर अमन-चैन की, शांति-दूत का रूप बनाना।
खबरों में छाये रहने की, हो उत्कट अभिलाषा।
राष्ट्रवादियों के गुण खासा।।
किसी तरह धन संचित करना, लक्ष्य हृदय में हरदम इतना।
धन-पद की तो लूट मची है, लूट सको संभव हो जितना।
सुर नर मुनि सबकी यही रीति, स्वारथ लाई करहिं सब प्रीति।
तुलसी भी ऐसा ही कह गए बोलो तर्क सिखाऊँ कितना।।
पहले "मैं" हूँ राष्ट्र "बाद" में ऐसी रहे पिपासा।
राष्ट्रवादियों के गुण खासा।।
आरक्षण के अन्दर आरक्षण, आपस में भेद बढ़ाना है।
फूट डालकर राज करो, यह नुस्खा बहुत पुराना है।
गिरगिट जैसे रंग बदलना, निज-भाषण का अर्थ बदलना।
घड़ियाली आंसू दिखलाकर, सबको मूर्ख बनाना है।
हार जाओ पर सुमन हार की कभी न छूटे आशा।
राष्ट्रवादियों के गुण खासा।।
"सूत्र" एक है "वाद" हजारों, टिका हुआ है भारत में।
राष्ट्रवाद तो बुरी तरह से, फँस गया निजी सियासत में।।
Friday, April 8, 2011
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6 comments:
राष्ट्रवाद नारों में फँस गया है।
राष्ट्रवादियों के गुण को बहुत खूब उकेरा है इस रचना के माध्यम से.
श्यामल जी
चिरंजीव भवः
राष्ट्र वादियों के गुणवत्ता के गुणगान
बहुत ही ठोक ठोक के भूत मिर्ची जैसा व्यंग | लिखते रहें
धन्यवाद |
बहुत बढिया व्यंग्य
श्यामल जी
चिरंजीव भवः
किसी तरह धन संचित करना,लक्ष्य ह्रदय में हरदम इतना
धन पद की तो लूट मची है,लूट सको तुम लूटो उतना
भले ही स्वतंत्र हो गए पर इतनी अंधेर गर्दी फिरंगिओं के राज में ना थी
हमारे प्रिय नेता
भारत रत्न पाने को रोता
achcha geet hai
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