अपना गीत - अपना स्वर
मन-मीत -- एक भाव गीत
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मन को मीत मिला न मन-सा।
भाव-जगत में हूँ निर्धन-सा।।
कहने को होता कुछ अपना।
लेकिन सच अपनापन सपना।
समझौते लाखों कर लें पर,
रहता जीवन में अनबन-सा।
मन को मीत मिला न मन-सा।
भाव-जगत में हूँ निर्धन-सा।।
अनजाने में प्यार किसी से।
क्या जीवन-व्यवहार उसी से?
इस उलझन में उलझ के जीवन,
बनता पतझड़ के उपवन-सा।
मन को मीत मिला न मन-सा।
भाव-जगत में हूँ निर्धन-सा।।
जिसके खातिर हम जीते हैं।
समय समय पर गम पीते हैं।
वह रकीब जब बन जाता है,
तब लगता जीवन बंधन-सा।
मन को मीत मिला न मन-सा।
भाव-जगत में हूँ निर्धन-सा।।
रोज सीखते जो जीवन से।
संघर्षों से, स्पन्दन से।
उस पलास का जीवन कैसा?
जीता खुशबू-हीन सुमन-सा।
मन को मीत मिला न मन-सा।
भाव-जगत में हूँ निर्धन-सा।।
--
सादर
श्यामल सुमन
+919955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
Sunday, April 17, 2011
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4 comments:
बहुत सुन्दर अभिब्यक्ति| धन्यवाद|
श्यामल जी
चिरंजीव भवः
आपके गीत में गजब के शब्द
आपका गीत मन मीत बहु और पोते श्यान गुली के साथ सुना गीत सुन मेरे तो अश्रु निकले बहु के भी अश्रु बह गए गुली ने पूछा वाये क्रायिंग ही इज सिन्गिंग
पढ़कर ही आनन्दित हो गये, अब सुनने चलते हैं।
KAHNE KO TO HOTA KUCH APNA..... SUNAR RACHNA. THAK YOU
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