राष्ट्र-गान आये ना जिनको, वो संसद के पहरेदार।
भारतवासी अब तो चेतो, लोकतंत्र सचमुच बीमार।।
कहने को जनता का शासन, लेकिन जनता दूर बहुत।
रोटी - पानी खातिर तन को, बेच रहे मजबूर बहुत।
फिर कैसे उस गोत्र - मूल के, लोग ही संसद जाते हैं,
हर चुनाव में नम्र भाव, फिर दिखते हैं मगरूर बहुत।।
प्रजातंत्र मूर्खों का शासन, कथन हुआ बिल्कुल साकार।
भारतवासी अब तो चेतो, लोकतंत्र सचमुच बीमार।।
बहुत शान से यहाँ लुटेरे, "बड़े लोग" कहलाते हैं।
मिहनतकश को नीति-वचन और वादों से सहलाते हैं।
वो अभाव में अक्सर जीते, जिनके हैं ईमान बचे,
इधर घोषणा बस कागज में, बेबस को बहलाते हैं।।
परिवर्तन लाजिम है लेकिन, शेष क्रांति का बस आधार।
भारतवासी अब तो चेतो, लोकतंत्र सचमुच बीमार।।
वीर-शहीदों की आशाएँ, कहो आज क्या बच पाई?
बहुत कठिन है जीवन-पथ पर, धारण करना सच्चाई।
मन - दर्पण में अपना चेहरा, रोज आचरण भी देखो,
निश्चित धीरे-धीरे विकसित, होगी खुद की अच्छाई।।
तब दृढ़ता से हो पायेगा, सभी बुराई का प्रतिकार।
भारतवासी अब तो चेतो, लोकतंत्र सचमुच बीमार।।
कर्तव्यों का बोध नहीं है, बस माँगे अपना अधिकार।
सुमन सभी संकल्प करो कि, नहीं सहेंगे अत्याचार।।
तब ही सम्भव हो पायेगा, भारत का फिर से उद्धार।
अपने संग भावी पीढ़ी पर, हो सकता है इक उपकार।।
Friday, April 29, 2011
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विश्व की महान कलाकृतियाँ-
13 comments:
प्रजातंत्र मूर्खों का शासन, कथन हुआ बिल्कुल साकार।
भारतवासी अब तो चेतो, लोकतंत्र सचमुच बीमार।।
चलते चलते 80 साल का बूढ़ा गिरता बार बार जो कांग्रेस अधिवेशन की विडीओ मे देखा दस बार
लालच सत्ता की कुर्सी नहीं छोड़ने को तैय्यार
जीवन-पथ पर बहुत कठिन है, धारण करना सच्चाई।
मन - दर्पण में अपना चेहरा, रोज आचरण भी देखो,
निश्चित धीरे-धीरे विकसित, होगी खुद की अच्छाई।।
बहुत ही सच की व्याख्या
जो करता भलाई उसी की पीठ की सिकाई
वीर-शहीदों की आशाएँ, कहो आज क्या बच पाई?
जीवन-पथ पर बहुत कठिन है, धारण करना सच्चाई।
मन - दर्पण में अपना चेहरा, रोज आचरण भी देखो,
निश्चित धीरे-धीरे विकसित, होगी खुद की अच्छाई।।
वीर शाहीदों की आशाएं सब मिटटी हो गई
करो भलाई मिले बुराई
प्रेरित करती सुन्दर सार्थक रचना।
प्रजातंत्र मूर्खों का शासन, कथन हुआ बिल्कुल साकार।
भारतवासी अब तो चेतो, लोकतंत्र सचमुच बीमार।।
बहुत सुंदर रचना आज के सत्य को दर्शाति, धन्यवाद
SIR BHARAT KI RAJNITI KE BARE ME BTATI BAHUT ACHI KAVITA HAI YE. SIR AAP BHI HMARE BLOG PAR AAYEN OR HUME MARGDARSHAN DENE KI KRIPA KARE. DHANYWAD JAI BHARAT
बहुत शान से यहाँ लुटेरे, "बड़े लोग" कहलाते हैं।
मिहनतकश को नीति-वचन और वादों से सहलाते हैं।
हैं अभाव में अक्सर जीते, जिनके हैं ईमान बचे,
इधर घोषणा बस कागज में, बेबस को बहलाते हैं।।
परिवर्तन लाजिम है लेकिन, शेष क्रांति का बस आधार।
भारतवासी अब तो चेतो, लोकतंत्र सचमुच बीमार।।
कितना सही कहा भाईजी...
सार्थक आह्वान...
विचारोत्तेजक और प्रेरक रचना।
ये कवि की कल्पना मात्र नहीं है, बल्कि एक कठोर वास्तविकता है कि दो तिहाई से ज्यादा
जन प्रतिनिधियों को जन गण मन नहीं आता, यह एक राष्ट्रीय शर्म है .......पर न तो आप
और न ही वे इसे स्वीकार करते हैं.....
राष्ट्र-गान आये ना जिनको, वो संसद के पहरेदार।
भारतवासी अब तो चेतो, लोकतंत्र सचमुच बीमार।।
-गजब भाई...इतना ही पूरा है अपने आप में...बेहतरीन!!!
प्रेरणादायक रचना ..
बेहतरीन लाजवाब रचना ....आपकी खूबसूरत कलम को प्रणाम !
sach ka darpan dikhati hui atiuttam rachna.loktantr sachmuch beemar.
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