जीवन में नित सीखते, नव-जीवन की बात।
प्रेम कलह के द्वंद में, समय कटे दिन रात।।
चूल्हा-चौका सँग में, और हजारो काम।
डरते हैं पतिदेव भी, शायद उम्र तमाम।।
झाड़ू, कलछू, बेलना, आलू और कटार।
सहयोगी नित काज में, और कभी हथियार।।
जो ज्ञानी व्यवहार में, करते बाहर प्रीत।
घर में अभिनय प्रीत के, रीति बहुत विपरीत।।
मेहनत बाहर में पति, देख थके घर-काज।
क्या करते, कैसे कहें, सुमन आँख में लाज।।
प्रेम कलह के द्वंद में, समय कटे दिन रात।।
चूल्हा-चौका सँग में, और हजारो काम।
डरते हैं पतिदेव भी, शायद उम्र तमाम।।
झाड़ू, कलछू, बेलना, आलू और कटार।
सहयोगी नित काज में, और कभी हथियार।।
जो ज्ञानी व्यवहार में, करते बाहर प्रीत।
घर में अभिनय प्रीत के, रीति बहुत विपरीत।।
मेहनत बाहर में पति, देख थके घर-काज।
क्या करते, कैसे कहें, सुमन आँख में लाज।।
13 comments:
PREM KLAH KE DVAND ME SAMAY KTE DIN RAAT..,... BHAVPURN RACHNA HAI. . . . . . . .JAI HIND JAI BHARAT
रोजमर्रा की कविता :)
अरविन्द भाई का कमेन्ट देख आनंद आ गया ! वाकई ...
शुभकामनायें आपको भाई जी !
प्रेम कलह के द्वंद में समय कटे दिन रात।।
...बहुत सही और सुन्दर..
न जाने कितने चक्रों में फँसा हुआ जीवन।
ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने! उम्दा प्रस्तुती! बधाई!
बाहर से आकर पति देख थके घर-काज।
क्या करते, कैसे कहे सुमन आँख में लाज।।
वाह! बहुत बढ़िया ...शुभकामना
सुंदर कविता जी... घर घर की यही बात
चूल्हा-चौका संग में और हजारो काम।
इस कारण डरते पति शायद उम्र तमाम।।
बेचारा पति
दादी को लिट्टीचोखा तो बना के खिलाई नहीं
बहुत खूब
rochak kavita .
sunder prastuti badhai
यही दुनिया की है रीति
यही है दुनिया की रीति
सुन्दर भाव्
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