जो आँखों के तारे रिश्ते
टूट रहे हैं सारे रिश्ते
परिभाषाएँ बदल रहीं हैं
शब्दों के चौबारे रिश्ते
आसपास देखो तो कितने
ढोते हैं बेचारे रिश्ते
कौन मोल उनको देता जो
यहाँ वक्त के मारे रिश्ते
बहुत अनोखी बात आजकल
बनते जहाँ सहारे रिश्ते
खून के रिश्ते, ख़ूनी रिश्ते
क्यों बन जाते प्यारे रिश्ते
रिसते रिसते बन जाते हैं
सुमन कभी अंगारे रिश्ते
Sunday, June 12, 2011
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8 comments:
इतना रिसना,
व्यर्थ सिसकना,
किसे दोष दूँ,
समझे वो ना।
बहुत सुंदर गज़ल श्यामल जी....
हर शेर अच्छा लगा...
बधाई...
उम्दा शेर और बेहतरीन गजल
bahut achi gajal likhi hai apne. . Jai hind jai bharat
यथार्थ का चित्रण किया है आपने, बहुत सुन्दर
श्यामल जी आप मेरी ग्यारह्वीब्लांग मे आकर मेरा उत्साह बढ़ाया..धन्यवाद..आप की गजल पढ़ीबहुत सुंदर..हर शे बहुत अच्छा लगा...
परिभाषाएँ बदल रहीं हैं
शब्दों के चौबारे रिश्ते
Khoob Kaha...Behtreen sach ki bangi panktiyan...
बहुत उम्दा खूबसूरत ग़ज़ल मीटर पर भी खरी बहुत खूब
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