Wednesday, June 15, 2011

आँसुओं को पी रहा हूँ

कौन मुझसे पूछता अब किस तरह से जी रहा हूँ
प्यास है पानी के बदले आँसुओं को पी रहा हूँ

जख्म अपनों से मिले फिर दर्द कैसा, क्या कहें
आसमां ही फट गया तो बैठकर के सी रहा हूँ

चाहने वाले हजारों जब तेरे शोहरत के दिन थे
वक्त गर्दिश का पड़ा तो साथ में मैं ही रहा हूँ

बादलों सा नित भटकना अश्क को चुपचाप पीना
याद कर चाहत में तेरी एक दिन मैं भी रहा हूँ

क्या सुमन किस्मत है तेरी आ के मधुकर रूठ जाता
देवता के सिर से गिर के कूप का पानी रहा हूँ

19 comments:

Kusum Thakur said...

बहुत खूब .......लगता है दिल की गहराइयों से लिखी गई हो.

सचिन लोकचंदानी said...

बेहतरीन ग़ज़ल....

M VERMA said...

कौन मुझसे पूछता अब किस तरह से जी रहा हूँ
प्यास है पानी के बदले आँसुओं को पी रहा हूँ

बेहतरीन गज़ल

Kailash Sharma said...

जख्म अपनों से मिले फिर दर्द कैसा, क्या कहें
आसमां ही फट गया तो बैठकर के सी रहा हूँ....

बहुत ख़ूबसूरत गज़ल..

दिगम्बर नासवा said...

चाहने वाले हजारों जब तेरे शोहरत के दिन
वक्त गर्दिश का पड़ा तो साथ में मैं ही रहा हूँ ..

बहुत लाजवाब शेर है इस निहायत खूबसूरत ग़ज़ल का .. बधाई ...

kshama said...

Aapkee rachnayen nishabd kar deteen hain!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

जख्म अपनों से मिले फिर दर्द कैसा, क्या कहें
आसमां ही फट गया तो बैठकर के सी रहा हूँ

चाहने वाले हजारों जब तेरे शोहरत के दिन
वक्त गर्दिश का पड़ा तो साथ में मैं ही रहा हूँ

बहुत खूबसूरत गज़ल ..

निवेदिता श्रीवास्तव said...

नये-नये प्रतीक बिम्ब .... बहुत ख़ूब !

शारदा अरोरा said...

bahut badhiya likha hai

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस उत्कृष्ट प्रवि्ष्टी की चर्चा कल शुक्रवार के चर्चा मंच पर भी है!

प्रवीण पाण्डेय said...

कई बार तो पी चुका हूँ,
किन्तु फिर फिर जी रहा हूँ।

डॉ. मोनिका शर्मा said...

जख्म अपनों से मिले फिर दर्द कैसा, क्या कहें
आसमां ही फट गया तो बैठकर के सी रहा हूँ

Khoob Kaha.... Sunder rachna

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

behtareen badhai

Unknown said...

बहुत उम्दा रचना है

क्या कहेँ आए थे किस उम्मीद से किस दिल मेँ हम

इक जनाज़ा बन के उठते हैँ तेरी महफ़िल से हम

prerna argal said...

dil ki gharai se likhi hui ,dard main doobi bahut hi sambedansheel rachanaa.badhaai sweekaren.

बाबुषा said...

sundar hai .

कविता रावत said...

क्या सुमन किस्मत है तेरी आ के मधुकर रूठ जाता
देवता के सिर से गिर के कूप का पानी रहा हूँ
...behtreen prastuti..

अनामिका की सदायें ...... said...

apki lekhni ka jaadu dil ki gehraiyon tak pahunchta hai.

bahut badhiya gazel.

Sadhana Vaid said...

बहुत सुन्दर गज़ल है श्यामल जी ! हर शेर बेहतरीन है और हर भाव मुकम्मल ! बधाई स्वीकार करें !

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