Thursday, June 23, 2011

नहीं किसी को छलना सीखा

जब से मैंने चलना सीखा
हाथ कभी न मलना सीखा

खुद का निर्णय गलत हुआ तो
उसको तुरत बदलना सीखा

जीवन के पथरीले पथ पर
गिर के सदा सम्भलना सीखा

खा कर धोखे कई बार भी
नहीं किसी को छलना सीखा

कोई खुश गर मेरे काम से
सचमुच तभी मचलना सीखा

कई लोग जीते काहिल-सा
खैरातों में पलना सीखा

सफल सुमन उपकारी जीवन
तभी पेड़ ने फलना सीखा

17 comments:

Kusum Thakur said...

"खा कर धोखे कई बार भी
नहीं किसी को छलना सीखा"

यदि मनुष्य यह सीख ले, तो दूसरे से ज्यादा खुद को संतुष्टि मिलेगी.

***Punam*** said...

"जीवन के पथरीले पथ पर
गिर के सदा सम्भलना सीखा

खा कर धोखे कई बार भी
नहीं किसी को छलना सीखा"

शायद ज़िंदगी यही है...!!
खुद को समझने और पहचानने के लिए जिन्दगी हमें ये अवसर देती रहती है..
इंसान की हिम्मत और सहनशक्ति की परिक्षा ऐसे ही समय पर होती है !

बस लाजवाब....!!

प्रवीण पाण्डेय said...

साँचे लेकर लोग खड़े,
पर अपने से ढलना सीखा।

सु-मन (Suman Kapoor) said...

bahut sundar....

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

जीवन के पथरीले पथ पर
गिर के सदा सम्भलना सीखा

खा कर धोखे कई बार भी
नहीं किसी को छलना सीखा

बहुत खूबसूरत गज़ल

Unknown said...

waah.........jai ho !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस उत्कृष्ट प्रवि्ष्टी की चर्चा आज शुक्रवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!

SAJAN.AAWARA said...

BAHUT HI KHUBSURATI SE LIKHA HAI APNE. . . .
JAI HIND JAI BHARAT

Urmi said...

सच्चाई को आपने बड़े खूबसूरती से प्रस्तुत किया है! हर एक पंक्तियाँ लाजवाब है! उम्दा ग़ज़ल!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/

ana said...

bahut kuchh kaha aapki kavita

रंजना said...

सफल सुमन उपकारी जीवन
तभी पेड़ ने फलना सीखा ...

सत्य कहा...जीवन तो तभी सफल हो जब किसीके हित आये यह...

और जो बनना हो तो बादल सूरज चंदा वर्षा सा बना जाय न,जो किसको कुछ भी देते समय भेद नहीं करता और न यह देखता है कि सामने वाला उसे क्या दे रहा है या नहीं...

प्रेरणामयी इस सुन्दर रचना के लिए आभार भाई जी...

वाणी गीत said...

खा कर धोखे कई बार भी
नहीं किसी को छलना सीखा...

मन को संतुष्टि इसीमे मिलती है ...
सुन्दर रचना !

M VERMA said...

खुद का निर्णय गलत हुआ तो
उसको तुरत बदलना सीखा

सुन्दर प्रेरक स्वर

amrendra "amar" said...

सच्चाई को आपने बड़े खूबसूरती से प्रस्तुत किया है! हर एक पंक्तियाँ लाजवाब है

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

खुद का निर्णय गलत हुआ तो
उसको तुरत बदलना सीखा
जीवन के पथरीले पथ पर
गिर के सदा सम्भलना सीखा
सीधे- सरल, छोटे-छोटे शब्दोंतथा ,जीवन की नैसर्गिक अनुभूतियों के साथ प्रवाहमयी कविता ने अंतर्मन को छू लिया.

Anonymous said...

you have written so well about human value and every one should live with same spirit.
great "GAZAL"

Regards,

Ranjeet Jha

Admin said...

bahut achaa
kabhi hamare blog me aaye yaha se mere blog me aayemere blog se bhi update rahe

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