प्रायः गैस के रोग से आम लोग मजबूर।
कीमत कुछ ऐसे बढ़ी गैस किचन से दूर।।
आमलोग खाते कहाँ अब मौसम में आम।
जनमत की सरकार है रोज बढ़ाये दाम।।
जीवन जीना है अगर क्या रोने का अर्थ।
मिले हाथ प्रतिकार को समय करो न व्यर्थ।।
लोहा जब होता गरम तभी उचित है चोट।
अपने से इन्साफ कर सोच समझ दे वोट।।
है मंत्री को क्या पड़ी उनके घर में चैन।
इधर करोड़ों लोग के भरे हुए हैं नैन।।
बात गरीबों की करे चढ़ते सभी जहाज।
है मोहक मुस्कान पर करे कभी न लाज।।
शासक दिल्ली के नहीं आम लोग के मीत।
सुमन सजग सब हों अगर ये सरकार अतीत।।
Sunday, June 26, 2011
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7 comments:
बिल्कुल सही लिखा आपने। बढिया रचना है।
shyamal ji badhaai !
gazab ke dohe hain...
sahityik bhi aur mancheeya bhi
jai ho aapki !
aap par ek post likhunga tabhi voh baat banegi jo main kahna chaahta hun aapke bare me
jai hind !
वाह सुमन जी.... सम सामयिक पर आधारित दोहे से आपने बहुत सुन्दर और सटीक सन्देश दिया है !
गैस बहुत परेशान करती है, शरीर को भी।
सार्थक सन्देश देते सटीक दोहे ...
badhiya hai...aaj ki paristhiti par likhi gai rachna...
bahoot khoob
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