अपना गीत - अपना स्वर
कृपया वीडियो को क्लिक करके सुने - नीचे इसी ग़ज़ल के बोल भी हैं
हाल पूछा आपने तो पूछना अच्छा लगा
बह रही उल्टी हवा से जूझना अच्छा लगा
दुख ही दुख जीवन का सच है लोग कहते हैं यही
दुख में भी सुख की झलक को ढ़ूँढ़ना अच्छा लगा
हैं अधिक तन चूर थककर खुशबू से तर कुछ बदन
इत्र से बेहतर पसीना सूँघना अच्छा लगा
रिश्ते टूटेंगे बनेंगे जिन्दगी की राह में
साथ अपनों का मिला तो घूमना अच्छा लगा
कब हमारे चाँदनी के बीच बदली आ गयी
कुछ पलों तक चाँद का भी रूठना अच्छा लगा
घर की रौनक जो थी अबतक घर बसाने को चली
जाते जाते उसके सर को चूमना अच्छा लगा
दे गया संकेत पतझड़ आगमन ऋतुराज का
तब भ्रमर के संग सुमन को झूमना अच्छा लगा
Wednesday, June 29, 2011
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6 comments:
कब हमारे चाँदनी के बीच बदली आ गयी
कुछ पलों तक चाँद का भी रूठना अच्छा लगा
घर की रौनक जो थी अबतक घर बसाने को चली
जाते जाते उसके सर को चूमना अच्छा लगा
बेटी की विदाई भी मन को खुशी देती है ...सुन्दर गज़ल
कल तलक हम ध्यान से बस पढ़ रहे थे,
आज उनका बोलना अच्छा लगा।
घर की रौनक जो थी अबतक घर बसाने को चली
जाते जाते उसके सर को चूमना अच्छा लगा...
यह एक ऎसी खुशी हे जो उदास भी कर देती हे, ओर मन खुश भी होता हे बिटिया की इस जुदाई से, बहुत सुंदर गजल धन्यवाद
सुंदर, शब्द और स्वर दोनों कमाल के हैं....
zindgi ko baya karti behad khubsurat gazal.....
बहुत खुबसूरत गजल है ।
मेरे भी ब्लॉग में आयें और अच्छा लगे तो जरुर फोलो करें ।
www.pradip13m.blogspot.com
धन्यवाद ।
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