Tuesday, July 5, 2011

भाव है स्पर्श का

कौन किसको पूछता और कौन समझाता यहाँ
हम जिसे कहते है अपना और भरमाता यहाँ

हाल-ए-दिल समझा तभी तो आँख से बातें हुईं
बोल कर फिर क्या करें सब मौन बतलाता यहाँ

रूख हवा का मोड़ दो गर दिल में है जज्बात तो
तोड़ दो बन्धन वो झूठे भाव सहलाता यहाँ

सप्त-सुर में जिन्दगी की रागिनी का गीत है
तान छेड़ूँ हो के विह्वल कौन सुन पाता यहाँ

आगमन ऋतुराज का जब आस भी नूतन जगे
भाव है स्पर्श का नित जो सुमन आता यहाँ

6 comments:

डॉ. मोनिका शर्मा said...

कौन किसको पूछता और कौन समझाता यहाँ
हम जिसे कहते है अपना और भरमाता यहाँ


Sach hai....Sunder Panktiyan

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

बहुत ही गहराई में जाकर व्‍यक्‍त किये हैं आपने भाव, जो सीधे हृदय को स्‍पर्श करते हैं।

------
जादुई चिकित्‍सा !
इश्‍क के जितने थे कीड़े बिलबिला कर आ गये...।

विभूति" said...

bhut khubsurat abhivakti....

प्रवीण पाण्डेय said...

जहाँ होना चाहिये था, नहीं निर्णय हो सका,
शक्ति का उन्माद जग को नित्य उकसाता यहाँ।

रंजना said...

सदैव की भांति...दुनिया के रंग दिखती,जीने के गुर सिखाती लाजवाब रचना...

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

बेहतरीन हिंदी-गज़ल.

हाल की कुछ रचनाओं को नीचे बॉक्स के लिंक को क्लिक कर पढ़ सकते हैं -
रचना में विस्तार
साहित्यिक  बाजार  में, अलग  अलग  हैं संत। जिनको  आता  कुछ  नहीं, बनते अभी महंत।। साहित्यिक   मैदान   म...
अन्ध-भक्ति है रोग
छुआछूत  से  कब  हुआ, देश अपन ये मुक्त?  जाति - भेद  पहले  बहुत, अब  VIP  युक्त।। धर्म  सदा  कर्तव्य  ह...
गन्दा फिर तालाब
क्या  लेखन  व्यापार  है, भला  रहे  क्यों चीख? रोग  छपासी  इस  कदर, गिरकर  माँगे  भीख।। झट  से  झु...
मगर बेचना मत खुद्दारी
यूँ तो सबको है दुश्वारी एक तरफ  मगर बेचना मत खुद्दारी एक तरफ  जाति - धरम में बाँट रहे जो लोगों को  वो करते सचमुच गद्दारी एक तरफ  अक्सर लो...
लेकिन बात कहाँ कम करते
मैं - मैं पहले अब हम करते  लेकिन बात कहाँ कम करते  गंगा - गंगा पहले अब तो  गंगा, यमुना, जमजम करते  विफल परीक्षा या दुर्घटना किसने देखा वो...
विश्व की महान कलाकृतियाँ- पुन: पधारें। नमस्कार!!!