कौन किसको पूछता और कौन समझाता यहाँ
हम जिसे कहते है अपना और भरमाता यहाँ
हाल-ए-दिल समझा तभी तो आँख से बातें हुईं
बोल कर फिर क्या करें सब मौन बतलाता यहाँ
रूख हवा का मोड़ दो गर दिल में है जज्बात तो
तोड़ दो बन्धन वो झूठे भाव सहलाता यहाँ
सप्त-सुर में जिन्दगी की रागिनी का गीत है
तान छेड़ूँ हो के विह्वल कौन सुन पाता यहाँ
आगमन ऋतुराज का जब आस भी नूतन जगे
भाव है स्पर्श का नित जो सुमन आता यहाँ
हम जिसे कहते है अपना और भरमाता यहाँ
हाल-ए-दिल समझा तभी तो आँख से बातें हुईं
बोल कर फिर क्या करें सब मौन बतलाता यहाँ
रूख हवा का मोड़ दो गर दिल में है जज्बात तो
तोड़ दो बन्धन वो झूठे भाव सहलाता यहाँ
सप्त-सुर में जिन्दगी की रागिनी का गीत है
तान छेड़ूँ हो के विह्वल कौन सुन पाता यहाँ
आगमन ऋतुराज का जब आस भी नूतन जगे
भाव है स्पर्श का नित जो सुमन आता यहाँ
6 comments:
कौन किसको पूछता और कौन समझाता यहाँ
हम जिसे कहते है अपना और भरमाता यहाँ
Sach hai....Sunder Panktiyan
बहुत ही गहराई में जाकर व्यक्त किये हैं आपने भाव, जो सीधे हृदय को स्पर्श करते हैं।
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जादुई चिकित्सा !
इश्क के जितने थे कीड़े बिलबिला कर आ गये...।
bhut khubsurat abhivakti....
जहाँ होना चाहिये था, नहीं निर्णय हो सका,
शक्ति का उन्माद जग को नित्य उकसाता यहाँ।
सदैव की भांति...दुनिया के रंग दिखती,जीने के गुर सिखाती लाजवाब रचना...
बेहतरीन हिंदी-गज़ल.
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