अलग नहीं है किसी की दुनिया मगर जिन्दगी अलग अलग है
भले वो खोये हैं रौनकों में मगर सादगी अलग अलग है
यूँ मुस्कुराते मिलेंगे चेहरे कहीं खुलापन कहीं पे पहरे
कई जो दिखते हैं मुतमइन पर वहाँ तिश्नगी अलग अलग है
वो रोज मिलते हैं मुझसे आ के चले भी जाते हैं दिल जला के
बहुत ही नाजुक खिंचाव उस पे नई ताज़गी अलग अलग है
मकान जितने बड़े बड़े हैं बिना प्यार बेज़ान खड़े हैं
इधर है कोशिश दिलों को जोड़ें उधर बानगी अलग अलग है
धरम अलग पर है साथ जीना कभी खुशी और ग़मों को पीना
हैं एक मालिक सभी सुमन के मगर बंदगी अलग अलग है
भले वो खोये हैं रौनकों में मगर सादगी अलग अलग है
यूँ मुस्कुराते मिलेंगे चेहरे कहीं खुलापन कहीं पे पहरे
कई जो दिखते हैं मुतमइन पर वहाँ तिश्नगी अलग अलग है
वो रोज मिलते हैं मुझसे आ के चले भी जाते हैं दिल जला के
बहुत ही नाजुक खिंचाव उस पे नई ताज़गी अलग अलग है
मकान जितने बड़े बड़े हैं बिना प्यार बेज़ान खड़े हैं
इधर है कोशिश दिलों को जोड़ें उधर बानगी अलग अलग है
धरम अलग पर है साथ जीना कभी खुशी और ग़मों को पीना
हैं एक मालिक सभी सुमन के मगर बंदगी अलग अलग है
14 comments:
श्यामल
आशीर्वाद
बहुत ही गजब की गजल दिल को छू गई
पास होती तो दादा मुनि अशोक कुमार जी की दुअन्नी देती
मुस्कुराते मिलेंगे चेहरे कहीं खुलापन कहीं पे पहरे
कई जो दिखते हैं मुतमईन पर वहाँ तिश्नगी अलग अलग अलग है
गजब रचना।
बहुत खूब सर!
सादर
मकान जितने बड़े बड़े हैं बिना प्यार बेज़ान खड़े हैं
इधर है कोशिश दिलों को जोड़ें उधर बानगी अलग अलग है
वाह!
बहुत सुंदरता से सच्चाई व्यक्त हुई है!
वो रोज मिलते हैं मुझसे आ के चले भी जाते हैं दिल जला के
बहुत ही नाजुक खिंचाव उस पे नई ताज़गी अलग अलग है
मकान जितने बड़े बड़े हैं बिना प्यार बेज़ान खड़े हैं
इधर है कोशिश दिलों को जोड़ें उधर बानगी अलग अलग है
Wah! Kya ashaar hain!
धरम अलग पर है साथ जीना कभी खुशी और ग़मों को पीना
हैं एक मालिक सभी सुमन के मगर बंदगी अलग अलग है
वाह बहुत खूब और एक दम सही बात कहती हुई खूबसूरत प्रस्तुति.... आभार समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
मकान जितने बड़े बड़े हैं बिना प्यार बेज़ान खड़े हैं
इधर है कोशिश दिलों को जोड़ें उधर बानगी अलग अलग है
Behtreen Panktiyan...
बहुत अच्छा ब्लाग है महत्वपूर्ण जानकारी के लिए धन्यवाद
अलग नहीं है किसी की दुनिया मगर जिन्दगी अलग अलग है
भले हैं खोये वो रौनकों में मगर सादगी अलग अलग है.........बहुत ही लाजवाब प्रस्तुती.....
सुन्दर रचना सर,
सादर बधाई...
मकान जितने बड़े बड़े हैं बिना प्यार बेज़ान खड़े हैं
इधर है कोशिश दिलों को जोड़ें उधर बानगी अलग अलग है
आज के माहोल में फिट बैठती है आपकी रचना
waha bahut khubsurat gazal....
मकान जितने बड़े बड़े हैं बिना प्यार बेज़ान खड़े हैं
इधर है कोशिश दिलों को जोड़ें उधर बानगी अलग अलग है
वाह ..
जीना तेरी गली मारना तेरी गली में
bahut sunder . bahut khoob .badhi aapko
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