Monday, June 18, 2012

सुमन पागल अरजने में

खुशी की दिल में चाहत गर, खुशी के गीत गाते हैं
भरोसा क्या है साँसों का, चलो गम को भुलाते हैं

दिलों में गम लिए लाखों, हँसी को ओढ़कर जीते
सहज मुस्कानवाले कम, जो दुनिया को सजाते हैं

है कीमत कामयाबी की, जहाँ पर लोग अपने हों 
उन्हीं अपनों से क्यूँ अक्सर, वही दूरी बढ़ाते हैं

मुहब्बत और इबादत में, कोई तो फर्क समझा दो
मगर उस नाम पर जिस्मों, को अधनंगा दिखाते हैं

चलो बच्चों के सर डालें, अधूरी चाहतें अपनी
बढ़ी है खुदकुशी बच्चे, अभी खुद को मिटाते हैं

सलीका सालों में बनता, मगर वो टूटता पल में
ये दुनिया रोज बेहतर हो, सलीका फिर सिखाते हैं 

भला क्या मोल भावों का, सुमन पागल अरजने में
पलट कर देख इस कारण, कई रिश्ते गँवाते हैं

7 comments:

Satish Saxena said...

बहुत खूब भाई जी ...

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

खुशी की दिल में चाहत तो, खुशी के गीत गाते हैं
भरोसा क्या है साँसों का, चलो गम को भुलाते हैं

बहुत बेहतरीन सुंदर गजल ,,,,,

RECENT POST ,,,,,पर याद छोड़ जायेगें,,,,,

गुड्डोदादी said...

दिलों में गम लिए लाखों, हँसी को ओढ़कर जीते

विह्लल विह्लता की चोट

लोह स्तंभ की उपाधि का सेहरा बांधते
दूसरों को पानी पे चलना सिखाते

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत खूब, लाजवाब..

नीरज द्विवेदी said...

Behtareen ...
दिलों में गम लिए लाखों, हँसी को ओढ़कर जीते
सहज मुस्कानवाले कम, जो दुनिया को सजाते हैं

मुहब्बत और इबादत में, कोई तो फर्क समझा दो
मगर उस नाम पर जिस्मों, को अधनंगा दिखाते हैं

Ek se badhkar ek. aur bahut hi sarthak, prerak post.

Asha Joglekar said...

सुमन जी, बहुत दिनों के बाद आपके ब्लॉग पर आी और एक खूबसूरत गज़ल से मुलाकात हुई ।

चलो बच्चों के सर डालें, अधूरी चाहतें अपनी
बढ़ी है खुदकुशी बच्चे, अभी खुद को मिटाते हैं

सलीका सालों में बनता, मगर वो टूटता पल में
ये दुनिया रोज बेहतर हो, सलीका फिर सिखाते हैं

क्या बात कही है, सटीक ।

Unknown said...

बहुत ही उत्तम रचना ।
तारीफ के लिये शब्द कम पर गये , आपके लिखी मेरी कुछ पसंदीदा गज़लो मेँ शामिल हो गया । सचमुच मजा आ गया , सारी थकान दूर हो गई मेरी ।।

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