बहुत सुना बचपन से भाई, नहीं पेड़ पे पैसा उगता
अभी खबर दिल्ली से आई, नहीं पेड़ पे पैसा उगता
अर्थशास्त्र के पण्डित होकर बोझ बढ़ाते लोगों पर
अपने खाते रोज मलाई, नहीं पेड़ पे पैसा उगता
प्रमुख देश का बोल रहे थे या कोई रोबोट वहाँ
महिमा से मंडित मँहगाई, नहीं पेड़ पे पैसा उगता
धवल वस्त्र था अबतक उनका राजनीति में रहकर भी
अपने पर छींटा रोशनाई, नहीं पेड़ पे पैसा उगता
किसी को मोहित कर न पाया अपने क्रिया-कलापों से
वही आज है बना कसाई, नहीं पेड़ पे पैसा उगता
बिना रीढ़ के लोग अभीतक कुछ उनके आगे-पीछे
बस उनकी बातें दुहराई, नहीं पेड़ पे पैसा उगता
जब दिल्ली ही ऐसा बोले सुमन चमन का क्या सोचे
मजबूरी की राम दुहाई, नहीं पेड़ पे पैसा उगता
अभी खबर दिल्ली से आई, नहीं पेड़ पे पैसा उगता
अर्थशास्त्र के पण्डित होकर बोझ बढ़ाते लोगों पर
अपने खाते रोज मलाई, नहीं पेड़ पे पैसा उगता
प्रमुख देश का बोल रहे थे या कोई रोबोट वहाँ
महिमा से मंडित मँहगाई, नहीं पेड़ पे पैसा उगता
धवल वस्त्र था अबतक उनका राजनीति में रहकर भी
अपने पर छींटा रोशनाई, नहीं पेड़ पे पैसा उगता
किसी को मोहित कर न पाया अपने क्रिया-कलापों से
वही आज है बना कसाई, नहीं पेड़ पे पैसा उगता
बिना रीढ़ के लोग अभीतक कुछ उनके आगे-पीछे
बस उनकी बातें दुहराई, नहीं पेड़ पे पैसा उगता
जब दिल्ली ही ऐसा बोले सुमन चमन का क्या सोचे
मजबूरी की राम दुहाई, नहीं पेड़ पे पैसा उगता
12 comments:
हमने भी बहुत बीज ढूढ़े बचपन..
पैसा पा'के पेड़ पर, रुपया कोल खदान ।
किन्तु उधारीकरण से, चुकता करे लगान ।
चुकता करे लगान, विदेशी खाद उर्वरक ।
जब मजदूर किसान, करेगा मेहनत भरसक ।
पर मण्डी मुहताज, उन्हीं की रहे हमेशा ।
लागत नहीं वसूल, वसूलें वो तो पैसा ।।
Kitini mehnat se sache logo ne ye ped ugaye the par in bhrast kangresi neton or unke chamchon ne sab kaat dale hain.
Koi area esa nahi chora jahan in saalon ne apne hath nahi dale hain.
Itna koyla ye kha chuke ki inhe ab salon khane ki jrurat nahi, par aam aadmi ko to ek nivale ke bhi pade lale hain.
Ismein inka koi ksur nahi, ye galti hmari hai. Kyunki vote dekar akhir hamne hi to ye saanp pale hain.
Jai maa bharti
ये यक्ष प्रश्न बन सबको जगा दे तब ही बात बने .....
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हाँ, यह बात तो हम जानते ही थे। अब बच्चों से भी कह नहीं पायेंगे। बच्चे कहेंगे, "प्रधान मंत्री मत बनिये।"
वाह!
आपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को कल दिनांक 24-09-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1012 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ
मन मोहित ना किया किसी का आज तलक जो भारत में
बना आज है वही कसाई, पैसा, पेड़ नहीं उगता
(पेड़ पर डालर तोड़ने गयी
पत्ते ही गिर रहे हैं)
पैसा, पेड़ नहीं उगता
बहुत सुना बचपन से भाई, पैसा, पेड़ नहीं उगता
देश-प्रमुख ने अब समझाई, पैसा, पेड़ नहीं उगता
अर्थशास्त्र के पण्डित होकर बोझ बढ़ाते लोगों का
अपने खाते रोज मलाई, पैसा, पेड़ नहीं उगता
बोल रहे थे देश-प्रमुख ही या कोई रोबोट वहाँ
लादे लोगों पर मँहगाई, पैसा, पेड़ नहीं उगता
राजनीति में रहकर भी जो धवल वस्त्र के स्वामी थे
खुद ही छींट लिया रोशनाई, पैसा, पेड़ नहीं उगता
मन मोहित ना किया किसी का आजतलक जो भारत में
बना आज है वही कसाई, पैसा, पेड़ नहीं उगता
उनके भी आगे पीछे कुछ जिनको रीढ़ नहीं यारो
बातें उनकी ही दुहराई, पैसा, पेड़ नहीं उगता
ऐसा बोले देश-प्रमुख जब सुमन चमन का क्या सोचे
मजबूरी की राम दुहाई, पैसा, पेड़ नहीं उगता
Posted by श्यामल सुमन at 4:21 AM
Labels: ग़ज़ल
सच कहते रोबोट गुसाईं ,पैसा पेड़ नहीं उगता ,
पैसा पेड़ नहीं उगता ॥पर खादनों से पैसा निकलता है ... बहुत बढ़िया गजल
bahut bhavapoor rachana abhivyakti ...abhar
bahut dharadhar abhivyakti ..abhaar
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