Friday, November 2, 2012

बेदर्द शाम हो जाए

हवाएं सर्द जहाँ, बेदर्द शाम हो जाए
मेरी वो शाम, तुम्हारे ही नाम हो जाए

बदन सिहरते ही बजते हैं दाँत के सरगम
करीब आ, तेरे हाथों से जाम हो जाये

घना अंधेरा मेरे दिल में और दुनिया में
तुम्हारे आने से रौशन तमाम हो जाए

छुपाना इश्क ही कबूल-ए-इश्क होता है
करो इकरार जुबां से बस काम हो जाए

सुमन हटा दे सभी चिलमन तो मिलन होगा
रहीम इश्क है, कहीं पे राम हो जाए

11 comments:

Amrita Tanmay said...

वाह! बेहतरीन..

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

सदा ही की तरह उम्‍दा

संगीता पुरी said...

बहुत खूब ..

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

खूबसूरत गज़ल

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आज 03 - 11 -12 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....

.... आज की वार्ता में ... चलो अपनी कुटिया जगमगाएँ .ब्लॉग 4 वार्ता ... संगीता स्वरूप.

रविकर said...

उत्कृष्ट प्रस्तुति रविवार के चर्चा मंच पर ।।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

उम्दा गज़ल

मेरा मन पंछी सा said...

बहुत खूब....
बेहतरीन गजल...
:-)

प्रवीण पाण्डेय said...

बेहतरीन गज़ल..

कालीपद "प्रसाद" said...

सरल भाषा में सुन्दर गजल.

कालीपद "प्रसाद" said...

सरल भाषा में सुन्दर गजल.

हाल की कुछ रचनाओं को नीचे बॉक्स के लिंक को क्लिक कर पढ़ सकते हैं -
रचना में विस्तार
साहित्यिक  बाजार  में, अलग  अलग  हैं संत। जिनको  आता  कुछ  नहीं, बनते अभी महंत।। साहित्यिक   मैदान   म...
अन्ध-भक्ति है रोग
छुआछूत  से  कब  हुआ, देश अपन ये मुक्त?  जाति - भेद  पहले  बहुत, अब  VIP  युक्त।। धर्म  सदा  कर्तव्य  ह...
गन्दा फिर तालाब
क्या  लेखन  व्यापार  है, भला  रहे  क्यों चीख? रोग  छपासी  इस  कदर, गिरकर  माँगे  भीख।। झट  से  झु...
मगर बेचना मत खुद्दारी
यूँ तो सबको है दुश्वारी एक तरफ  मगर बेचना मत खुद्दारी एक तरफ  जाति - धरम में बाँट रहे जो लोगों को  वो करते सचमुच गद्दारी एक तरफ  अक्सर लो...
लेकिन बात कहाँ कम करते
मैं - मैं पहले अब हम करते  लेकिन बात कहाँ कम करते  गंगा - गंगा पहले अब तो  गंगा, यमुना, जमजम करते  विफल परीक्षा या दुर्घटना किसने देखा वो...
विश्व की महान कलाकृतियाँ- पुन: पधारें। नमस्कार!!!