Saturday, October 27, 2012

इक दिवाली ये भी है

बिजलियों  से जगमगाई, इक दिवाली ये भी है
रोशनी  घर  तक न आई, इक दिवाली ये भी है

दीप अब  दिखते हैं  कम ही, मर रही कारीगरी
कैसे  हो घर - घर कमाई, इक दिवाली ये भी है

थी भले कम रोशनी पर, दिल बहुत रौशन तभी
रीत  उल्टी  क्यों  बनाई, इक  दिवाली  ये भी है

देखते ललचा के लाखों, कुछ के तन कपड़े नए
फुलझड़ी  ने मुँह  चिढ़ाई, इक दिवाली ये भी है

खाते  हैं  कुछ  फेंक  देते, और  जूठन  छोड़ते
बस  सुमन  देखे मिठाई, इक दिवाली ये भी है

11 comments:

ANULATA RAJ NAIR said...

ऐसी ही है दिवाली इन दिनों....

सुन्दर भाव..

अनु

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

वास्तविकता का बोध कराती सुन्दर रचना!

प्रवीण पाण्डेय said...

दीवाली कैसी होती थी, आज कहाँ वैसी आयी है ।

Vinay said...

वाह जी वाह...


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विभूति" said...

khubsurat diwali ki abhivaykti.....

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

वाह जी सुंदर है

Shikha Kaushik said...

sach se samna karati post .aabhar

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

वाह!
आपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को कल दिनांक 29-10-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1047 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ

रविकर said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति |
आभार आदरणीय ||

Victor Sylani said...

achchi lagi!... aur JSR ke kya haal hain aajkal? To read my Hindi poems, kindly visit:
http://mahanagarmemahakavi.wordpress.com/

Ujjwal said...

Good to See Some One Blogging in Hindi

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