बिजलियों से जगमगाई, इक दिवाली ये भी है
रोशनी घर तक न आई, इक दिवाली ये भी है
दीप अब दिखते हैं कम ही, मर रही कारीगरी
कैसे हो घर - घर कमाई, इक दिवाली ये भी है
थी भले कम रोशनी पर, दिल बहुत रौशन तभी
रीत उल्टी क्यों बनाई, इक दिवाली ये भी है
देखते ललचा के लाखों, कुछ के तन कपड़े नए
फुलझड़ी ने मुँह चिढ़ाई, इक दिवाली ये भी है
खाते हैं कुछ फेंक देते, और जूठन छोड़ते
बस सुमन देखे मिठाई, इक दिवाली ये भी है
रोशनी घर तक न आई, इक दिवाली ये भी है
दीप अब दिखते हैं कम ही, मर रही कारीगरी
कैसे हो घर - घर कमाई, इक दिवाली ये भी है
थी भले कम रोशनी पर, दिल बहुत रौशन तभी
रीत उल्टी क्यों बनाई, इक दिवाली ये भी है
देखते ललचा के लाखों, कुछ के तन कपड़े नए
फुलझड़ी ने मुँह चिढ़ाई, इक दिवाली ये भी है
खाते हैं कुछ फेंक देते, और जूठन छोड़ते
बस सुमन देखे मिठाई, इक दिवाली ये भी है
11 comments:
ऐसी ही है दिवाली इन दिनों....
सुन्दर भाव..
अनु
वास्तविकता का बोध कराती सुन्दर रचना!
दीवाली कैसी होती थी, आज कहाँ वैसी आयी है ।
वाह जी वाह...
Make Blog Index Like A Book
khubsurat diwali ki abhivaykti.....
वाह जी सुंदर है
sach se samna karati post .aabhar
वाह!
आपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को कल दिनांक 29-10-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1047 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ
बहुत सुन्दर प्रस्तुति |
आभार आदरणीय ||
achchi lagi!... aur JSR ke kya haal hain aajkal? To read my Hindi poems, kindly visit:
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Good to See Some One Blogging in Hindi
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