Wednesday, April 17, 2013

फिर भी छोटा आँगन है

दिखता तो अपनापन है
फिर भी छोटा आँगन है

मुख पर खुशियों का विज्ञापन
पर आँखों में सावन है

खुशियों के पल और शबनम का
कितना त्वरित समापन है

माँगों में सिन्दूर भरे हैं
दिखती क्यों वैरागन है

सुमन चतुर इस युग के रावण
सचमुच राम खेलावन है

7 comments:

Dr. Dhanakar Thakur said...

अनुवाद
तैयो छोट आँगन अछि
अपनामे अपनापन अछि

मुहपर खुशीक विज्ञापन
मुदा नयनमे साओन अछि

खुशीक पल आ शबनमक
कतेक त्वरित समापन अछि

माँगमे सिन्दूर भरल अछि
मुदा देखाईत छथि वैरागिन

‘सुमन’ चतुर एहि युगक रावण
ठीकहि रामखेलावन अछि.

Dr. Dhanakar Thakur said...

अनुवाद
तैयो छोट आँगन अछि
अपनामे अपनापन अछि

मुहपर खुशीक विज्ञापन
मुदा नयनमे साओन अछि

खुशीक पल आ शबनमक
कतेक त्वरित समापन अछि

माँगमे सिन्दूर भरल अछि
मुदा देखाईत छथि वैरागिन

‘सुमन’ चतुर एहि युगक रावण
ठीकहि रामखेलावन अछि.

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

अरे वाह! बहुत सुन्दर

shashi purwar said...

bahut sundar rachna suman ji

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत प्यारी, पर कहती ढेर सारी।

Guzarish said...

सुंदर रचना
तेरे मन में राम [श्री अनूप जलोटा ]

Anupam Karn said...

उत्कृष्ट रचना और ठाकुर जीक द्वारा उम्दा मैथिली अनुवाद :)

हाल की कुछ रचनाओं को नीचे बॉक्स के लिंक को क्लिक कर पढ़ सकते हैं -
रचना में विस्तार
साहित्यिक  बाजार  में, अलग  अलग  हैं संत। जिनको  आता  कुछ  नहीं, बनते अभी महंत।। साहित्यिक   मैदान   म...
अन्ध-भक्ति है रोग
छुआछूत  से  कब  हुआ, देश अपन ये मुक्त?  जाति - भेद  पहले  बहुत, अब  VIP  युक्त।। धर्म  सदा  कर्तव्य  ह...
गन्दा फिर तालाब
क्या  लेखन  व्यापार  है, भला  रहे  क्यों चीख? रोग  छपासी  इस  कदर, गिरकर  माँगे  भीख।। झट  से  झु...
मगर बेचना मत खुद्दारी
यूँ तो सबको है दुश्वारी एक तरफ  मगर बेचना मत खुद्दारी एक तरफ  जाति - धरम में बाँट रहे जो लोगों को  वो करते सचमुच गद्दारी एक तरफ  अक्सर लो...
लेकिन बात कहाँ कम करते
मैं - मैं पहले अब हम करते  लेकिन बात कहाँ कम करते  गंगा - गंगा पहले अब तो  गंगा, यमुना, जमजम करते  विफल परीक्षा या दुर्घटना किसने देखा वो...
विश्व की महान कलाकृतियाँ- पुन: पधारें। नमस्कार!!!