शेर पूछता आजकल, दिया कौन यह घाव।
लगता है वन में पुनः, होगा एक चुनाव।।
गलबाँही अब देखिये, साँप नेवले बीच।
गद्दी पाने के लिए, कौन ऊँच औ नीच।।
मंदिर जाता भेड़िया, देख हिरण में जोश।
चीता लगे फकीर सा, फुदक रहा खरगोश।।
पीता है श्रृंगाल अब, देख सुराही नीर।
थाली में खाते अभी, कैसे बगुला खीर।।
हुआ जहाँ मतदान तो, बिगड़ गए हालात।
फिर से निकलेगी सुमन, गिद्धों की बारात।।
लगता है वन में पुनः, होगा एक चुनाव।।
गलबाँही अब देखिये, साँप नेवले बीच।
गद्दी पाने के लिए, कौन ऊँच औ नीच।।
मंदिर जाता भेड़िया, देख हिरण में जोश।
चीता लगे फकीर सा, फुदक रहा खरगोश।।
थाली में खाते अभी, कैसे बगुला खीर।।
हुआ जहाँ मतदान तो, बिगड़ गए हालात।
फिर से निकलेगी सुमन, गिद्धों की बारात।।
10 comments:
आपने लिखा....
हमने पढ़ा....
और लोग भी पढ़ें;
इसलिए बुधवार 05/06/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
पर लिंक की जाएगी.
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
लिंक में आपका स्वागत है .
धन्यवाद!
पीता है श्रृंगाल अब, देख सुराही नीर।
थाली में खाये सुमन, कैसे बगुला खीर।।
सुंदर व्यंगात्मक दोहे नेता भी हुए अधीर
चुनाव पर सटीक दोहे .....
दमदार रचना, वाह, गिद्धों की बारात।
अच्छी रचना.बहुत बेहतरीन ग़ज़ल
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार ४ /६/१३ को चर्चामंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आप का वहां हार्दिक स्वागत है ।
आपकी यह रचना कल मंगलवार (04 -06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
हुआ जहाँ मतदान तो, बिगड़ गए हालात।
फिर से निकलेगी सुमन, गिद्धों की बारात।।
कितना सही चित्रण है आज के नेताओं का
बहुत खूब
सुन्दर दोहे आदरणीय ...बधाई
बहुत प्रभ्शाली व्यंग्य किया है इन दोहों के माध्यम से आपने .. बधाई !
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