Tuesday, June 4, 2013

सोना हो चाहत अगर

सोना हो चाहत अगर, सोना हुआ मुहाल।
दोनों सोना कब मिले, सबका यही सवाल।।

खर्च करो कुछ भी अगर, घटे सदा परिमाण।
ज्ञान, प्रेम बढ़ते सदा, बाँटो, देख प्रमाण।।

अलग प्रेम से कुछ नहीं, प्रेम जगत आधार।
देख! आजकल क्या हुआ, बना प्रेम बाजार।

प्रेम त्याग अपनत्व से, जीवन हो अभिराम।
बनने से पहले लगे, अब रिश्तों के दाम।।

जीवन के संघर्ष में, नहीं किसी से आस।
भीतर जितने प्रश्न हैं, उत्तर अपने पास।।

तेरे कर्मो में सदा, जीवन का सन्देश।
सबके भीतर है छुपा, ब्रह्मा, विष्णु, महेश।।

दोनों कल के बीच में, फँसा हुआ है आज।
शायद ये कारण सुमन, व्याकुल सकल समाज।।

5 comments:

गुड्डोदादी said...

सोना हो चाहत अगर, सोना हुआ मुहाल।
सोना जैसे शब्दों से दोहे लिखे गए कमाल

Madan Mohan Saxena said...

सोना हो चाहत अगर, सोना हुआ मुहाल।
सोना जैसे शब्दों से दोहे लिखे गए कमाल
Good one
regards Madan

प्रवीण पाण्डेय said...

ज्ञानचक्षु खोलते दोहे।

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी यह प्रस्तुति कल के चर्चा मंच पर है
कृपया पधारें

Jyoti khare said...


जीवन के संघर्ष में, नहीं किसी से आस।
भीतर जितने प्रश्न हैं, उत्तर अपने पास।।--------

जीवन को समर्पित सुंदर दोहे
बहुत सजीव शब्द चित्र
गहन अनुभूति
उत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर

आग्रह है मेरे ब्लॉग का भी अनुसरण करें
गुलमोहर------

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