Friday, August 23, 2013

साहित्यिक परिवार

लेखन के भी मंच पर, छिड़ते रोज विवाद।
ज्ञानीजन लड़ते जहाँ, हुआ हृदय अवसाद।।

ज्ञान बोझ बनता वहीं, अहंकार हो बीज।
सुलझाना मुश्किल इसे, उलझेगी हर चीज।।

जो जिसने हासिल किया, वही अपरिमित ज्ञान।
अगर सोच यूँ हृदय में, उपजेगा अभिमान।।

लेखन में भाई बहन, व्यंग्य-बाण से वार।
कहते हैं अक्सर वही, साहित्यिक परिवार।।

जहाँ नम्रता है नहीं, ज्ञान वहाँ बेकार।
अक्खड़पन से क्या कभी, चलता है संसार।।

केवल तर्कों से नहीं, होगा सभी निदान।
कोशिश कर व्यवहार में, दिखे नहीं अभिमान।।

रचनाकारों पर नजर, आमलोग की खास।
कहने से ज्यादा सुमन, सुनने में विश्वास।।

7 comments:

गुड्डोदादी said...

लेखन के भी मंच पर, छिड़ता रोज विवाद।
ज्ञानीजन लड़ते जहाँ, सुमन हृदय अवसाद।।
(लेखक की पीड़ा प्रसव जैसी ,दोहे लिक्खे कमाल
साहित्यिक परिवार नानक दुखिया सब संसार

कबीर कुटी - कमलेश कुमार दीवान said...

achchi rachna hai

Yashwant R. B. Mathur said...

कल 25/08/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद!

प्रवीण पाण्डेय said...

वाह बहुत खूब..

shalini rastogi said...

बहुत ही सटीक व्यंग्य किया है आपने अपने दोहों के माध्यम से .. बहुत सुन्दर
आपकी इस उत्कृष्ट रचना का प्रसारण कल रविवार, दिनांक 25/08/2013 को ब्लॉग प्रसारण http://blogprasaran.blogspot.in/ पर भी .. कृपया पधारें !

कौशल लाल said...

बहुत ही सटीक व्यंग्य

Onkar said...

सटीक वर्णन

हाल की कुछ रचनाओं को नीचे बॉक्स के लिंक को क्लिक कर पढ़ सकते हैं -
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