बादल फटते हैं जहाँ, लोग वहाँ बेहाल।
फटती मँहगाई सदा, आमलोग कंगाल।।
कोशिश में सब लोग हैं, बची रहे पहचान।
मँहगीं सारी चीज हैं, सस्ता इक इन्सान।।
एक प्रवृति बढ़ रही, खतरनाक है खास।
लोगों में नित घट रहा, आपस का विश्वास।।
टूटन गाँव, समाज में, टूटे घर में लोग।
जाति-धरम टूटा नहीं, बहुत भयानक रोग।।
मान सतत सबका करें, घर को रखें सहेज।
दुल्हन घर आए वही, लाए साथ दहेज।।
बोल रहे हैं आप जो, क्या जी पाते आप?
केवल अच्छा बोलना, बिना कर्म के पाप।।
जीवन सिखलाता हमें, रोज अनोखी बात।
सीख उसे पालन करें, सुमन सही जज्बात।।
फटती मँहगाई सदा, आमलोग कंगाल।।
कोशिश में सब लोग हैं, बची रहे पहचान।
मँहगीं सारी चीज हैं, सस्ता इक इन्सान।।
एक प्रवृति बढ़ रही, खतरनाक है खास।
लोगों में नित घट रहा, आपस का विश्वास।।
टूटन गाँव, समाज में, टूटे घर में लोग।
जाति-धरम टूटा नहीं, बहुत भयानक रोग।।
मान सतत सबका करें, घर को रखें सहेज।
दुल्हन घर आए वही, लाए साथ दहेज।।
बोल रहे हैं आप जो, क्या जी पाते आप?
केवल अच्छा बोलना, बिना कर्म के पाप।।
जीवन सिखलाता हमें, रोज अनोखी बात।
सीख उसे पालन करें, सुमन सही जज्बात।।
6 comments:
आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [16.09.2013]
चर्चामंच 1370 पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें
सादर
सरिता भाटिया
एक प्रवृति बढ़ रही, खतरनाक है खास।
लोगों में नित घट रहा, आपस का विश्वास।।
(किसे सुनाएं अपनी व्याकुल व्यथा
बिन बादल नो झरे दिन रात
वाह !!! बहुत ही सुंदर सृजन ! बेहतरीन गजल !!
RECENT POST : बिखरे स्वर.
बहुत उम्दा ग़ज़ल !
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atest post गुरु वन्दना (रुबाइयाँ)
आपकी रचना शब्दशः सच है बस यही हो रहा है।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - सोमवार - 16/09/2013 को
कानून और दंड - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः19 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra
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