दस्तक सूरज दे रहा, शीतल मन्द बयार।
देख जरा मुस्कान से, चारों तरफ बहार।।
बीते कल से सीखकर, आगे का अभियान।
सोच सन्तुलित हो जहाँ, मिलता है सम्मान।।
सम्मानित होते वही, करते सबका मान।
रोज बुराई से लड़े, बाँटे अनुभव ज्ञान।।
क्या महसूसा भूख जो, लिखा भूख पर शेर?
भूखे से इस प्रश्न को, सुनकर शायर ढेर।।
अच्छा बनने के लिए, नकल सदा अभिशाप।
निर्णय खुद से कर सकें, कहाँ खड़े हैं आप।।
बातें मेरी ही सही, कभी न देना तूल।
हो दर्पण का दोष या, सूरत पे ही धूल।।
सदा समय सबसे सबल, सपने सब साकार।
सुमन समय सम्मान से, सुन्दर सा संसार।।
देख जरा मुस्कान से, चारों तरफ बहार।।
बीते कल से सीखकर, आगे का अभियान।
सोच सन्तुलित हो जहाँ, मिलता है सम्मान।।
सम्मानित होते वही, करते सबका मान।
रोज बुराई से लड़े, बाँटे अनुभव ज्ञान।।
क्या महसूसा भूख जो, लिखा भूख पर शेर?
भूखे से इस प्रश्न को, सुनकर शायर ढेर।।
अच्छा बनने के लिए, नकल सदा अभिशाप।
निर्णय खुद से कर सकें, कहाँ खड़े हैं आप।।
बातें मेरी ही सही, कभी न देना तूल।
हो दर्पण का दोष या, सूरत पे ही धूल।।
सदा समय सबसे सबल, सपने सब साकार।
सुमन समय सम्मान से, सुन्दर सा संसार।।
2 comments:
अन्तिम दोहा मन जीत कर ले गया।
कल 18/10/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद!
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