Monday, October 7, 2013

जरा सहला दे बूढ़े पेड़ को

सजाना जिन्दगी को नित, सिखाने कौन आएगा
जहाँ   तालाब  हो  गन्दा,  नहाने   कौन आएगा

किसी  की बेबसी का फायदा, कोई उठा ले गर
यकीं  मानो  दुबारा  उस, ठिकाने कौन आएगा

कहीं  आँसू  हैं  रोने  के, कहीं  हँसते  हुए आँसू
अगर  आँसू  मुकद्दर  तो, हँसाने  कौन  आएगा

जरा  सहला  दे बूढ़े पेड़ को, आँगन खड़ा है जो
कहीं  सूखा तो बीता कल, दिखाने कौन आएगा

समन्दर है बहुत गहरा, तेरी आँखों से कम लेकिन
संभल कर के  सुमन  उतरो, बचाने  कौन आएगा  

5 comments:

गुड्डोदादी said...

जरा सहला दे बूढ़े पेड़ को आँगन खड़ा है जो
कहीं सूखा तो बीता कल दिखाने कौन आएग
माँ मनोरमा जी को नत नमन श्रद्धांजली

Unknown said...

बहुत खूबसूरत गजल |

मेरी नई रचना :- सन्नाटा

प्रवीण पाण्डेय said...

वाह, बहुत खूब। सीधे शब्दों में गहरी बात।

anand bala sharma said...


Ati sundar

Unknown said...

उम्दा रचना

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